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बहुत बेचैन वो पाये गए हैं ।
जिन्हें कुछ ख्वाब दिखलाये गये हैं ।।
चुनावों का अजब मौसम है यारों ।
ख़ज़ाने फिर से खुलवाए गए हैं ।।
करप्शन पर नहीं ऊँगली उठाना ।
बहुत से लोग उठवाए गये हैं ।।
तरक्की गांव में सड़कों पे देखी ।
फ़क़त गड्ढ़े ही भरवाए गये हैं ।।
पकौड़े बेच लेंगे खूब आलिम ।
नये व्यापार सिखलाये गये हैं ।।
बड़े उद्योग के दावे हुए थे ।
मिलों के दाम लगवाए गए हैं।।
मिली गंगा मुझे रोती हुई फिर ।
फरेबी जुल्म कुछ ढाये गये हैं ।।
यकीं सरकार पर जो कर लिए थे ।
वही मक़तल में अब लाये गए हैं।।
इलेक्शन आ रहा है सोच लेना ।
तुम्हारे जख्म सहलाये गये हैं ।।
बहुत बेचैन वो पाये गए हैं ।
जिन्हें कुछ ख्वाब दिखलाये गये हैं ।।
चुनावों का अजब मौसम है यारों ।
ख़ज़ाने फिर से खुलवाए गए हैं ।।
करप्शन पर नहीं ऊँगली उठाना ।
बहुत से लोग उठवाए गये हैं ।।
तरक्की गांव में सड़कों पे देखी ।
फ़क़त गड्ढ़े ही भरवाए गये हैं ।।
पकौड़े बेच लेंगे खूब आलिम ।
नये व्यापार सिखलाये गये हैं ।।
बड़े उद्योग के दावे हुए थे ।
मिलों के दाम लगवाए गए हैं।।
मिली गंगा मुझे रोती हुई फिर ।
फरेबी जुल्म कुछ ढाये गये हैं ।।
यकीं सरकार पर जो कर लिए थे ।
वही मक़तल में अब लाये गए हैं।।
इलेक्शन आ रहा है सोच लेना ।
तुम्हारे जख्म सहलाये गये हैं ।।
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