तीखी कलम से

गुरुवार, 26 दिसंबर 2013

दर्द


               

इंशा की  बद नियत से ये   दिल बदल गया है |
अबला कि आसुओं से, साहिल  बदल गया  है ||
बेख़ौफ़   दरिंदों   से  बेबस  सी  दिख  रही  है |
रिस्तों कि शकल लेकर कातिल बदल गया है ||

थी  बाप  कि दुलारी ,वो  माँ  की लाडली थी |
सुन्दर  सुशील  बेटी , तहजीब  में  पली  थी ||
शातिर व मनचलों की  जब दाल गल न पाई |
तेजाब कि लपट में तिल तिल के वो जली थी ||

उलझी  व्यथा  न  सुलझी ,फूलों की दास्ताँ में |
कलियाँ भी खिल न पाईं इस दौरे गुलिस्तां में ||
जब  शाख  पे  इठला  के  लहराई  कली कोई |
भौरों   ने  कुतर  डाली ,बेदर्द  सी  फिजां   में ||

शुक्रवार, 13 दिसंबर 2013

ईमानदार को भी अब नकाब चाहिए

इस  मुफलिसी  के दौर का, जबाब चाहिए।
जुर्मो सितम का अब हमें, हिसाब चाहिए॥

बे  खौफ  हो  गया  है यहाँ  आम आदमी ।

शायद   सियासतों   में  इंकलाब  चाहिए ॥

इंसान   मर   रहा  यहाँ  रोटी   के  वास्ते ।
सरकार   है  उनकी   उन्हें  शराब  चाहिए ॥

 
ईमान  डर  गया  है  ज़माने से इस कदर ।
ईमानदार  को   भी  अब  नकाब  चाहिए ॥ 


काँटों के बिस्तरों पे अब सोने लगे हैं लोग ।
नेता  है,  उसे  बिस्तर  ए  गुलाब चाहिए ॥

हिन्दू  या  मुसलमा के खैर ख्वाह नहीं वो ।

उनको  यहाँ  अमन  बहुत  ख़राब  चाहिए ॥

क्यूँ  लोकपाल  से उन्हे दहशत हुई है आज।

कहते  हैं  लोग,  अब  उन्हें  जुलाब चाहिए॥

दंगो ने दी शिकस्त है  इंसानियत को आज ।
कुर्सी   का  बेहतरीन , उसे  ख्वाब  चाहिए ॥

वह  हुक्मरान  है,  उसे   दावत   कबूल  है ।
उसको   गरीब   खाने  से,  कबाब   चाहिए॥

हिन्दोस्ताँ   कि  लाज  बचाने  के लिए अब।
हर  शख्स  के  सीने  में, नयी आग चाहिए ॥
                              
           - नवीन मणि त्रिपाठी
             

बुधवार, 11 दिसंबर 2013

महानिदेशक आयुध निर्माणी बोर्ड भारत सरकार के आगमन पर पढ़े गये कुछ मुक्तक व छंद

                                 मुक्तक         


यहाँ   उदगार    के   स्वर   में  ह्रदय    करता  है  स्पंदन |
बहुत  आभार  के  संग  में  है  मन  करता  तुम्हे   बंदन ||
आज   निःशब्द  हूँ  स्वागत  करुँ  किस  भाव  से  श्रीमन|
आगमन  पर  है शत शत आज निर्माणी में अभिनन्दन ||

आने   से    बहारें    आ    गयीं    हैं    आज    उपवन   में |
नजर  बहकी  है  फूलों  कि  फिजा  महकी  है  चन्दन में ||
दिलों  में  बस  गए  हैं  आप  अब  जाना  है  बा मुश्किल |
सुमन   श्रद्धा  के   अर्पित   हैं   आपके   कोटि   बंदन  में ||

मोहब्बत  की  निशानी  हो, यहाँ  के  हर  दिलों की  तुम |
रौशनी की    कहानी  हो , कार्य   के  मंजिलों  की   तुम ||
कि  जलते   दीप  बन   करके, बढ़ाया  मान भारत   का |
नाज  बन   के   दिखे  हो   अब  हमारे  हौसलों  के  तुम ||

तुम्हारे   हर   तबस्सुम   की   यहाँ   पर   याद   आएगी |
कमी   तेरी   यहाँ   हर   शख्स   को   इतना   सताएगी ||
तुम   हमसे   दूर   जाके   भी   ये   वादा   भूल  न जाना |
चले   आना   प्रेम   की   डोर   जब    तुमको   बुलाएगी ||

