चाँद बहुत शर्मीला होगा ।
थोड़ा रंग रगीला होगा ।।
यादों में क्यों नींद उडी है।
कोई छैल छबीला होगा ।।
रेतों पर जो शब्द लिखे थे ।
डूब गया वह टीला होगा ।।
ख़ास अदा पर मिटने वालों ।
पथ आगे पथरीला होगा ।।
जिसने हुस्न बचाकर रक्खा । हाथ उसी का पीला होगा ।।
ज़ख़्मी जाने कितने दिल हैं ।
ख़ंजर बहुत नुकीला होगा ।।
मत उसको मासूम् समझना ।
दिलवर बहुत हठीला होगा ।।
बिछड़ेंगे जीवन के साथी।
गठबंधन गर ढीला होगा ।।
होश बचाकर नज़र मिलाना ।
चेहरा बड़ा नशीला होगा ।।
ऐ प्यासे मत प्यास बुझाना ।
यह पनघट जहरीला होगा ।।
22 22 22 22
-- नवीन मणि त्रिपाठी
थोड़ा रंग रगीला होगा ।।
यादों में क्यों नींद उडी है।
कोई छैल छबीला होगा ।।
रेतों पर जो शब्द लिखे थे ।
डूब गया वह टीला होगा ।।
ख़ास अदा पर मिटने वालों ।
पथ आगे पथरीला होगा ।।
जिसने हुस्न बचाकर रक्खा । हाथ उसी का पीला होगा ।।
ज़ख़्मी जाने कितने दिल हैं ।
ख़ंजर बहुत नुकीला होगा ।।
मत उसको मासूम् समझना ।
दिलवर बहुत हठीला होगा ।।
बिछड़ेंगे जीवन के साथी।
गठबंधन गर ढीला होगा ।।
होश बचाकर नज़र मिलाना ।
चेहरा बड़ा नशीला होगा ।।
ऐ प्यासे मत प्यास बुझाना ।
यह पनघट जहरीला होगा ।।
22 22 22 22
-- नवीन मणि त्रिपाठी
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरूवार (30-03-2017) को
जवाब देंहटाएं"स्वागत नवसम्वत्सर" (चर्चा अंक-2611)
पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'