हास्य व्यंग (अवधी और भोजपुरी मिश्रित)
बुढ़ौती मा बाबा रहै दूरे दूरे ।
गदोरी मा सुर्ती मलै धीरे धीरे ।।
लइका से अपने मोबाइल मंगावे ।
औ बूढा का फ़ोटू इस्माइल दिखावें ।।
ऊ माडल के सबही स्टाइल दिखावें ।
विपासा के कपड़ा सियाइल देखावे ।।
मगन होइ के बाबा मोबाइल चलावे ।
जवानी में खुद का ठगाइल बतावें।।
लगल उनके चस्का है डारे ऊ डोरे ।
मोबाइल पे चैटिंग चलै पूरे पूरे ।।
बुढ़ौती माँ बाबा रहै दूरे दूरे ।
गदोरी मा सुर्ती मलै धीरे धीरे ।।
मजा फेसबुक के जब पा गइले बाबा ।
जवानी के फोटो लगा गइले बाबा ।।
करें रोज यारी बनै रोज रिस्ता ।
है लौटल जवानी मा फिर नवका पत्ता ।।
खा पी के नेट मा समाधी लगावें ।
नया वीडियो ढूंढी सबका देखावें ।।
जवानी के रंगवा चढ़ल पोरे पोरे ।
करै करिया जुल्फी लगै गोरे गोरे ।।
बुढ़ौती मा बाबा रहैं दूरे दूरे ।
गदोरी मा सुर्ती मलै धीरे धीरे ।।
नयी आई डी ऊ बनावले फरजी ।
पतोहियन के जइसन बनावले भउजी ।।
अब कातिक मा फागुन मनावेले बाबा ।
अब बुढ़िया के हरदम भुलावेले बाबा ।।
बुढ़िया बेचारी कहे दइया दइया ।
भइल बेकदर जइसे धाने का पाइया ।।
बाबा नासाइल दिखै थोरे थोरे ।
दसो अंगुरी घिव मा रहै बोरे बोरे ।।
बुढ़ौती मा बाबा रहैं दूरे दूरे ।
गदोरी मा सुर्ती मलै धीरे धीरे ।।
बाबा के देखी के बूढ़ा परेशान ।
बुढ़ऊ के लागल बा का कौनो शैतान।।
बुलावे न बोले दिखावे न देखें ।
जबै देखो फोनवा मा टिक टिक दबोटें ।।
बुढ़ौती माँ इनहू न खा जावें गच्चा ।
करो कुछ जतन जे से हो जावे अच्छा ।।
चढ़ौली कराही नदी तीरेे तीरे ।
करै विनती बूढा जपै हारे हारे ।।
बुढ़ौती मा बाबा रहैं दूरे दूरे ।
गदोरी मा सुर्ती मलै धीरे धीरे ।।
इक दिन मुकदमा कै तारीख आइल ।
भवानी कै किरपा घरा मा दिखाइल ।।
कचहरी मा जल्दी चला गइले बाबा ।
बिछौना मा फोनवा भुला गइले बाबा ।।
बजल फोन घण्टी तौ बुढ़िया उठौलिस।
हेलो डार्लिंग कहि के कौनो बोलौलिस।।
चकरा कइके बूढ़ा बोलै जोरे जोरे ।
कवन नाश पीटी तू हौ कौने ठौरे ।।
बुढ़ौती मा बाबा रहैं दूरे दूरे ।
गदोरी मा सुर्ती मलै धीरे धीरे ।।
तुरत बूढा बड़की पतोहिया बोलौली ।
उ फोनवा के सारी कहानी सुनौली ।।
करे लागल जब फोन चक छोटका नाती ।
खुले लागल बाबा कै सब पोल पाटी ।।
ऊ बाबा कै भेजल लब लेटर दिखावै ।
भौजियन का भेजल ऊ मैटर दिखावे ।।
लगल आगि मन मा जरै भोरे भोरे ।
करेजवा मा बतिया लगै चीरे चीरे ।
बुढ़ौती मा बाबा रहैं दूरे दूरे ।
गदोरी मा सुर्ती मलै धीरे धीरे ।।
पतोहिये बतावे गजब भइले बाबा ।
तो नाती कहे सठिया गइले बाबा ।।
औ घर मा बनल है गरम ई के चरचा ।
लगै जैसे बूढ़ा कै सुलगल बा मरचा ।
सुनै सारी बतिया कचा गइली बूढा ।
अंगनवा मा फोनवा पटकि अइली बूढा ।।
ऊ लोढ़वा से फोनवा कुटै चूरे चूरे ।
गरम भइले माथा दिखै घुइरे घुइरे ।
बुढ़ौती मा बाबा रहैं दूरे दूरे ।
गदोरी मा सुर्ती मलै धीरे धीरे ।।
भइल साँझ बाबा लौटि अइले घर का ।
न बोलेली बूढा न बोलेला लइका ।।
बढ़ा कोप बूढा लगौली जो झटका ।
तौ बाबा शरम से भये हक्का बक्का ।।
बड़ा तू तू मै मै बड़ा घम्मी घम्मा ।
फटल पूरा कुरता कहै सब निकम्मा ।।
गवाई के इज्जति लगैं कोरे कोरे ।
दिखै बाबा घुटना औ सर फोरे फोरे ।।
बुढ़ौती मा बाबा रहैं दूरे दूरे ।
गदोरी मा सुर्ती मलै धीरे धीरे ।।
-नवीन मणि त्रिपाठी
बुढ़ौती मा बाबा रहै दूरे दूरे ।
गदोरी मा सुर्ती मलै धीरे धीरे ।।