                                                           छंद

प्रेम   प्रबलता की से शब्द मौन होते नहीं आगमन आपका  प्रदीप  बन  जायेगा |
भावना  का  पुष्प  गुच्छ स्वागत समर्पण श्रद्धा का सुमन भी प्रदीप बन जायेगा ||
निर्माणी  कण कण उत्साह में विलीन ,जज्बा  भी जीत का  उम्मीद बन जायेगा |
आप जो पधारे आज निर्माणी द्वारे मेरे कोटि कोटि स्वागत में शीष झुक जाएगा ||

निर्माणी उन्नति  विकास को निहारती है एक दीप उन्नति का आज भी जलाइए |
लक्ष्य  उत्पादन  बुलंदियों  को पार करे हौसलों से  स्वाभिमान  देश  का  बढाइये ||
आयुध  प्रतीक  आज  सभा  में  विराज  रहे , संकल्प   शंखनाद  करके  दिखाइये |
उनकी  उम्मीद  में  भरोसे का भी पुष्प गूंथ ,स्वागत में आज एक माला पहनाइए ||

रविवार, 17 नवंबर 2013

"वो कत्ले आम सुबहो -शाम किया करते हैं "

अदा  ए  जुल्फ  से  अंजाम  दिया करते हैं |
वो कत्ले आम सुबहो -शाम किया करते हैं ||


झुकी  निगाह  उठाई  तो  जल जला  आया |
वो  ज़माने  से  इंतकाम   लिया  करते  हैं ||


कली  गुलाब  की  शरमाई  उनकी रंगत से |
शबाब  ए  हुश्न  का  पैगाम  दिया  करते हैं ||


सुर्ख लब  पर  हैं तबस्सुम के खरीदार बहुत |
वो  मोहब्बत  को भी नीलाम किया करते है ||


मैं तो साहिल था लहर आयी और छू के गयी |
याद  हम  भी  वही  मुकाम  किया  करते  हैं ||


बेवफा  तुझको , मुहब्बत का सलीका ही नहीं |
तमाम  उम्र , ये   इल्जाम   लिया  करते  हैं ||


जब  दबे पांव तू आयी  उसी महुआ के  तले |
उसी शजर  से  तेरा   नाम  लिया   करते  हैं ||

शनिवार, 9 नवंबर 2013

"मृग मरीचिका"


 
आखिर क्यों हो जाते हो आशक्त ?
तुम्हारा कौन है ?
आत्मीयता मौन है |
हर और मिथ्या आडम्बर ,
माया का विशाल अम्बर |
पत्नी, बच्चे ,रिश्ते ,नाते ,
सबका अपना अपना स्वार्थ |
जकड़ते हुए बंधन के निहतार्थ |
समझौता बन चुका है ,
जीवन का आधार |
गौर से देखो हर ओर अंधकार |
जहाँ तुमने देखा था
अथाह शांति का जल |
क्या तुम्हें याद है ?
अपनी तपस्या का एक एक पल |
सब कुछ मृगमरीचिका के सिवा क्या निकला ?
नहीं सुलझ सका जीवन का मसला |
आखिरी समय .....
पश्चाताप की अग्नि में झुलस रहे हैं |
सिली हुई जुबान ....
कुछ कह भी नहीं पा रहे हैं |
और अब मृत्यु का वरण तो करना ही है |
तुम्हे फिर नए जीवन की ओर
चलना ही है |
काश तुमने जिंदगी को पहचाना होता !
अपने आप को जाना होता !
इस जीवन मरण के चक्र से बच सकते थे |
महा मोक्ष की राहों पर चल सकते थे |

                                         --  नवीन मणि त्रिपाठी

सोमवार, 4 नवंबर 2013

गुणवत्ता शपथ गीत

        

गुणवत्ता की महाक्रांति, संकल्प शपथ दोहरायेंगे।
हम उत्पादन के प्रहरी, उत्पादन  मान  बढ़ायेंगे।।

                   गौरवशाली  तकनीकि का, रचते हैं इतिहास  नया।
                   सदा उन्नति के पथ पर दें भारत को आयाम नया।।
                   नयी सोच व  नये सृजन से  गुणवत्ता  अपनानी  है।
                   विश्व शिखर पर भारत की,गुणवत्ता को पहुचानी है।।

