1212 1122 1212 22
ये जिंदगी है अभी तक नहीं दुआ पहुँची ।
खुदा के पास तलक भी न इल्तजा पहुँची।।
गमो का बोझ उठाती चली गई हँसकर ।
तेरे दयार में कैसी बुरी हवा पहुँची ।।
अजीब दौर है रोटी की दास्ताँ लेकर ।
यतीम घर से कोई माँ कई दफ़ा पहुची ।।
तरक्कियों की इबारत है सिर्फ पन्नों तक ।
है गांव अब भी वही गाँव कब शमा पहुँची ।।
यहां है जुल्म गरीबी में टूटना यारो ।
मुसीबतों में जफ़ा भी कई गुना पहुँची।।
है फरेबों का चमन मत गुहार कर बन्दे ।
के रिश्वतों के बिना कब कोई सदा पहुँची ।।
वो बिक गई थी सरेआम रात महफ़िल में ।
सुना है घर पे कई बार दिल रुबा पहुँची ।।
ये भूंख रोज जलाती है ख्वाहिशें देखो ।
जम्हूरियत है ये साहब नहीं हया पहुंची ।।
बड़ा बेदर्द जमाना है उस को क्या देगा ।
हुई तमाम वफायें मगर ख़ता पहुँची ।।
ठगा गया है ये इंसान फिर सियासत से ।
नई हयात के बदले नई क़ज़ा पहुंची ।।
--नवीन मणि त्रिपाठी
दयार -क्षेत्र
इल्तिजा- प्रार्थना निवेदन
जम्हूरियत -लोकतन्त्र
जफ़ा -घृणा
हयात- जिंदगी
कज़ा- मौत
ये जिंदगी है अभी तक नहीं दुआ पहुँची ।
खुदा के पास तलक भी न इल्तजा पहुँची।।
गमो का बोझ उठाती चली गई हँसकर ।
तेरे दयार में कैसी बुरी हवा पहुँची ।।
अजीब दौर है रोटी की दास्ताँ लेकर ।
यतीम घर से कोई माँ कई दफ़ा पहुची ।।
तरक्कियों की इबारत है सिर्फ पन्नों तक ।
है गांव अब भी वही गाँव कब शमा पहुँची ।।
यहां है जुल्म गरीबी में टूटना यारो ।
मुसीबतों में जफ़ा भी कई गुना पहुँची।।
है फरेबों का चमन मत गुहार कर बन्दे ।
के रिश्वतों के बिना कब कोई सदा पहुँची ।।
वो बिक गई थी सरेआम रात महफ़िल में ।
सुना है घर पे कई बार दिल रुबा पहुँची ।।
ये भूंख रोज जलाती है ख्वाहिशें देखो ।
जम्हूरियत है ये साहब नहीं हया पहुंची ।।
बड़ा बेदर्द जमाना है उस को क्या देगा ।
हुई तमाम वफायें मगर ख़ता पहुँची ।।
ठगा गया है ये इंसान फिर सियासत से ।
नई हयात के बदले नई क़ज़ा पहुंची ।।
--नवीन मणि त्रिपाठी
दयार -क्षेत्र
इल्तिजा- प्रार्थना निवेदन
जम्हूरियत -लोकतन्त्र
जफ़ा -घृणा
हयात- जिंदगी
कज़ा- मौत
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