गजल
मुद्दत के बाद चाँद दिखा छत पे तुम्हारे ।
दीदार ए जश्न ईद हुई दिल में हमारे ।।
इस जुस्तजूँ का ख्वाब सजोता रहा फ़कीर।
ढूढेंगे हम भी दिन में आसमान में तारे ।।
बरसात के मौसम की हवाओं का है असर।
बदले हुए मिजाज हैं बदले से नज़ारे ।।
कमजर्फ ज़माने में गजल हो ना बेअसर।
अंग्रेजियत में ढल रहे हैं रोज कुवाँरे ।।
नफ़रत की बात कर ना नसीहत की बात कर ।
खिड़की खुली रखोगे तो आएँगी बहारें ।।
बादल बरस के जायेंगे , उम्मीद बेपनाह ।
तपती जमीं की प्यास तो बेसब्र निहारे ।।
हलचल हुई है तेज , हैं मदहोश सी लहरें ।
शायद भिगो के जायेंगी वो जलते किनारे।।
नवीन
मुद्दत के बाद चाँद दिखा छत पे तुम्हारे ।
दीदार ए जश्न ईद हुई दिल में हमारे ।।
इस जुस्तजूँ का ख्वाब सजोता रहा फ़कीर।
ढूढेंगे हम भी दिन में आसमान में तारे ।।
बरसात के मौसम की हवाओं का है असर।
बदले हुए मिजाज हैं बदले से नज़ारे ।।
कमजर्फ ज़माने में गजल हो ना बेअसर।
अंग्रेजियत में ढल रहे हैं रोज कुवाँरे ।।
नफ़रत की बात कर ना नसीहत की बात कर ।
खिड़की खुली रखोगे तो आएँगी बहारें ।।
बादल बरस के जायेंगे , उम्मीद बेपनाह ।
तपती जमीं की प्यास तो बेसब्र निहारे ।।
हलचल हुई है तेज , हैं मदहोश सी लहरें ।
शायद भिगो के जायेंगी वो जलते किनारे।।
नवीन
नफ़रत की बात कर ना नसीहत की बात कर ।
जवाब देंहटाएंखिड़की खुली रखोगे तो आएँगी बहारें ।।
बहुत ही बढिया ....
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन हुनर की कीमत - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस' प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (29-06-2014) को ''अभिव्यक्ति आप की'' ''बातें मेरे मन की'' (चर्चा मंच 1659) पर भी होगी!
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
खिड़की का खुला रहना जरुरी है ताज़ी हवाओं के लिए !
जवाब देंहटाएंअच्छी ग़ज़ल !
नफ़रत की बात कर ना नसीहत की बात कर ।
जवाब देंहटाएंखिड़की खुली रखोगे तो आएँगी बहारें ।।
...वाह...बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...
Bahut sundar wa laybadh rachana....wah
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा ग़ज़ल ... हर शेर लाजवाब ..
जवाब देंहटाएंप्यारा गजल ......................हलचल हुई है तेज , हैं मदहोश सी लहरें ।
जवाब देंहटाएंशायद भिगो के जायेंगी वो जलते किनारे।।अच्छा लगा।