हम सेना की शक्ति  ,शस्त्र  का स्वाभिमान  बढ़ायेंगे।
गुणवत्ता की महाशक्ति  का हम सम्मान दिलायेंगे।।
गुणवत्ता  की  महाक्रांति,  संकल्प  शपथ  दोहरायेंगे।
हम   उत्पादन  के  प्रहरी , उत्पादन  मान  बढ़ायेंगे।।

                   ग्राहक की संतुषिट को गर , तुमने  कभी  नहीं खोई।
                   प्रतिस्पर्धा का  साहस  कर  सके  देश फिर ना कोई।।
                   टी पी एम के साधन से गुणवत्ता लक्ष्य  साध्य होगी।
                   दुनिया भारत के पीछे चलने  का , तभी बाध्य होगी।।

हम भारत की शाख विश्व  के मानचित्र पर लायेंगे।
गुणवत्ता से अर्थ तंत्र का विकसित रूप  दिखायेंगे।।
गुणवत्ता की महाक्रांति, संकल्प  शपथ  दोहरायेंगे।
हम उत्पादन के  प्रहरी, उत्पादन  मान  बढ़ायेंगे।।

                   अनुशासित हो कार्यप्रणाली गुणवत्ता की जननी है।
                  सस्ते  और टिकाउ  की पहचान  हमारी  अपनी  है।।
                   हो नवशोध शस्त्र  की खतिर खर्च बचाना है हमको।
                   आयुध निर्माणी का झण्डा फिर लहराना है हमको।।

सत्य और निष्ठा के संग हम  इच्छा शक्ति  बढ़ायेंगे।
गुणवत्ता  उन्नत  स्वरूप से, हिन्दुस्तान  जगायेंगे।।
गुणवत्ता  की महाक्रांति, संकल्प  शपथ  दोहरायेंगे।
हम  उत्पादन  के  प्रहरी, उत्पादन  मान   बढ़ायेंगे।।
                                          
दिनांक 3.11.2013
                                          - नवीन मणि त्रिपाठी
                                     एस0एफ0एम0 ओ0एफ0सी0
        


शनिवार, 31 अगस्त 2013

वर्तमान परिवेश के चार छंद

भाषा  मौन  होती  है  तो  राष्ट्र  मूक  बनता  है ,ऐसी  तश्वीर को  ना देश  में  सजाइए ।
शब्द मौन होता है तो अभिव्यक्ति टूटती है ,भारतीय स्वाभिमान  को न यूँ  मिटाइए ॥
जननी  है  मातृ  भूमि  जननी  है  मातृ भाषा ,स्नेह  मातृ  ममता कभी ना विसराइये।
भाषा की मसाल  संग संकलप ज्योति ले के ,विश्व की बसुन्धरा में हिंदी को जगाइए ॥


सीता  का  हरण  गर  रावण  ना  करता  तो  लंका स्वर्ण नगरी भी ख़ाक नही बनती ।
द्रौपदी  के  चीर  को  दुशासन  ना  खीचता  तो  युद्ध  महाभारत कथाएं नहीं मिलती ॥
दुराचारी  बनके  जो  छेड़ते हैं नारियों को , नारी की  यथाएं  उन्हें  माफ़  नहीं  करतीं ।
महापाप  करते  जो  नारियों  की  भावना से ,ऐसे  घर कभी  दिया बाती नहीं जलती॥


भ्रष्टता   की  लपटों   से  डालर  उछल  रहा , रूपये   की  मार  से  गरीबी   तडपाती   है ।
दाल सब्जी प्याज भी ना थालियों में दिख रही ,तक़दीर भारत की भूख लिख जाती है॥
अर्थ  की  गुलामी  के  कगार पे देश आज , महगाई  मौत  की  कहानी  लिख  जाती है ।
कैसी है विडम्बना ये सोने की चिरइया आज ,पिजरे में आसुओं की बूद पिए जाती है ॥


शीष  शरहद  पर  कटते  शहीद  के  हैं , तेरी  क्रूरता   का  तो  जबाब   मिल   जायेगा ।
भटकल  भटका  सका  ना  देशवासियों  को  जहरीले   टुंडा का हिसाब मिल जायेगा ॥
धैर्य  का  भी  बांध  गर  टूटा  देशवासियों  का ,राष्ट्र तेरा पल में ही खाक  बन जायेगा ।
धर्म से  भी  ज्यादा  राष्ट्र पूजते हैं देशवासी, तेरा ये आतंक  तुझे  खुद  को ही खायेगा ॥   


