इस कदर रूठी है किस्मत आजकल।
बे वजह लगती है तोहमत आजकल।।
जिसने तोडा मुल्क का हर हौसला ।
बन रही उसकी भी तुरबत आजकल।।
चन्द लम्हों की लगी हैं बोलियाँ ।
अब कहाँ मिलती है मोहलत आजकल।।
ढूंढ मत इन्साफ की उम्मीद अब ।
हर तरफ जहमत ही जहमत आजकल ।।
मत कहो मजबूरियों को शौक तुम ।
बिक रही बाज़ार अस्मत आजकल ।।
लुट गयी जागीर उस अय्यास की ।
वह मिटा है उसकी निस्बत आजकल ।।
गैर मुमकिन है सराफत हो बची ।
हो गयी मशहूर सोहबत आजकल ।।
वास्ता जिसका खुदा से कुछ न था ।
फिर वहीँ बरसी है रहमत आजकल ।।
--नवीन मणि त्रिपाठी
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