मासूमियत के साथ बहुत बेवफा मिले ।
चेहरे तमाम उम्र हकीकत जुदा मिले ।।
देकर गया है ऐतबार फिर नया नया ।
शायद नए सितम का नया सिलसिला मिले।।
है इश्क़ का बुखार क्यूँ तेरे दयार में ।
तेरे शहर में लोग भी शादी सुदा मिले ।।
आई कहाँ वो बात हमारी जुबान पर ।
जिस हौसले में तुझसे हजारों दफ़ा मिले ।।
ये इन्तजार उसको जमाने से आज तक ।
ठहरी नजर के पास कोई दिलरुबा मिले ।।
तुझसे मिली निगाह बदलती फ़िजा मिली ।
बदले सभी फकीर बदलते खुदा मिले ।।
हुस्नो मिजाज देख के तारीफ क्या हुई ।
देखो मेरे हुजूर अभी तक खफा मिले ।।
क्या बात दुश्मनो की करूँ मैं यहां नवीन ।
अक्सर मेरे अजीज उसी पर फ़िदा मिले ।।
--नवीन मणि त्रिपाठी
चेहरे तमाम उम्र हकीकत जुदा मिले ।।
देकर गया है ऐतबार फिर नया नया ।
शायद नए सितम का नया सिलसिला मिले।।
है इश्क़ का बुखार क्यूँ तेरे दयार में ।
तेरे शहर में लोग भी शादी सुदा मिले ।।
आई कहाँ वो बात हमारी जुबान पर ।
जिस हौसले में तुझसे हजारों दफ़ा मिले ।।
ये इन्तजार उसको जमाने से आज तक ।
ठहरी नजर के पास कोई दिलरुबा मिले ।।
तुझसे मिली निगाह बदलती फ़िजा मिली ।
बदले सभी फकीर बदलते खुदा मिले ।।
हुस्नो मिजाज देख के तारीफ क्या हुई ।
देखो मेरे हुजूर अभी तक खफा मिले ।।
क्या बात दुश्मनो की करूँ मैं यहां नवीन ।
अक्सर मेरे अजीज उसी पर फ़िदा मिले ।।
--नवीन मणि त्रिपाठी
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (03-08-2016) को "हम और आप" (चर्चा अंक-2423) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " पिंगली वैंकैया - भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के अभिकल्पक “ , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंvishesh aabhar mishr ji
हटाएंसचमुच बड़ी ही प्यारी गज़ल है मेरे हुज़ूर
जवाब देंहटाएंचाहत का यहीं से तो कोई सिलसिला मिले!
shukriya hujoor
हटाएंsadar naman shastri ji
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