वज़्न - 2122 1122 1122 22/112
अब्रे जहराब से बरसा है ये कैसा पानी ।
भर गया मुल्क की आँखों में हया का पानी ।।
मिट ही जाए न कहीं शाख जे एन यू की अब ।
आइये साफ़ करें मिल के ये गन्दा पानी।।
मन्नतें उन की हैं हो जाएं वतन के टुकड़े ।
सर के ऊपर से निकल जाए न खारा पानी ।।
कुछ हैं जयचन्द सुख़नवर जो खुशामद में लगे ।
बेच बैठे हैं जो इमानो कलम का पानी ।।
आलिमों का है ये तालीम ख़ता कौन कहे ।
ख़ास साजिश के तहत हद से गुजारा पानी ।।
जल गए अम्नो सुकूँ ख़ाक चमन कर बैठे ।
देखिये शह्र में अब आग लगाता पानी ।।
हो रहे पाक परस्ती में वो मशहूर बहुत ।
ले रहे मौज से जो देश में दाना पानी ।।
तालिबानों का हक़ीक़त से भला क्या रिश्ता ।
भेजते अक्ल सरेआम वो काला पानी ।।
हर तरफ धुंध है छाया है घना सा कुहरा ।
खौफ ख़ातिर है यहां देर से ठहरा पानी ।।
बुनते साजिश हैं ये गद्दार बगावत के लिए ।
तल्ख़ अरमान पे लोगों ने बिखेरा पानी ।।
--नवीन मणि त्रिपाठी
अब्रे जहराब से बरसा है ये कैसा पानी ।
भर गया मुल्क की आँखों में हया का पानी ।।
मिट ही जाए न कहीं शाख जे एन यू की अब ।
आइये साफ़ करें मिल के ये गन्दा पानी।।
मन्नतें उन की हैं हो जाएं वतन के टुकड़े ।
सर के ऊपर से निकल जाए न खारा पानी ।।
कुछ हैं जयचन्द सुख़नवर जो खुशामद में लगे ।
बेच बैठे हैं जो इमानो कलम का पानी ।।
आलिमों का है ये तालीम ख़ता कौन कहे ।
ख़ास साजिश के तहत हद से गुजारा पानी ।।
जल गए अम्नो सुकूँ ख़ाक चमन कर बैठे ।
देखिये शह्र में अब आग लगाता पानी ।।
हो रहे पाक परस्ती में वो मशहूर बहुत ।
ले रहे मौज से जो देश में दाना पानी ।।
तालिबानों का हक़ीक़त से भला क्या रिश्ता ।
भेजते अक्ल सरेआम वो काला पानी ।।
हर तरफ धुंध है छाया है घना सा कुहरा ।
खौफ ख़ातिर है यहां देर से ठहरा पानी ।।
बुनते साजिश हैं ये गद्दार बगावत के लिए ।
तल्ख़ अरमान पे लोगों ने बिखेरा पानी ।।
--नवीन मणि त्रिपाठी
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