                                                                                  नवीन 

शुक्रवार, 23 अगस्त 2013

हे कृष्ण

हे कृष्ण ,
कब होगा आपका जन्म ?
विकसित हो चुका  है अधर्म।
हर ओर त्राहिमाम ……  ,
भ्रष्टाचार बे लगाम ,
भक्तों की थाली से दाल, सब्जी, प्याज
सब कुछ गायब हो चुका है।
रुपये का अवमूल्यन ,
अब डालर उछल चुका है।
राजनीति का स्तर रसातल में है।
नरभक्षी मजहबी वायरस अब धरातल में है।
अब तो चीरहरण आम हो गया है ,
अभिशप्त नारी जीवन संग्राम बन गया है।
कहाँ हो सुदर्शन चक्रधारी ?
रोज पुकारती है तुम्हें
भारत की नारी।
गरीबी से व्याकुल हो चुके है देश के सुदामा।
अनेक हो चुके हैं तुम्हारे कंस मामा।
क्या कहूँ !
सब कुछ जानते हो।
कण कण पहचानते हो।
अब बहुत हो चुका  …।
प्रकट हो जाओ !
मानवता ,संस्कृति ,सभ्यता को बचाओ।
हे कृष्ण
फिर से कोई महाभारत ना हो जाये ,
आओ भारत की स्मिता को बचाओ।

बुधवार, 14 अगस्त 2013

ये तिरंगा झुके ना कभी देश का , ज्ञान का दीप घर मे जला लीजिये

डूब  जाये   ना  ईमान   का  हौसला ,भ्रष्टता   की   लहर से बचा  लीजिये |
खो ना जाए कहीं ये अमन की हवा ,अब  झरोखों से  परदे  हटा  लीजिये ||

मौत सस्ती है  दंगों  के बाजार मे , अर्थियाँ   उठ  रहीं  उनके   व्यापार  में |
मंदिरों  मे वही  मस्जिदों मे वही , देश   के  राग  मे  स्वर  मिला लीजिये ||

कट  रहे  सर  शहीदों  के शरहद पे अब ,जागना है जरूरी तो जागोगे कब |
एक हुंकार भर लो वतन के लिए ,कुछ सबक आज उनको सिखा दीजिये ||

आज  गंगा ने आँसू  को छलका दिया ,राह में
उसके तुमने  जहर  भर दिया |
आ ना जाए यहाँ  जलजला फिर कहीं ,उसकी पावन छटा को बढ़ा दीजिये ||

आज इंसानियत की नजर खो गई ,अब तो हैवानियत  की  निशा  छा गई |

आत्मा  दामिनी  की  सिहर  सी गई ,फिर  ना आए  घड़ी वो दुआ कीजिये |। 

जो जलाता था दीपक सदा ज्ञान का ,डस गया है तिमिर उसको अज्ञान का |
ये   तिरंगा  झुके  ना कभी देश का , ज्ञान  का  दीप  घर  मे  जला लीजिये ||


                                                                       नवीन मणि त्रिपाठी 

सोमवार, 8 जुलाई 2013

बन के काली घटा वह बरसती रही

जिन्दगी थी अमावस  की काली निशा ,चादनी  की तरह  वह बिखरती रही |
रौशनी के लिए जब शलभ चल पड़े ,जाने  क्यूँ रात भर वह सिसकती रही ||


जब पपिहरे की पी की सदा को सुनी ,और भौरों ने कलियों से  की  आशिकी |
कोई  शहनाई  जब भी बजी  रात में ,कल्पना  की  शमा  में  मचलती  रही ||


मन में तृष्णा जगी फिर क्षुधा भी जगी , एक संगीत  की नव विधा  भी जगी |
जब सितारों से  झंकृत प्रणय स्वर मिले ,गीत रस को लिए वह  बहकती रही ||


शब्द  थे  मौन ,पर  नैन सब कह गए ,मन की सारी व्यथा की कथा कह गये |
ज्वार  आया  समंदर  की  लहरें  उठी ,वह  नदी  तो  मिलन  में उफनती रही ||


