*221 2121 2121 212*
मेरी गली के पास से वो यूँ गुजर गया ।
ऐसा लगा जमीं पे आसमा उतर गया ।।
माना मुहब्बतों के फ़लसफे अजीब है ।
शायद नज़र खराब थी वो भी उधर गया ।।
मैं रात भर सवाल पूछता रहा मगर ।
उसका जबाब हौसलों के पर क़तर गया ।।
तुमने दिए जो जख़्म आज तक न भर सके ।
जब जब किया है याद दर्द फिर उभर गया ।
इस तर्ह उस हसीन की तू पैरवी न कर ।
मतलब निकलने पर जो रब्त से मुकर गया ।।
तू मेरी आजमाइशों की कोशिशें न कर ।
जो आया तोड़ने वो हो के दर बदर गया ।।
मत राज जिंदगी का पूछिए हुजूर अब ।
कातिल भी मेरी मुस्कुराहटों पे मर गया ।।
जब भी गए हैं आईने के पास वो सनम ।
किस्मत बुलंद पा के आइना निखर गया ।।
--नवीन मणि त्रिपाठी
मेरी गली के पास से वो यूँ गुजर गया ।
ऐसा लगा जमीं पे आसमा उतर गया ।।
माना मुहब्बतों के फ़लसफे अजीब है ।
शायद नज़र खराब थी वो भी उधर गया ।।
मैं रात भर सवाल पूछता रहा मगर ।
उसका जबाब हौसलों के पर क़तर गया ।।
तुमने दिए जो जख़्म आज तक न भर सके ।
जब जब किया है याद दर्द फिर उभर गया ।
इस तर्ह उस हसीन की तू पैरवी न कर ।
मतलब निकलने पर जो रब्त से मुकर गया ।।
तू मेरी आजमाइशों की कोशिशें न कर ।
जो आया तोड़ने वो हो के दर बदर गया ।।
मत राज जिंदगी का पूछिए हुजूर अब ।
कातिल भी मेरी मुस्कुराहटों पे मर गया ।।
जब भी गए हैं आईने के पास वो सनम ।
किस्मत बुलंद पा के आइना निखर गया ।।
--नवीन मणि त्रिपाठी
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