2122 1212 22
कैसे कह दूँ मैं हूँ ज़ुदा तुझसे ।
चैन आया है हर दफ़ा तुझसे ।।
इक सुलगती हुई सी खामोशी ।
इक फ़साना लिखा मिला तुझसे ।।
वो इशारा था आँख का तेरे ।
दिल था पागल छला गया तुझसे ।।
भूल जाती मेरा तसव्वुर भी ।
क्यूँ हुई रात भर दुआ तुझसे ।।
बेखुदी में जो इश्क कर बैठा ।
उम्र भर बस वही जला तुझसे ।।
कर लूँ कैसे यकीन वादों पर ।
कोई वादा कहाँ निभा तुझसे ।।
कुछ रक़ीबों से गुफ्तगूं करके ।
तीर वाज़िब नहीं चला तुझसे ।।
रूठ जाने की है अदा ज़ालिम ।
और हासिल ही क्या हुआ तुझसे ।।
कत्ल करने का सिलसिला जारी ।
आशिको ने सितम कहा तुझसे ।।
खूब इल्जाम लग रहा लेकिन ।
चाँद पूछा हरिक रज़ा तुझसे ।।
उस से छुपना भी गैर मुमकिन है ।
ख्वाब में रोज मिल रहा तुझसे ।।
-- नवीन मणि त्रिपाठी
कैसे कह दूँ मैं हूँ ज़ुदा तुझसे ।
चैन आया है हर दफ़ा तुझसे ।।
इक सुलगती हुई सी खामोशी ।
इक फ़साना लिखा मिला तुझसे ।।
वो इशारा था आँख का तेरे ।
दिल था पागल छला गया तुझसे ।।
भूल जाती मेरा तसव्वुर भी ।
क्यूँ हुई रात भर दुआ तुझसे ।।
बेखुदी में जो इश्क कर बैठा ।
उम्र भर बस वही जला तुझसे ।।
कर लूँ कैसे यकीन वादों पर ।
कोई वादा कहाँ निभा तुझसे ।।
कुछ रक़ीबों से गुफ्तगूं करके ।
तीर वाज़िब नहीं चला तुझसे ।।
रूठ जाने की है अदा ज़ालिम ।
और हासिल ही क्या हुआ तुझसे ।।
कत्ल करने का सिलसिला जारी ।
आशिको ने सितम कहा तुझसे ।।
खूब इल्जाम लग रहा लेकिन ।
चाँद पूछा हरिक रज़ा तुझसे ।।
उस से छुपना भी गैर मुमकिन है ।
ख्वाब में रोज मिल रहा तुझसे ।।
-- नवीन मणि त्रिपाठी
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