ग़ज़ल
शुकूँने रात भी क्यूँ तुमसे बिताई ना गयी ।
बेवफाई भी आज दिलसे निभाई ना गयी ।।
अश्क बेशर्म थे महफ़िल में निकल कर आये ।
वक्त ए तहजीब उन्हें तुमसे सिखाई ना गयी।।
लफ्ज फिसले तमाम कांपते होठों से तेरे।
मुद्दतों बाद याद हमसे भुलाई ना गयी।।
तेज बारिस की हवाओं में उड़ गये आचल।
हया की सर्द नजर तुमसे मिलाई ना गई।।
दफन हजार खतो में हुए जज्बात मेरे।
चिट्ठियाँ तुमको कभी हमसे दिखाई ना गयी।।
ये मुहब्बत किसी तफरीह की चर्चा क्यूँ है।
बात छोटी थी मगर तबसे छिपाई ना गयी।।
इन नजाकत सी अदाओं में नसा की फितरत।
रिंद थे वो भी जिन्हें तुम से पिलाई ना गयी।।
सुलग रही है जिन्दगी धुँआ -धुँआ बनकर।
ये उल्फतों की आग जब से बुझाई ना गयी ।।
कहा दरख्त ने साया का तू हकदार कहाँ ?
किस्मत ए साया तुझे रब से लिखाई ना गयी।।
इस इश्क समन्दर में मुमकिन है डूब जाना ।
ये कश्तियाँ भी यहाँ सबसे चलाई ना गयी।।
-- नवीन मणि त्रिपाठी
शुकूँने रात भी क्यूँ तुमसे बिताई ना गयी ।
बेवफाई भी आज दिलसे निभाई ना गयी ।।
अश्क बेशर्म थे महफ़िल में निकल कर आये ।
वक्त ए तहजीब उन्हें तुमसे सिखाई ना गयी।।
लफ्ज फिसले तमाम कांपते होठों से तेरे।
मुद्दतों बाद याद हमसे भुलाई ना गयी।।
तेज बारिस की हवाओं में उड़ गये आचल।
हया की सर्द नजर तुमसे मिलाई ना गई।।
दफन हजार खतो में हुए जज्बात मेरे।
चिट्ठियाँ तुमको कभी हमसे दिखाई ना गयी।।
ये मुहब्बत किसी तफरीह की चर्चा क्यूँ है।
बात छोटी थी मगर तबसे छिपाई ना गयी।।
इन नजाकत सी अदाओं में नसा की फितरत।
रिंद थे वो भी जिन्हें तुम से पिलाई ना गयी।।
सुलग रही है जिन्दगी धुँआ -धुँआ बनकर।
ये उल्फतों की आग जब से बुझाई ना गयी ।।
कहा दरख्त ने साया का तू हकदार कहाँ ?
किस्मत ए साया तुझे रब से लिखाई ना गयी।।
इस इश्क समन्दर में मुमकिन है डूब जाना ।
ये कश्तियाँ भी यहाँ सबसे चलाई ना गयी।।
-- नवीन मणि त्रिपाठी
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