मुक्तक
लिपट कफ़न में आबरू को खो गयी बेटी ।
बाप के कन्धों पे , अर्थी में सो गयी बेटी ।।
ये तख्तो- ताज व , ताकत बहुत निकम्मी है ।
अलविदा कह तेरे कानून को गयी बेटी ।।
हम सहादत के नाम पर , हिसाब मांगेगे ।
इस हुकूमत से तो वाजिब जबाब मांगेगे ।।
चिताएँ खूब सजा दी है, आज अबला की ।
हर हिमाकत पे , तुझ से इन्कलाब मांगेगे ।।
पंख तितली का कुतर कर गये बयान तेरे ।
तालिबानी की शक्ल में , हुए फरमान तेरे ।।
कुर्सिया पा के हुए तुम भी बदगुमान बहुत ।
अस्मतें सारी , लूट ले गये दरबान तेरे ।।
लाश झूली जो दरख्तों पे शर्म सार हुए ।
जुर्म को जुर्म ना कहने के इश्तिहार हुए ।।
अब है लानत तेरी मनहूस बादशाहत को ।
हौसले पस्त , बेटियों के बेसुमार हुए ।।
वो मुहब्बत का , जनाजा निकाल ही देंगे ।
तहजीब ए तालिबान , दिल में डाल ही देंगे ।।
शजर की शाख पे ,लटकी ये आबरू देखो।
कली ना खिल सके, गुलशन उजाड़ ही देंगे।।
तुम बहुत शातिर तेरी ताकत भी कातिल हो गयी ।
अब तेरी सरकार बेबस और जाहिल हो गयी ।।
इंतकामी फैसला , फाँसी लटकती बेटियां ।
चुन के लाये थे तुझे , ये सोच गाफिल हो गयी ।।
नवीन
एक के बाद ह्रदय विदारक कुकृत्यों के बारे में जानकर बहुत दुःख होता है. असहाय हम दुःख के सिवा कर भी क्या सकते है . शायद दर्द को शब्द दे सकते हैं जो आपने किया है.
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शनिवार 14 जून 2014 को लिंक की जाएगी...............
जवाब देंहटाएंhttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
बहुत खूब ज़ी .....एक सफल अभिव्यक्ति अपने अंतरमन की |
जवाब देंहटाएंबढ़िया आदर्श लेख , नवीन भाई धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंI.A.S.I.H - ब्लॉग ( हिंदी में प्रकार की जानकारियाँ )
सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंफादर्स डे पर यह कविता कहीं दर्द और टीस पैदा करती है , मंगलकामनाएं आपको !
जवाब देंहटाएंअनुभूतियों और भावनाओं का सुंदर समवेश इस खूबसूरत प्रस्तुति में
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