तीखी कलम से

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जी हाँ मैं आयुध निर्माणी कानपुर रक्षा मंत्रालय में तकनीकी सेवार्थ कार्यरत हूँ| मूल रूप से मैं ग्राम पैकोलिया थाना, जनपद बस्ती उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ| मेरी पूजनीया माता जी श्रीमती शारदा त्रिपाठी और पूजनीय पिता जी श्री वेद मणि त्रिपाठी सरकारी प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं| उनका पूर्ण स्नेह व आशीर्वाद मुझे प्राप्त है|मेरे परिवार में साहित्य सृजन का कार्य पीढ़ियों से होता आ रहा है| बाबा जी स्वर्गीय श्री रामदास त्रिपाठी छंद, दोहा, कवित्त के श्रेष्ठ रचनाकार रहे हैं| ९० वर्ष की अवस्था में भी उन्होंने कई परिष्कृत रचनाएँ समाज को प्रदान की हैं| चाचा जी श्री योगेन्द्र मणि त्रिपाठी एक ख्यातिप्राप्त रचनाकार हैं| उनके छंद गीत मुक्तक व लेख में भावनाओं की अद्भुद अंतरंगता का बोध होता है| पिता जी भी एक शिक्षक होने के साथ साथ चर्चित रचनाकार हैं| माता जी को भी एक कवित्री के रूप में देखता आ रहा हूँ| पूरा परिवार हिन्दी साहित्य से जुड़ा हुआ है|इसी परिवार का एक छोटा सा पौधा हूँ| व्यंग, मुक्तक, छंद, गीत-ग़ज़ल व कहानियां लिखता हूँ| कुछ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहता हूँ| कवि सम्मेलन के अतिरिक्त काव्य व सहित्यिक मंचों पर अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को आप तक पहँचाने का प्रयास करता रहा हूँ| आपके स्नेह, प्यार का प्रबल आकांक्षी हूँ| विश्वास है आपका प्यार मुझे अवश्य मिलेगा| -नवीन

शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2017

ग़ज़ल --बस नज़र क्या मिली , हो गया आपका

212 212 212 212 
याद  आता  रहा  सिलसिला  आपका ।
बस नज़र क्या मिली हो गया आपका ।।

आपकी   सादगी   यूं  असर  कर  गई ।
रेत  पर   नाम  मैंने   लिखा  आपका ।।

इश्क़  की  जाने  कैसी  वो  तहरीर  थी ।
रातभर  इक वही  खत  पढ़ा  आपका ।।

है सलामत  अभी तक वो खुशबू  यहां ।
गुल किताबों से मुझको मिला आपका ।।

वक्त  की भीड़  में खो  गया इस  कदर ।
पूछता   रह   गया  बस  पता  आपका ।।

इक  ख़ता  जो  हुई  भूल  पाया   कहाँ ।
यूं  अदा   से   बहुत   रूठना   आपका ।।

बात  शब्  भर  चली हिज्र तक आ गई ।
फर्ज  था वस्ल  तक  जोड़ना  आपका ।।

टूट  कर   सब   बिखरते   गए  हौसले ।
था ज़माना  गज़ब  था  खुदा  आपका ।।

जख़्म गहरा हुआ ,हो गया फिर  सितम ।
इस  तरह  हाल  फिर  पूछना  आपका ।।

होश    खोने    गया   मैकदे    में   तभी ।
दे गया   कोई   फिर  वास्ता   आपका ।।

         - नवीन मणि त्रिपाठी

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