अंत में ठहरे अकेले ।
बचपन में कुछ मीत मिले
मिल संग बहुत खेले कूदे
मोटर गाडी फिर रेल चली
फिर धनुष तीर बंदूक चली
तब पापा ने भेजा स्कूल
सारी मस्ती चकनाचूर ।।
ये मुसीबत कौन झॆले ।
अंत में ठहरे अकेले।।
नया नया स्कूल मिल गया ।
नया दोस्त अनुकूल मिल गया।
फिर यारी बढ़ गयी हमारी ।
दुनिया फिर से लगी थी न्यारी ।
दुर्दिन फिर से साथ हो गये ।
विद्यालय से पास हो गये ।
किससे मिलते ? कौन बोले ?
अंत में ठहरे अकेले ।।
कालेज का अब दौर आ गया।
जीने का अब ठौर आ गया ।
वो भी मिलती मै भी मिलता
दिल में कुछ कुछ होने लगता
दिली मुहब्बत बढती जब तक
सारी डिग्री पूरी तब तक ।
वक्त ने मुझको धकेले
अंत में ठहरे अकेले
जीवन ने फिर सीख दिया
नही रहम का भीख दिया
रोजी रोटी ढूढ़ लिया ।
फिर कड़वा सा घूट पिया ।
बाबुल का छूटा घर द्वार ।
दूर हुआ सारा परिवार ।
मन कहता घर मुझे बुला ले ।
अंत में ठहरे अकेले ।।
फिर शादी से बीबी आयी ।
जीवन साथ निभाने आयी ।
स्वार्थ जगत से नाता लाई
तबतक खुश जब तलक कमाई
जब कुचक्र निर्धनता लाया
रिश्ता लगने लगा पराया
मतलब वाले सारे मेले ।
अंत में ठहरे अकेले ।।
जीवन में परिवार बढ़ा
बच्चों का संसार बढ़ा
बच्चो पर सर्वस्व लुटाया
खूब पढ़ाया खूब लिखाया
देख वक्त ने बदला भेष
रोजी मिली उसे परदेश
जिन्दगी में फिर झमेले।
अंत में ठहरे अकेले ।।
जब बुढ़ापा आ गया
वक्त थोडा रह गया
अनसुना करने लगे तब
औपचारिक बन गये सब
वे दुवाए मौत की करने लगे थे।
जो कभी इस देह से मेरे बने थे ।
किसको किसको और तौले ।
अंत में ठहरे अकेले ।
मै अकेला ही चला था ।
मोह माया में बधा था ।
सत्य का उपहास करके
मै ठगा सोचा स्वयं पे ।
छोड़ सारी कामना मैं
चल पड़ा निज आत्मा मैं ।
सीख जीवन की यहाँ ले ।
अंत में ठहरे अकेले ।।
--- नवीन मणि त्रिपठी
दूरभाष 9839626686
बचपन में कुछ मीत मिले
मिल संग बहुत खेले कूदे
मोटर गाडी फिर रेल चली
फिर धनुष तीर बंदूक चली
तब पापा ने भेजा स्कूल
सारी मस्ती चकनाचूर ।।
ये मुसीबत कौन झॆले ।
अंत में ठहरे अकेले।।
नया नया स्कूल मिल गया ।
नया दोस्त अनुकूल मिल गया।
फिर यारी बढ़ गयी हमारी ।
दुनिया फिर से लगी थी न्यारी ।
दुर्दिन फिर से साथ हो गये ।
विद्यालय से पास हो गये ।
किससे मिलते ? कौन बोले ?
अंत में ठहरे अकेले ।।
कालेज का अब दौर आ गया।
जीने का अब ठौर आ गया ।
वो भी मिलती मै भी मिलता
दिल में कुछ कुछ होने लगता
दिली मुहब्बत बढती जब तक
सारी डिग्री पूरी तब तक ।
वक्त ने मुझको धकेले
अंत में ठहरे अकेले
जीवन ने फिर सीख दिया
नही रहम का भीख दिया
रोजी रोटी ढूढ़ लिया ।
फिर कड़वा सा घूट पिया ।
बाबुल का छूटा घर द्वार ।
दूर हुआ सारा परिवार ।
मन कहता घर मुझे बुला ले ।
अंत में ठहरे अकेले ।।
फिर शादी से बीबी आयी ।
जीवन साथ निभाने आयी ।
स्वार्थ जगत से नाता लाई
तबतक खुश जब तलक कमाई
जब कुचक्र निर्धनता लाया
रिश्ता लगने लगा पराया
मतलब वाले सारे मेले ।
अंत में ठहरे अकेले ।।
जीवन में परिवार बढ़ा
बच्चों का संसार बढ़ा
बच्चो पर सर्वस्व लुटाया
खूब पढ़ाया खूब लिखाया
देख वक्त ने बदला भेष
रोजी मिली उसे परदेश
जिन्दगी में फिर झमेले।
अंत में ठहरे अकेले ।।
जब बुढ़ापा आ गया
वक्त थोडा रह गया
अनसुना करने लगे तब
औपचारिक बन गये सब
वे दुवाए मौत की करने लगे थे।
जो कभी इस देह से मेरे बने थे ।
किसको किसको और तौले ।
अंत में ठहरे अकेले ।
मै अकेला ही चला था ।
मोह माया में बधा था ।
सत्य का उपहास करके
मै ठगा सोचा स्वयं पे ।
छोड़ सारी कामना मैं
चल पड़ा निज आत्मा मैं ।
सीख जीवन की यहाँ ले ।
अंत में ठहरे अकेले ।।
--- नवीन मणि त्रिपठी
दूरभाष 9839626686
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (14-12-2014) को "धैर्य रख मधुमास भी तो आस पास है" (चर्चा-1827) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आदरनीय शास्त्री जी आभार
हटाएंजीवन यात्र को सुन्दर पद्य में बाँध दिया है आपने. सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रविष्टि
जवाब देंहटाएंसीख जीवन की यहाँ ले ।
जवाब देंहटाएंअंत में ठहरे अकेले ।
अच्छी रचना...अंतिम पंक्तियाँ तो बहुत ही अच्छी लगीं
शब्दों की मुस्कुराहट पर ...पुरानी डायरी के पन्ने : )