उम्र  दहलीज  पर  दस्तकें  दे  गयी , अनछुई  सी  चुभन  भावना  कह  गयी |
एक   शैलाब  से   डगमगाए  कदम ,वक्त  की   धार  से  वह  फिसलती  रही ||


एक  ज्वालामुखी  जल  उठी  रात  में , साँस  दहकी  बहुत,  तेज  अंगार  में |
जब  हवाओं  ने  लपटों  से  की  दोस्ती ,मोम  का  दीप बन के पिघलती रही ||


आज  सावन   की  पुरवा   हवा  जो  चली , द्वंद  संकोच  ठंढी  पवन  ले  उडी |
चेतना  खो  गयी  एक  तन्द्रा  मिली ,बन  के  काली  घटा  वह  बरसती रही ||
                                        "नवीन"

सोमवार, 1 जुलाई 2013

फिर भी बड़े गुमान मे दिखता है तिरंगा

हो  जाए  फ़रेबों  का  ना  व्यापार  ये मंदा |
होने  लगा  ईमान  का  अखबार  मे धंधा ||

मंदिर व  मस्जिदों  मे  वे  खैरात  कर  रहे |

आया जो जलजला तो मिला मौत का फंदा||

मठ  के हैं हुक्मरान वे  दौलत की निशानी |

इंसानियत के नाम पर  निकला नहीं चंदा ||

भूखा  हुआ इंसान भी  बेबस  है इस  कदर |

लाशों को नोच नोच के मजहब किया गंदा ||

वे रहनुमा हैं उनका भी अब काम अहम है |

इनकी  करें  निंदा कभी उनकी करें  निंदा ||

इज्जत भी बचाने मे है मोहताज आदमी |

करने लगा है  वक्त  भी  इंसान  को  नंगा ||

कचरे मे जहर फेकते  क्यों उसकी  राह में|

बर्बाद ना  कर दे  तुम्हें इस बार  भी गंगा ||

अब  दौर   है  चुनाव   का  सेकेंगे  रोटियाँ |

इस शहर मे होगा कहीं  इस बार भी  दंगा ||

प्रतिभा है दर किनार यहाँ वोट की खातिर |

फिर भी बड़े गुमान मे दिखता  है तिरंगा ||

                                         Naveen Mani Tripathi

रविवार, 23 जून 2013

हे केदार नाथ

हे केदार नाथ ,
तुम कैसे भगवान ?
हम तुमसे मिलने आए थे ,
तुम्हारा आशीर्वाद लेने |
आस्था के सागर मे डूब कर
 तुम्हारा  प्रसाद लेने |
पर यह क्या किया तुमने ?
क्या बिगाड़ा था हम सब ने ?
यदि आप विनाश के स्वामी हैं |
पूर्ण अंतर्यामी हैं |
पापियों को छोड़ कर
 अपने ही भक्तों का विनाश कर डाला !
महिलायें पुरुषों और अबोध बच्चों का
 संहार कर डाला !
निर्दोषों की लाशों से भर
  लिया अपना आँगन |
आसुओं के शैलाब से डूब गया वतन |
आश्चर्य .....महान आश्चर्य !
तुम मौन होकर अपने भक्तों को ,
मरते हुये देखते रहे ?
और वे तुम्हें आखिरी सांस तक पुकारते रहे |
कहाँ चली गई  तुम्हारी दया दृष्टि ?
कहाँ चली गई  तुम्हारी अनंत शक्ति ?
भक्त के साथ विश्वाश घात हुआ है |
शायद तुमसे बहुत बड़ा पाप हुआ है |
एक ऐसा पाप ,..।
जिसे तुम अपने आप को
 शायद ही माफ कर सकोगे |
ख़ुद को  कैसे भोला कह सकोगे ?
भक्तों को नहीं बचा सकते थे
शक्ति का आभास नहीं करा सकते थे |
भक्तों से पहले तुम्हें बह जाना चाहिए था |
तुम्हारा भी मंदिर
 टुकड़ों मे बिखर जाना चाहिए था |
पर ये क्या आज के बाबाओं की तरह ,
आप भी हो गए ?
चेलों के पैसों से प्रमाद मे डूब गए ?
तुम्हारी इस शक्ति की दयनीय अवस्था पर |
कौन करेगा अब विश्वास तुम पर ?
तुम से ज्यादा भोला तो ,
आज का इंसान है |
तुमसे शक्ति शाली तो उसका ईमान है |
वह आज भी ....।
तुम्हें व तुम्हारे मंदिर के बचने पर ,
गर्वान्वित है |
तुम्हारी महिमा पर आज भी आशान्वित है |
पर याद रखो !
प्रकृति के सिद्धान्त मे यदि कर्मफल शाश्वत है |
तो तुम्हारे लिए भी दंड यथावत है |
आडंबर पाखंड का  दंड भोगना पड़ता है |
मनुष्य क्या भगवान को भी डूबना पड़ता है ||