लइका से अपने मोबाइल मंगावे ।
औ बूढा का फ़ोटू इस्माइल दिखावें ।।
ऊ माडल के सबही स्टाइल दिखावें ।
विपासा के कपड़ा सियाइल देखावे ।।
मगन होइ के बाबा मोबाइल चलावे ।
जवानी में खुद का ठगाइल बतावें।।
लगल उनके चस्का है डारे ऊ डोरे ।
मोबाइल पे चैटिंग चलै पूरे पूरे ।।
बुढ़ौती माँ बाबा रहै दूरे दूरे ।
गदोरी मा सुर्ती मलै धीरे धीरे ।।
मजा फेसबुक के जब पा गइले बाबा ।
जवानी के फोटो लगा गइले बाबा ।।
करें रोज यारी बनै रोज रिस्ता ।
है लौटल जवानी मा फिर नवका पत्ता ।।
खा पी के नेट मा समाधी लगावें ।
नया वीडियो ढूंढी सबका देखावें ।।
जवानी के रंगवा चढ़ल पोरे पोरे ।
करै करिया जुल्फी लगै गोरे गोरे ।।
बुढ़ौती मा बाबा रहैं दूरे दूरे ।
गदोरी मा सुर्ती मलै धीरे धीरे ।।
नयी आई डी ऊ बनावले फरजी ।
पतोहियन के जइसन बनावले भउजी ।।
अब कातिक मा फागुन मनावेले बाबा ।
अब बुढ़िया के हरदम भुलावेले बाबा ।।
बुढ़िया बेचारी कहे दइया दइया ।
भइल बेकदर जइसे धाने का पाइया ।।
बाबा नासाइल दिखै थोरे थोरे ।
दसो अंगुरी घिव मा रहै बोरे बोरे ।।
बुढ़ौती मा बाबा रहैं दूरे दूरे ।
गदोरी मा सुर्ती मलै धीरे धीरे ।।
बाबा के देखी के बूढ़ा परेशान ।
बुढ़ऊ के लागल बा का कौनो शैतान।।
बुलावे न बोले दिखावे न देखें ।
जबै देखो फोनवा मा टिक टिक दबोटें ।।
बुढ़ौती माँ इनहू न खा जावें गच्चा ।
करो कुछ जतन जे से हो जावे अच्छा ।।
चढ़ौली कराही नदी तीरेे तीरे ।
करै विनती बूढा जपै हारे हारे ।।
बुढ़ौती मा बाबा रहैं दूरे दूरे ।
गदोरी मा सुर्ती मलै धीरे धीरे ।।
इक दिन मुकदमा कै तारीख आइल ।
भवानी कै किरपा घरा मा दिखाइल ।।
कचहरी मा जल्दी चला गइले बाबा ।
बिछौना मा फोनवा भुला गइले बाबा ।।
बजल फोन घण्टी तौ बुढ़िया उठौलिस।
हेलो डार्लिंग कहि के कौनो बोलौलिस।।
चकरा कइके बूढ़ा बोलै जोरे जोरे ।
कवन नाश पीटी तू हौ कौने ठौरे ।।
बुढ़ौती मा बाबा रहैं दूरे दूरे ।
गदोरी मा सुर्ती मलै धीरे धीरे ।।
तुरत बूढा बड़की पतोहिया बोलौली ।
उ फोनवा के सारी कहानी सुनौली ।।
करे लागल जब फोन चक छोटका नाती ।
खुले लागल बाबा कै सब पोल पाटी ।।
ऊ बाबा कै भेजल लब लेटर दिखावै ।
भौजियन का भेजल ऊ मैटर दिखावे ।।
लगल आगि मन मा जरै भोरे भोरे ।
करेजवा मा बतिया लगै चीरे चीरे ।
बुढ़ौती मा बाबा रहैं दूरे दूरे ।
गदोरी मा सुर्ती मलै धीरे धीरे ।।
पतोहिये बतावे गजब भइले बाबा ।
तो नाती कहे सठिया गइले बाबा ।।
औ घर मा बनल है गरम ई के चरचा ।
लगै जैसे बूढ़ा कै सुलगल बा मरचा ।
सुनै सारी बतिया कचा गइली बूढा ।
अंगनवा मा फोनवा पटकि अइली बूढा ।।
ऊ लोढ़वा से फोनवा कुटै चूरे चूरे ।
गरम भइले माथा दिखै घुइरे घुइरे ।
बुढ़ौती मा बाबा रहैं दूरे दूरे ।
गदोरी मा सुर्ती मलै धीरे धीरे ।।
भइल साँझ बाबा लौटि अइले घर का ।
न बोलेली बूढा न बोलेला लइका ।।
बढ़ा कोप बूढा लगौली जो झटका ।
तौ बाबा शरम से भये हक्का बक्का ।।
बड़ा तू तू मै मै बड़ा घम्मी घम्मा ।
फटल पूरा कुरता कहै सब निकम्मा ।।
गवाई के इज्जति लगैं कोरे कोरे ।
दिखै बाबा घुटना औ सर फोरे फोरे ।।
बुढ़ौती मा बाबा रहैं दूरे दूरे ।
गदोरी मा सुर्ती मलै धीरे धीरे ।।
-नवीन मणि त्रिपाठी
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " खुशियाँ बाँटते चलिये - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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