तीखी कलम से

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जी हाँ मैं आयुध निर्माणी कानपुर रक्षा मंत्रालय में तकनीकी सेवार्थ कार्यरत हूँ| मूल रूप से मैं ग्राम पैकोलिया थाना, जनपद बस्ती उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ| मेरी पूजनीया माता जी श्रीमती शारदा त्रिपाठी और पूजनीय पिता जी श्री वेद मणि त्रिपाठी सरकारी प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं| उनका पूर्ण स्नेह व आशीर्वाद मुझे प्राप्त है|मेरे परिवार में साहित्य सृजन का कार्य पीढ़ियों से होता आ रहा है| बाबा जी स्वर्गीय श्री रामदास त्रिपाठी छंद, दोहा, कवित्त के श्रेष्ठ रचनाकार रहे हैं| ९० वर्ष की अवस्था में भी उन्होंने कई परिष्कृत रचनाएँ समाज को प्रदान की हैं| चाचा जी श्री योगेन्द्र मणि त्रिपाठी एक ख्यातिप्राप्त रचनाकार हैं| उनके छंद गीत मुक्तक व लेख में भावनाओं की अद्भुद अंतरंगता का बोध होता है| पिता जी भी एक शिक्षक होने के साथ साथ चर्चित रचनाकार हैं| माता जी को भी एक कवित्री के रूप में देखता आ रहा हूँ| पूरा परिवार हिन्दी साहित्य से जुड़ा हुआ है|इसी परिवार का एक छोटा सा पौधा हूँ| व्यंग, मुक्तक, छंद, गीत-ग़ज़ल व कहानियां लिखता हूँ| कुछ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहता हूँ| कवि सम्मेलन के अतिरिक्त काव्य व सहित्यिक मंचों पर अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को आप तक पहँचाने का प्रयास करता रहा हूँ| आपके स्नेह, प्यार का प्रबल आकांक्षी हूँ| विश्वास है आपका प्यार मुझे अवश्य मिलेगा| -नवीन

रविवार, 11 अक्तूबर 2015

ग़ज़ल


(शरीफ़ साहब दो शब्द मेरे भी सुन लीजिये )
               ------ग़ज़ल------

मुखौटा  इस  ज़माने  में कभीअच्छा नहीं  लगता ।
हकीकत हो  फ़साने में कभी अच्छा नहीं लगता ।।

छोड़ घर को गया था जो गुलामी दे दिया उसको ।
मुहाज़िर  हो निशाने में कभी अच्छा नहीं लगता ।।

शरीफ़ो के लहू से  हाथ हो जिसके  सने अक्सर।
वो जाए  फिर मदीने में कभी अच्छा नहीं लगता ।।

सरीयत से तुम्हारा वास्ता  मुमकिन नहीं  लगता ।
तू अपने कत्लखाने में कभी अच्छा नहीं लगता ।।

कद्र होगी मुख़ालिफ़ की तू रख ज़ायज उसूलो को।
नियत के डगमगाने में कभी अच्छा नहीं  लगता ।।

दुश्मनी पर वजूदे शाख़  जिन्दा हो यहां जिसकी ।
दोस्त कहकर बुलाने में कभी अच्छा नहीं लगता ।।

बहुत नापाक होगा ये जो तुझको पाक मैं कह दूं ।
राज दिलका छुपाने में कभी अच्छा नहीं लगता ।।

सपोले पालने  वालों से  दुनिया हो  चुकी वाकिफ़ ।
उसे  फिर बरगलाने में कभी अच्छा नहीं लगता ।।

शिकस्तों से  मुहब्बत है तुम्हारे  मुल्क  के अच्छी ।
तुम्हें अब आजमाने  में कभी अच्छा नहीं लगता।।

 
   --नवीन मणि त्रिपाठी

2 टिप्‍पणियां:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, अनोखी सज़ा - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. वाह बहुत खूब। दिल को छू गई आपकी रचना। कभी मेरे ब्‍लाग पर आइए।

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