22112 22112 22112 22112
(सुखनवर अंतर राष्ट्रीय ग्रुप के द्वरा दी गई बह्र पर एक ग़ज़ल )
ये इश्क़ कहीं बदनाम न हो इतना तू मेरा दीदार न कर ।
ऐ जाने वफ़ा ऐ जाने ज़िगर बेबस पे नज़र से वार न कर ।।
इन शोख अदाओं से न अभी इतरा के न चल लहरा के न चल
यह उम्र बड़ी कमसिन है सनम
ख़ंजर पे अभी तू धार न कर ।।
हैं दफ़्न यहाँ पर राज़ कई इस कब्र पे लिक्खी बात तो पढ़ ।
अब वक्त गया अब उम्र ढली अब और नया इजहार न कर ।।
चेहरे की लकीरों को जो पढ़ा तो राज हुआ मालूम मुझे । दिल मांग गया तुझसे है कोई यह बात अभी इनकार न कर ।।
सब दर्द फ़साने बीत गए वो रात गई वो बात गई ।।
लिक्खा था जो खत ऐ इश्क़ तुझे उस ख़त को मेरे अखबार न कर ।।
जज़्बात बहे अश्कों में यहां बेफिक्र तमाशा देख रहे ।
ये आह जला सकती है तुझे लहजे को अभी खुद्दार न कर ।।
इनकार कभी इकरार कभी गफ़लत में गुज़रती उम्र यहां ।
मफ़हूम बड़े उलझे से मिले ऐ चाँद गमे बीमार न कर ।।
कुछ ख्वाब सजाकर बैठ गया फितरत ने किया मजबूर उसे ।
मासूम है दीवाने की नज़र हसरत को अभी तू ख्वार न कर ।।
-- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
(सुखनवर अंतर राष्ट्रीय ग्रुप के द्वरा दी गई बह्र पर एक ग़ज़ल )
ये इश्क़ कहीं बदनाम न हो इतना तू मेरा दीदार न कर ।
ऐ जाने वफ़ा ऐ जाने ज़िगर बेबस पे नज़र से वार न कर ।।
इन शोख अदाओं से न अभी इतरा के न चल लहरा के न चल
यह उम्र बड़ी कमसिन है सनम
ख़ंजर पे अभी तू धार न कर ।।
हैं दफ़्न यहाँ पर राज़ कई इस कब्र पे लिक्खी बात तो पढ़ ।
अब वक्त गया अब उम्र ढली अब और नया इजहार न कर ।।
चेहरे की लकीरों को जो पढ़ा तो राज हुआ मालूम मुझे । दिल मांग गया तुझसे है कोई यह बात अभी इनकार न कर ।।
सब दर्द फ़साने बीत गए वो रात गई वो बात गई ।।
लिक्खा था जो खत ऐ इश्क़ तुझे उस ख़त को मेरे अखबार न कर ।।
जज़्बात बहे अश्कों में यहां बेफिक्र तमाशा देख रहे ।
ये आह जला सकती है तुझे लहजे को अभी खुद्दार न कर ।।
इनकार कभी इकरार कभी गफ़लत में गुज़रती उम्र यहां ।
मफ़हूम बड़े उलझे से मिले ऐ चाँद गमे बीमार न कर ।।
कुछ ख्वाब सजाकर बैठ गया फितरत ने किया मजबूर उसे ।
मासूम है दीवाने की नज़र हसरत को अभी तू ख्वार न कर ।।
-- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
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