मिजाज ए इश्क़ को ये चाँद जब दीदार करता है ।
निगाहे हुस्न पर परदा कोई सौ बार करता है ।।
दुपट्टा यूं सरक जाना नही था इत्तफाकन यह ।
खबर कुछ तो मुकम्मल थी वो हमसे प्यार करता है।।
बरस जाने की ख्वाहिश अब्र रखता है तेरे दर पे ।
ये बादल दिल से अक्सर गुफ्तगूं दो चार करता है ।।
तू आके देख महफ़िल में यहां तेरी जरूरत है ।
मेरे महबूब तुझ पर भी कोई ऐतबार करता है ।।
तेरे काजल से शब् तो हो गयी बेइंतहा काली ।
तुम्हारा जुर्म कब किस्सा सही इकरार करता है ।।
लुटा देने की हसरत अब अदाओं पर तेरे साकी ।
मैकदे में कोई मयकस बहुत इफ्तार करता है ।।
तेरी पायल की घुंघरू से मिली जब आहटें उसको ।
हौसला फिर जवां होकर उसे बीमार करता है ।।
हमारी बेबसी को सिर्फ मेरा दिल समझता है ।
अजब चेहरा तेरा दिल से बहुत तकरार करता है ।।
वस्ल की दास्ताँ तो सिर्फ दिल के हर्फ़ में लिक्खा ।
यकीनन यह नयी चर्चा नया अखबार करता है।।
किताबों की तरह पढता तुझे दिनरात ऐ जालिम ।
परिंदा सुर्ख लब पर क्यूँ बहुत इजहार करता है ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
निगाहे हुस्न पर परदा कोई सौ बार करता है ।।
दुपट्टा यूं सरक जाना नही था इत्तफाकन यह ।
खबर कुछ तो मुकम्मल थी वो हमसे प्यार करता है।।
बरस जाने की ख्वाहिश अब्र रखता है तेरे दर पे ।
ये बादल दिल से अक्सर गुफ्तगूं दो चार करता है ।।
तू आके देख महफ़िल में यहां तेरी जरूरत है ।
मेरे महबूब तुझ पर भी कोई ऐतबार करता है ।।
तेरे काजल से शब् तो हो गयी बेइंतहा काली ।
तुम्हारा जुर्म कब किस्सा सही इकरार करता है ।।
लुटा देने की हसरत अब अदाओं पर तेरे साकी ।
मैकदे में कोई मयकस बहुत इफ्तार करता है ।।
तेरी पायल की घुंघरू से मिली जब आहटें उसको ।
हौसला फिर जवां होकर उसे बीमार करता है ।।
हमारी बेबसी को सिर्फ मेरा दिल समझता है ।
अजब चेहरा तेरा दिल से बहुत तकरार करता है ।।
वस्ल की दास्ताँ तो सिर्फ दिल के हर्फ़ में लिक्खा ।
यकीनन यह नयी चर्चा नया अखबार करता है।।
किताबों की तरह पढता तुझे दिनरात ऐ जालिम ।
परिंदा सुर्ख लब पर क्यूँ बहुत इजहार करता है ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 5 जून 2016 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
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