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नई तादात देखी कातिलों की ।
है चर्चा फिर तुम्हारी रहमतों की ।।
मयस्सर जिंदगी होती दुआ से ।
उसे अब याद आई मजहबों की ।।
बहुत अच्छा लगा जो आ गए हो ।
हमें तो फ़िक्र थी तेरे ख़तों की ।।
जो संगे दिल लिए फिरते थे अक्सर।
कहानी लिख रहे हैं आसुओं की ।।
दुपट्टा क्यूँ सरक जाता है उसका ।
खबर पूरी है उसको रहजनों की ।।
बहक जाना मुनासिब हो गया था ।
यही फ़ितरत बनी थी मैकदों की ।।
यहाँ बदनामियाँ हासिल हुई हैं । है इतनी सी निशानी मंजिलों की ।।
नज़र तहज़ीब क्यूँ खोने लगी है ।
दिखी जुर्रत बहुत गुस्ताखियों की।।
-- नवीन मणि त्रिपाठी
नई तादात देखी कातिलों की ।
है चर्चा फिर तुम्हारी रहमतों की ।।
मयस्सर जिंदगी होती दुआ से ।
उसे अब याद आई मजहबों की ।।
बहुत अच्छा लगा जो आ गए हो ।
हमें तो फ़िक्र थी तेरे ख़तों की ।।
जो संगे दिल लिए फिरते थे अक्सर।
कहानी लिख रहे हैं आसुओं की ।।
दुपट्टा क्यूँ सरक जाता है उसका ।
खबर पूरी है उसको रहजनों की ।।
बहक जाना मुनासिब हो गया था ।
यही फ़ितरत बनी थी मैकदों की ।।
यहाँ बदनामियाँ हासिल हुई हैं । है इतनी सी निशानी मंजिलों की ।।
नज़र तहज़ीब क्यूँ खोने लगी है ।
दिखी जुर्रत बहुत गुस्ताखियों की।।
-- नवीन मणि त्रिपाठी
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