2122 2122 2122 2122
हाथ पर बस हाथ रखकर याद आना चाहता है ।
वो मुकद्दर इस तरह से आजमाना चाहता है ।।
बेसबब यूं ही नही वह पूछता घर का पता अब ।
रस्म है ख़त भेजना शायद निभाना चाहता है ।।
स्याह रातों का है मंजर चाँदनी मुमकिन न होगी ।
रोशनी के वास्ते वह घर जलाना चाहता है ।।
गुफ्तगूं होने लगी है फिर किसी का क़त्ल होगा ।
है कोई मासूम आशिक़ सर उठाना चाहता है ।।
शह्र में दहशत का आलम है रकीबों का असर भी ।
तब भी वह अहले ज़िगर से इक फ़साना चाहता है ।।
चार सू खुशबू हवा में सुर्ख है चेहरा किसी का ।
चन्द लम्हों के लिए वह दिल लुटाना चाहता है ।।
नफरतों के इन सियासी अब्र से है तीरगी यह ।
अब कोई सूरज अमन का डूब जाना चाहता है ।।
मत वफ़ा का जिक्र कर उससे वफ़ा होगी भला कब ।
वो गुहर ख़ातिर सदफ़ पर जुल्म ढाना चाहता है ।।
गो के अब अच्छा मुसाफ़िर कह रहे हैं लोग उसको ।
दाग रहजन का वो दामन से मिटाना चाहता है ।।
बैठ जाते हैं परिंदे जब मुहब्बत के शज़र पर ।
है कोई जालिम ,कबूतर पर निशाना चाहता है ।।
दर्द के इज़हार से हासिल हुआ यह फ़लसफ़ा भी ।
यह ज़माना हाल पर बस मुस्कुराना चाहता है ।।
-- नवीन मणि त्रिपाठी
हाथ पर बस हाथ रखकर याद आना चाहता है ।
वो मुकद्दर इस तरह से आजमाना चाहता है ।।
बेसबब यूं ही नही वह पूछता घर का पता अब ।
रस्म है ख़त भेजना शायद निभाना चाहता है ।।
स्याह रातों का है मंजर चाँदनी मुमकिन न होगी ।
रोशनी के वास्ते वह घर जलाना चाहता है ।।
गुफ्तगूं होने लगी है फिर किसी का क़त्ल होगा ।
है कोई मासूम आशिक़ सर उठाना चाहता है ।।
शह्र में दहशत का आलम है रकीबों का असर भी ।
तब भी वह अहले ज़िगर से इक फ़साना चाहता है ।।
चार सू खुशबू हवा में सुर्ख है चेहरा किसी का ।
चन्द लम्हों के लिए वह दिल लुटाना चाहता है ।।
नफरतों के इन सियासी अब्र से है तीरगी यह ।
अब कोई सूरज अमन का डूब जाना चाहता है ।।
मत वफ़ा का जिक्र कर उससे वफ़ा होगी भला कब ।
वो गुहर ख़ातिर सदफ़ पर जुल्म ढाना चाहता है ।।
गो के अब अच्छा मुसाफ़िर कह रहे हैं लोग उसको ।
दाग रहजन का वो दामन से मिटाना चाहता है ।।
बैठ जाते हैं परिंदे जब मुहब्बत के शज़र पर ।
है कोई जालिम ,कबूतर पर निशाना चाहता है ।।
दर्द के इज़हार से हासिल हुआ यह फ़लसफ़ा भी ।
यह ज़माना हाल पर बस मुस्कुराना चाहता है ।।
-- नवीन मणि त्रिपाठी
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