पापा अब मेरे आँसू की तुम
और परीक्षा मत लेना ।
सैलाब उमड़ते आँखों में
अब धैर्य की शिक्षा मत देना।
मैं टूट रहा हूँ अब प्रतिपल।
खो रहा अनवरत हूँ सम्बल ।
मैं शक्तिहीन दुःख में विलीन।
आभासित जैसे कर्म हीन ।
ईश्वर भी हुआ पराया सा ।
मन व्याकुल है बौराया सा ।
मैं भीख मांगता प्राणों की
वह चाह रहा सब हर लेना ।।
पापा अब मेरे आंसू की तुम
और परीक्षा मत लेना ।।
आडम्बर सा ईश्वर लगता ।
निष्तेज हुई जाती क्षमता ।
जप पूजन सारे व्यर्थ लगे ।
संभावित यहां अनर्थ लगे ।
सिसकियाँ रोक कर जीता हूँ।
आँसू को छुपकर पीता हूँ ।
ईश्वर ही न्याय विधाता है
फिर ऐसी दीक्षा मत देना ।
पापा अब मेरे आंसू की तुम
और परिक्षा मत लेना ।।
है रोम रोम ऋण भार लिए ।
तुमसे ही जीवन सार लिए ।
तुम भाग्य विधाता हो मेरे ।
इस जन्म के दाता हो मेरे।
मैं शून्य विकल्पों के संग में ।
निश्चेतन सा प्रस्तर रंग में ।
नौका आशा की डूब रही
अब मुश्किल बहुत इसे खेना ।
पापा अब मेरे आंसू की तुम
और परीक्ष मत लेना।।
सब दृश्य पटल पर घूम रहा ।
बचपन का दर्पण लौट रहा ।
संघर्षो की वह अमर कथा।
देखी मैंने सम्पूर्ण व्यथा।
वह आत्म शक्ति वह संस्कार ।
है मिला मुझे अद्भुद दुलार ।
मैं बिछड़ सकूँ न अब तुमसे।
आशीष मुझे शत शत देना ।
पापा अब मेरे आंसू की तुम
और परीक्षा मत लेना ।।
दुर्भाग्य चरम पर बोल रहा ।
अंतस का साहस डोल रहा ।
इस अवनी में मैं बिखर रहा ।
असहाय बना मैं सिहर रहा ।
निः शब्द हुआ मैं सुलग रहा ।
हूँ मौन अंक से विलख रहा ।
यह तीक्ष्ण वेदना है निर्मम
अभिशप्त समीक्षा मत देना ।
पापा अब मेरे आंसू की तुम
और परीक्षा मत लेना ।।
नवीन
और परीक्षा मत लेना ।
सैलाब उमड़ते आँखों में
अब धैर्य की शिक्षा मत देना।
मैं टूट रहा हूँ अब प्रतिपल।
खो रहा अनवरत हूँ सम्बल ।
मैं शक्तिहीन दुःख में विलीन।
आभासित जैसे कर्म हीन ।
ईश्वर भी हुआ पराया सा ।
मन व्याकुल है बौराया सा ।
मैं भीख मांगता प्राणों की
वह चाह रहा सब हर लेना ।।
पापा अब मेरे आंसू की तुम
और परीक्षा मत लेना ।।
आडम्बर सा ईश्वर लगता ।
निष्तेज हुई जाती क्षमता ।
जप पूजन सारे व्यर्थ लगे ।
संभावित यहां अनर्थ लगे ।
सिसकियाँ रोक कर जीता हूँ।
आँसू को छुपकर पीता हूँ ।
ईश्वर ही न्याय विधाता है
फिर ऐसी दीक्षा मत देना ।
पापा अब मेरे आंसू की तुम
और परिक्षा मत लेना ।।
है रोम रोम ऋण भार लिए ।
तुमसे ही जीवन सार लिए ।
तुम भाग्य विधाता हो मेरे ।
इस जन्म के दाता हो मेरे।
मैं शून्य विकल्पों के संग में ।
निश्चेतन सा प्रस्तर रंग में ।
नौका आशा की डूब रही
अब मुश्किल बहुत इसे खेना ।
पापा अब मेरे आंसू की तुम
और परीक्ष मत लेना।।
सब दृश्य पटल पर घूम रहा ।
बचपन का दर्पण लौट रहा ।
संघर्षो की वह अमर कथा।
देखी मैंने सम्पूर्ण व्यथा।
वह आत्म शक्ति वह संस्कार ।
है मिला मुझे अद्भुद दुलार ।
मैं बिछड़ सकूँ न अब तुमसे।
आशीष मुझे शत शत देना ।
पापा अब मेरे आंसू की तुम
और परीक्षा मत लेना ।।
दुर्भाग्य चरम पर बोल रहा ।
अंतस का साहस डोल रहा ।
इस अवनी में मैं बिखर रहा ।
असहाय बना मैं सिहर रहा ।
निः शब्द हुआ मैं सुलग रहा ।
हूँ मौन अंक से विलख रहा ।
यह तीक्ष्ण वेदना है निर्मम
अभिशप्त समीक्षा मत देना ।
पापा अब मेरे आंसू की तुम
और परीक्षा मत लेना ।।
नवीन
बढ़िया
जवाब देंहटाएंआज का यथार्थ चित्रण
जवाब देंहटाएंबेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
जवाब देंहटाएंबड़ी सच्चाई से निकली पीड़ा की गहन अभिव्यक्ति . इसीलिये कविता निजी होकर भी सबके हृदय की वेदना का गान है
जवाब देंहटाएंबड़ी सच्चाई से निकली पीड़ा की गहन अभिव्यक्ति . इसीलिये कविता निजी होकर भी सबके हृदय की वेदना का गान है
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