---***ग़ज़ल***---
मजहब के नाम थोडा जहर घोलिये हुजूर।
फिर सुबहो शाम फायदा भी तौलिये हुजूर ।।
अव्वल था जो तालीम में वो भूख से मरा।
कुर्सी गधों के नाम है अब झेलिये हुजूर।।
टूटा है नौजवान यहाँ भेद भाव से ।
ये भी है इंतकाम नहीं भूलिए हुजूर ।।
आजाद मुल्क से हमे सौगात ये मिला ।
हम हो रहे गुलाम जरा बोलिए हुजूर।।
ऐसी जम्हूरियत जो गुलामी की राह दे।
होती है वो नाकाम आँख खोलिए हुजूर।।
आरक्षणों के नाम पे टूटा है हौसला।
गफलत का है मुकाम नहीं फूलिये हुजूर ।।
नफरत की राजनीति जात-पात बन गयी।
हिडोला है ये हराम खूब झूलिए हुजूर ।।
आहट किसी तूफ़ान की देती ये खामोशी ।
फिर हो न कत्ले आम बहुत सो लिए हुजूर।।
जाकर सुलगती आग कलेजों में देखलो।
कुछ नब्ज से अंजाम भी टटोलिये हुजूर।।
-- नवीन मणि त्रिपाठी
मजहब के नाम थोडा जहर घोलिये हुजूर।
फिर सुबहो शाम फायदा भी तौलिये हुजूर ।।
अव्वल था जो तालीम में वो भूख से मरा।
कुर्सी गधों के नाम है अब झेलिये हुजूर।।
टूटा है नौजवान यहाँ भेद भाव से ।
ये भी है इंतकाम नहीं भूलिए हुजूर ।।
आजाद मुल्क से हमे सौगात ये मिला ।
हम हो रहे गुलाम जरा बोलिए हुजूर।।
ऐसी जम्हूरियत जो गुलामी की राह दे।
होती है वो नाकाम आँख खोलिए हुजूर।।
आरक्षणों के नाम पे टूटा है हौसला।
गफलत का है मुकाम नहीं फूलिये हुजूर ।।
नफरत की राजनीति जात-पात बन गयी।
हिडोला है ये हराम खूब झूलिए हुजूर ।।
आहट किसी तूफ़ान की देती ये खामोशी ।
फिर हो न कत्ले आम बहुत सो लिए हुजूर।।
जाकर सुलगती आग कलेजों में देखलो।
कुछ नब्ज से अंजाम भी टटोलिये हुजूर।।
-- नवीन मणि त्रिपाठी
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