----***ग़ज़ल***---
चाँद यूँ ही मचलता रहा।
रंग ए चेहरा बदलता रहा ।।
जुर्म है इस शहर में अमन ।
ये भी मुद्दा उछलता रहा ।।
जब लगी आसना पर नज़र ।
वो जहर को उगलता रहा ।।
कह न दे कुछ जमाना उसे।
होश खोकर सम्भलता रहा ।।
दिल्लगी इश्क से क्या हुई।
हसरतों को मसलता रहा ।।
खत गिराकर गयी राह में।
जब भी घर से निकलता रहा।।
बेकरारी भी क्या चीज है ।
रातभर बस टहलता रहा ।।
गर्म लब पे तस्सवुर तेरा ।
बे वजह ही पिघलता रहा ।।
-नवीन मणि त्रिपाठी
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