                                                     नवीन

मंगलवार, 2 अप्रैल 2013

लूटा गया वतन है ,ये अफवाह नहीं है

उनको  जम्हूरियत  की  तो  परवाह  नहीं है ।
लूटा  गया  वतन  है ,ये   अफवाह   नहीं  है ॥


चोरों  के गुनाहों  की सजा  मांगी थी जिसने ।
पर्दा   उठा   के   देखा  वही   शाह    नहीं   है ॥


विस्फोट कर  रहे  हैं  वो  आवाम   के  लिए ।
कैसे    कहोगे   अब   उसे   गुमराह  नहीं  है ॥


जुल्मो सितम को सहती बेटियों को बचा लो ।
तहजीब   डूबने    से   वो  , आगाह   नहीं   है ॥


बैठे  हैं  वो  घोटालों   के  दम  पर अमीर बन ।
उनकी  नजर  में   ये  कोई   गुनाह   नहीं   है ॥


उनकी सजाये   मौत  पे  बरपा  है  शोर  क्यों |
अमनो  शुकुं  की  ओर  अब   निगाह नहीं है ॥



रविवार, 24 मार्च 2013

बे हिचक तुमने जब, बेवफा कह दिया


तेरी   तारीफ   में  उसने   क्या   कह  दिया ।
वह   तो  खामोश  सबकी  जुबां  कर  दिया ॥
मयकशी   की   भी   चर्चा   हुई  जब  कभी ।
तेरे    पैमाने   को ,  मयकदा    कह   दिया ॥



एक   उलझी   हुई   सी , कथा   पढ़   लिया ।
मन  के  सपनों की  सारी, व्यथा  पढ़ लिया ॥
उसकी  जज्बात  लिखने , कलम  जब चली ।
सोच  कर  कुछ  मुझे,  अन्यथा  कह  दिया ॥ 



जिक्र चिलमन की महफ़िल में क्यूं कर दिया ।
चाँद   को   बादलों   ने ,  छिपा   फिर  लिया ॥
दर्द    माँगा   था     मैंने ,   तेरे    प्यार   में ।
तूने   इजहार   में   क्यूँ ,   दवा   रख   दिया ॥



एक   मुद्दत   से   जलता ,  रहा   वह   दिया ।
रोशनी   से   मोहब्बत  , बयाँ    कर    दिया ॥
नूर   आँखों   का   भी  , आज   शरमा  गया ।
बे  हिचक   तुमने   जब, बेवफा  कह   दिया ॥



एक   सहमी  नजर   को,  हया   कह   दिया ।
मैंने  कातिल  को  अहले  फिजा  कह  दिया ॥
जुल्फे  लहरायीं  जब,  क़त्ल   की   चाह  में ।
मैंने  रुखसत  चमन  अलविदा   कह  दिया ॥

                              

         -नवीन मणि त्रिपाठी

सोमवार, 18 मार्च 2013

गीत

         गीत 
                                               - नवीन मणि त्रिपाठी 


गीत सजे निकले जुबान से ,
मधुमय होठ तुम्हारा है ।
एहसासों  से शब्द थिरकते ,
अरमानों की धारा है ।
मैं तो लुटा दूं जीवन अपना
देश प्रेम की चौखट पर ।
बलिदानों को तुम समझोगे ,
क्या एतबार तुम्हारा है ?


मृत्यु वरण करते किसान हैं ,
भारत तेरी माटी पर ।
भ्रष्ट तंत्र का नव विधान है ।
मानवता की छाती पर ।
बीच सड़क पर चीर खीचते
इक अबला की भारत में ।
फिर भी मौन बने रहते हो ,
ये अपराध तुम्हारा है ॥
बलिदानों को क्या समझोगे
क्या ऐतबार तुम्हारा है ॥


अस्मत बिकती रोज यहाँ है
इज्जत की गलियारों में ।
लग जाते जीवन के मोल हैं
घोटालों के पालों में ।
आह निकलती है गरीब की
मौत की जिम्मेदारी लो ।
सारी दवा बेच खाते हो
कैसा पाप तुम्हारा है !!
बलिदानों को तुम समझोगे ,
क्या एतबार तुम्हारा है ?

