तीखी कलम से

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जी हाँ मैं आयुध निर्माणी कानपुर रक्षा मंत्रालय में तकनीकी सेवार्थ कार्यरत हूँ| मूल रूप से मैं ग्राम पैकोलिया थाना, जनपद बस्ती उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ| मेरी पूजनीया माता जी श्रीमती शारदा त्रिपाठी और पूजनीय पिता जी श्री वेद मणि त्रिपाठी सरकारी प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं| उनका पूर्ण स्नेह व आशीर्वाद मुझे प्राप्त है|मेरे परिवार में साहित्य सृजन का कार्य पीढ़ियों से होता आ रहा है| बाबा जी स्वर्गीय श्री रामदास त्रिपाठी छंद, दोहा, कवित्त के श्रेष्ठ रचनाकार रहे हैं| ९० वर्ष की अवस्था में भी उन्होंने कई परिष्कृत रचनाएँ समाज को प्रदान की हैं| चाचा जी श्री योगेन्द्र मणि त्रिपाठी एक ख्यातिप्राप्त रचनाकार हैं| उनके छंद गीत मुक्तक व लेख में भावनाओं की अद्भुद अंतरंगता का बोध होता है| पिता जी भी एक शिक्षक होने के साथ साथ चर्चित रचनाकार हैं| माता जी को भी एक कवित्री के रूप में देखता आ रहा हूँ| पूरा परिवार हिन्दी साहित्य से जुड़ा हुआ है|इसी परिवार का एक छोटा सा पौधा हूँ| व्यंग, मुक्तक, छंद, गीत-ग़ज़ल व कहानियां लिखता हूँ| कुछ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहता हूँ| कवि सम्मेलन के अतिरिक्त काव्य व सहित्यिक मंचों पर अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को आप तक पहँचाने का प्रयास करता रहा हूँ| आपके स्नेह, प्यार का प्रबल आकांक्षी हूँ| विश्वास है आपका प्यार मुझे अवश्य मिलेगा| -नवीन

मंगलवार, 19 अगस्त 2014

वैचारिक प्रदूषण

हर ओर बलात्कार
नृशंस हत्याव्ओ से हाहाकार
गुंजित दिशाएं 
नारियो की चीख से।
फिर भी हम नही जाग पाए 
गहरी नीद से 
क्या हो गया भारतीय समाज को ?
कौन मिटा रहा 
इसके गौरव पूर्ण इतिहास को ?
चीर हरण में युधिष्ठिर की भांति
अखबारों की सुर्खियों पर
हम मौन हैं ।
हम इतना भी नहीं सोच पाते
सभ्यता संस्कृति के 
लुटेरे कौन हैं।
पाश्चात्य सभ्यता .....अँधानुकरण ।
युवाओं की जेब में 
ब्लू फिल्मो का संवरण
उत्तेजित करने वाले 
वस्त्रो का आवरण
महत्वाकांक्षाओं का भरण 
नैतिकता का क्षरण
रोज लुट रहा समाज का आभूषण
एक खतरनाक वायरस की तरह
फ़ैल रहा 
वैचारिक प्रदूषण।
हार गये तुम ?
उठो और देश बचाओ।
इस से पहले निगल जाये 
तुम्हारी स्मिता को ।
बची खुची सभ्यता को ।
अपनी खोई सभ्यता अपनाओ।
वैचारिक प्रदूषण भगाओ ।
वाचारिक प्रदूषण भगाओ।।

        -नवीन मणि त्रिपाठी

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