------***ग़ज़ल***-----
करो तुम शौक से हमला यहाँ हाथों में ताला है ।
मेरी आदत में शामिल है मुझे गांधी ने पाला है ।।
मालदा को छुपा कर मीडिया तू फख्र कर लेकिन ।
दिखा बिकना तेरा सबको तुझे दिल से निकाला है ।।
तम्बुओं में है जो जीता वो वाशिंदा है कश्मीरी ।
किसी सरकार के साये तले लुटता निवाला है ।।
बहन बेटी को खोकर भी वतन कश्मीर वह माँगा ।
सियासत दां की गद्दारी ने उसको मार डाला है ।।
रखो भूखा ये मतदाता ,, रहें रोटी पे ही नज़रें ।
चन्द टुकड़ो पे ये सरकार चलनी पांच साला है ।।
गोलिया खा के चिल्लाना और खामोश हो जाना ।
फितरते हिन्द का जज्बा तू किस साँचे में ढाला है ।।
गुलामी दस्तकें देती , तू बस कुर्सी से चिपका रह ।
तेरे जालिम इरादों पर उजाला ही उजाला है ।।
कहो मत पीठ का इसको धँसा सीने में है खंजर ।
सराफत में मिटे इस मुल्क का निकला दीवाला है।।
चुटकियों में मसल देने का जज्बा रोज सुनता हूँ ।
नहीं क्या आब है तुझमे या तेरा दिल भी काला है ।।
--नवीन मणि त्रिपाठी
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