बृद्ध जनों की मर्यादा का
होता है उपहास यहाँ ।
आम आदमी के लुटने का
पाओगे आभास यहाँ ।
माँ के पेट में रोती कन्या
टूटी जीवन की आशा ।
नारी के सम्मान का झंडा ??
क्या ये राज तुम्हारा है ??
बलिदानों को तुम समझोगे ,
क्या एतबार तुम्हारा है ?






















मंगलवार, 22 जनवरी 2013

सावधान पाकिस्तान !

                            सावधान पाकिस्तान !



निर्दोषों    का   लहू   पुकारे , अब   जबाब   देना   होगा ।
गीदड़   बन   कर  सर  काटोगे, तो   हिसाब  देना होगा ।।

चुन  चुन  कर  तुम खूब भेजते, आतंकी की  फ़ौज यहाँ ।
बिना  मौत   मारे  जाते  हैं, तेरे   विषधर   रोज   यहाँ ।।

घोर   निराशा  अंधकार  में,  पहुँच   चुका  आतंक  तेरा ।
 फौलादी  हैं  अमन   इरादे , पस्त  हुआ  ये  डंक  तेरा ।।

छल दंभ  द्वेष   पाखण्ड  ईंट   की नीव बनाई है  तुमने ।
झूठ  राग  व  गहन  कुटिलता   को  अपनाई है तुमने ।।

लादेन  की मौत पे नंगा , विश्व  पटल   पर नाचा था ।
धूल  झोकने  वाले  का तो  निकल चुका  दीवाला था ।।

फिर कसाब की फांसी पर क्यों तुमको शर्म नहीं आयी ।
तेरा  भेजा  आतंकी  था,  तेरी  लाज  न   बच   पायी ।।

अजहर  दाउद  व   हाफिज   का  तू  ही   पालनकर्ता है ।
दिल्ली   हो   कंधार   मुंबई,  दहशत   गर्द   प्रणेता  है ।।

अग्नि  बीज   बोया है तुमने अब  तुमको जलना होगा ।
अंगारों  पर  चलने  का  तो  स्वाद  तुम्हें  चखना होगा ।।

निर्दोषों   का   लहू   पुकारे   अब   जबाब   देना  होगा ।
गीदड़  बन  कर  सर  काटोगे , तो हिसाब करना होगा ।।

*     *        *           *              *           *           *

तालिबान  को  पाल - पोश  कर ,  सर्प  बनाने वाले हो ।
अमेरिका  के    निर्दोषों   को  तुम   मरवाने   वाले  हो ।।

तुम  पंजाबी  अमन  चैन  के  खून  खराबा  वाले  हो ।
करगिल  काली  करतूतों  से  जान  बचाकर  भागे हो ।।

यहाँ  मुंबई  बम  कांड  के   साजिश   रचने  वाले  हो ।
होटल  ताज  जलाने  वाले  कितने  दिल  के  काले हो ??

लोकतंत्र  के  भक्षक  हो  तुम  संसद  के  हमलावर हो ।
पीठ  दिखा  कर   जाने वाले   इकहत्तर के  धावक  हो ।।

बेशर्मी की  ताज  पहन  कर  राज  करोगे क्या अब तुम ।
विश्व  समझता खूब  है तुमको  सीधी  हो जायेगी  दुम ।।

तुम दुनियां  को  ठगने  वाले   नीति  भ्रष्ट  नियंता  हो ।
धोखेबाजी  है  नस  नस  में  क्रूर  सत्य  के  हन्ता हो ।।

राक्षस  हो  तुम  मानवता  के अब तुमको मरना  होगा ।
सत्य अहिंसा  की  शक्ति से तिल तिल  क्र जलना होगा ।।

निर्दोषों   का    लहू   पुकारे  , अब  जबाब   देना   होगा ।
गीदड़  बन  कर  सर  काटोगे, तो   हिसाब  देना   होगा ।।

