मैं इबादत हसरतों के नाम ही करता रहा ।
वक्त से पहले कोई सूरज यहां ढलता रहा ।।
जिंदगी के हर अंधेरो से मैं बाजी जीत कर ।
बन मुहब्बत का दिया मैं रात भर जलता रहा ।।
रात की तन्हाइयाँ ले कर गयीं यादें तेरी ।
फिर सहर आई तो मैं यूँ हाथ को मलता रहा।।
जब से देखा रिन्द ने साकी तेरे अंदाज को ।
मैकदे में जाम का यह सिलसिला चलता रहा ।।
रात दिन सजदा मेरा होता रहा उस हुश्न को ।
जो किसी नागन की माफिक उम्र भर डंसता रहा ।।
**** नवीन
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (31-01-2016) को "माँ का हृदय उदार" (चर्चा अंक-2238) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 31 जनवरी 2016 को लिंक की जाएगी...............http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना ।
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग को यहाँ शामिल किया गया है ।
ब्लॉग"दीप"
यहाँ भी पधारें-
तेजाब हमले के पीड़िता की व्यथा-
"कैसा तेरा प्यार था"
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ...
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