----**गीत**----
एक संवेदना , फिर गयी चेतना।
मन की मधुरिम कली खो गयी।।
नेह का गीत जब भी लिखा ।
वो सिसकती गली रो गयी ।।
एक तर्पण लिए एक अर्पण लिए।
जोहता बाट था मै समर्पण लिए।।
थक गया प्रेम पहिया भी घर्षण लिए।
खुद को ढूढा बहुत ,आज दर्पण लिए।।
इस तरह देखना , तीर से भेदना ।
श्वास जैसे चली हो गयी ।।
नेह का गीत जब भी लिखा ।
वो सिसकती गली रो गयी ।।
तुम बहकती रही उम्र के छाँव में ।
दृग छलकते रहे फिर तेरे गाँव में।।
बैठ हम भी गये थे उसी नाव में।
जिसपे बोली डुबाने की थी दांव में ।।
एक संकल्पना , दे गयी यन्त्रणा।
प्रीति जब मनचली हो गयी ।।
नेह का गीत जब भी लिखा ।
वो सिसकती गली रो गयी।।
शब्द की व्यंजना हम सजोते रहे।
हार में मन के मोती पिरोते रहे।।
भावना बीज ऊषर में बोते रहे ।
अश्रु की धार से हम भिगोते रहे।।
एक चिर कामना, बन गयी साधना।
जिन्दगी अधजली हो गयी ।।
नेह का गीत जब भी लिखा ।
वो सिसकती गली रो गयी।।
जब उगा एक बंजर में अंकुर प्रणय।
टूटता सा गया एक भंगुर ह्रदय।।
एक मनुहार भी पा सका ना विजय।
तोड़ कर है गया आज मन का प्रलय।।
प्रेम की अर्चना , जब बनी वासना ।
रात क्यूँ मखमली हो गयी ।।
नेह का गीत जब भी लिखा ।
वो सिसकती गली रो गयी ।।
- नवीन मणि त्रिपाठी
एक संवेदना , फिर गयी चेतना।
मन की मधुरिम कली खो गयी।।
नेह का गीत जब भी लिखा ।
वो सिसकती गली रो गयी ।।
एक तर्पण लिए एक अर्पण लिए।
जोहता बाट था मै समर्पण लिए।।
थक गया प्रेम पहिया भी घर्षण लिए।
खुद को ढूढा बहुत ,आज दर्पण लिए।।
इस तरह देखना , तीर से भेदना ।
श्वास जैसे चली हो गयी ।।
नेह का गीत जब भी लिखा ।
वो सिसकती गली रो गयी ।।
तुम बहकती रही उम्र के छाँव में ।
दृग छलकते रहे फिर तेरे गाँव में।।
बैठ हम भी गये थे उसी नाव में।
जिसपे बोली डुबाने की थी दांव में ।।
एक संकल्पना , दे गयी यन्त्रणा।
प्रीति जब मनचली हो गयी ।।
नेह का गीत जब भी लिखा ।
वो सिसकती गली रो गयी।।
शब्द की व्यंजना हम सजोते रहे।
हार में मन के मोती पिरोते रहे।।
भावना बीज ऊषर में बोते रहे ।
अश्रु की धार से हम भिगोते रहे।।
एक चिर कामना, बन गयी साधना।
जिन्दगी अधजली हो गयी ।।
नेह का गीत जब भी लिखा ।
वो सिसकती गली रो गयी।।
जब उगा एक बंजर में अंकुर प्रणय।
टूटता सा गया एक भंगुर ह्रदय।।
एक मनुहार भी पा सका ना विजय।
तोड़ कर है गया आज मन का प्रलय।।
प्रेम की अर्चना , जब बनी वासना ।
रात क्यूँ मखमली हो गयी ।।
नेह का गीत जब भी लिखा ।
वो सिसकती गली रो गयी ।।
- नवीन मणि त्रिपाठी
सुन्दर गीत लिखा है.
जवाब देंहटाएंबहुत मर्मस्पर्शी अहसास..उत्कृष्ट अभिव्यक्ति..
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