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पाक  तेरे  नापाक   इरादों   से  भारत  भी   वाकिफ   है ।
पाप  तुम्हारा  सर  चढ़  बोले  दंड  मिले अब वाजिब है ।।

लोकतंत्र   को  डसने  वाले  आडम्बर   क्यों  करते   हो ।
खोल   फैक्ट्री   आतंकी  की  चाल   फरेबी  चलते   हो ।।

विध्वंसक  है   नीति   तुम्हारी  मानवता  अपराधी  हो ।
हाथ   रंगा  मासूम  रक्त  से   दुनियां   के  संतापी   हो ।।

हाय  लगी  है   मानवता   की   नष्ट  भ्रष्ट  हो  जाओगे ।
कायरता  वाली  करनी  से  अस्त   सदा   हो  जाओगे ।।

कश्मीर है  भारत का  सिरमौर  समझ  ले  आज अभी ।
देर   हुई    तो   पायेगा   रावलपिंडी   खो   गया  कहीं ।।

हमें  बलूच  पंजाब   प्रान्त  को  देश  बनाना  आता है ।
दुश्मन  को   दुश्मन  की  भाषा  में समझाना आता है ।।

भारत  के  हर  अपराधी  को  अब  तुमको  देना  होगा ।
भारत  माँ   के  शर्तों  पर  ही  अब  जीवन जीना होगा ।।

निर्दोषों    का   लहू  पुकारे ,अब   जबाब   देना   होगा ।
गीदड़  बन  कर  सर  काटोगे, तो   हिसाब  देना होगा ।।

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विश्व  तुम्हारी  कायरता  को   हैरत  से  अब देख रहा ।
तेरे घृणित कारनामो पर  जी  भर तुमको  कोस  रहा ।।

छ्दम  युद्ध  आतंक  सहारे  कुछ  बिगाड़  न  पाओगे ।
लक्ष्मण  रेखा  पार  करोगे  स्वयं  भस्म  हो जाओगे ।।

तेरे   स्वागत   की   खातिर   बारूद   बिछाए  बैठे  हैं ।
बम  परमाणु  के  निशान  पर  तुमको  लाये  बैठे हैं ।।

तेरी  गीदड़  भभकी  से  अब  कोई  फर्क  नहीं पड़ता ।
बातों  के  हो  भूत  नही  लातों  से  जाती  है  जड़ता ।।

पलक  झपकते  मानचित्र  से  तू  गायब  हो जाएगा ।
तेरी  करनी   ले   डूबेगी  शांति   मार्ग  खो   जायेगा ।।

तेरा   सारा   अहंकार   सब   यहाँ   धरा   रह  जाएगा ।
आतंकी  का  राष्ट्र  सदा  के  लिए  खाक  हो  जायेगा ।।

एक  एक  लाशों  का  कर्जा  ब्याज सहित भरना होगा ।
काश्मीर  का   बाकी  हिस्सा  भारत  को   देना  होगा ।।

निर्दोषों   का   लहू  पुकारे , अब   जबाब   देना   होगा ।
गीदड़  बन  कर  सर  काटोगे, तो   हिसाब  देना होगा ।।



                                                    प्रस्तुति - नवीन मणि त्रिपाठी

रविवार, 6 जनवरी 2013

आँधियों की इस हवा में, ये दिया जलता है क्यों

उसके छिप जाने से पहले, दिन यहाँ ढलता है क्यों ।
आँधियों  की इस हवा में, ये  दिया जलता है क्यों ।।

शोर  बरपा  मौत  से  है ,इस  शहर   की  जुस्तजू ।
दामिनी
 की रूह से, शिकवा- गिला  करता  है क्यों ।।

हम मुसाफिर  ,तुम मुसाफिर  ,मंजिलों की चाह  में ।
बे अदब के  कायदे  पर  ,इस तरह   चलता  है क्यों ।।

उसको  आनी एक   दिन  तुझको  बुलाने के लिए ।
रोज उसकी  फ़िक्र में, तू उम्र भर  मरता  है  क्यों ।।

नाम  चस्पा   हो  रहा   है , शहर  की   दीवार  पर।
शातिरों  के  इस झमेले  में, भला  पड़ता  है क्यों ।।

जिस्म  को  बेचीं  थी  उसने  घर  की  रोटी वास्ते ।

फिर बिकेगी तेरी महफ़िल ये तुझे लगता है क्यों ।।