वस्ल की रात से पहले मुहब्बत कत्ल होती है ।
हिज्र आने से पहले ही नसीहत क्यूँ मचलती है ।।
मेरी दीवानगी पर फिर चली शमशीर है उसकी ।
बहुत दर्दे सितम लेकर ये किस्मत रोज जलती है ।।
वस्ल = मिलन
हिज्र= जुदाई के पल
शमशीर=तलवार
nmt
तुम्हारी शरबती आँखों से फिर उसने गुजारिश की ।
छलक जाओ जरा ,ये तश्नगी हद से मिलाती है।।
छोड़ कर आ रहे हैं मयकदे को रिन्द ये सारे ।
नशा उतरा नहीं जिनको नज़र तेरी पिलाती है ।।
बेवफाई का सबक दे गयी बोतल तेरी ।।
नशा ये वक्त की पाबंदियों में दूर हुआ ।
मेरे साकी ने पिला दी जो निगाहों से मुझे ।
उम्र भर होश ना आया बड़ा सरूर हुआ।।
NMT
बहुत रोका था मैंने बेअदब से हो गयीं नज़रें ।
बगावत कर गयीं ज़ालिम तेरे दीदार की खातिर।।
जन्नते हूर से बेहतर अदा ने की गिरफ्तारी।
सज़ा ए इश्क हो मुझको तेरा मुजरिम हुआ हाजिर।।
नवीन
मेरी बेचैनियों पर कब ,तरस आएगी ऐ हमदम ।
तुम्हारी इक झलक खातिर, है बेचीं जिंदगी अपनी ।।
छिपोगी कब तलक हमसे ,नजर आती नहीं क्यूँ तुम ।
दिल ने पहली मुहब्बत को ,है भेजी बन्दगी अपनी ।।
ये रिश्ता तोड़ कर तुमको तसल्ली मिल गयी लेकिन ।
जला डाला है जिसका ख्वाब उसको मौत हासिल है।।
बड़ी नाजो नफासत से तेरी पहलू में आया था ।
तेरी ये बेरुखी सचमुच बड़े नफ़रत के काबिल है ।।
-नवीन
जब तेरे कूचे से होकर है चली पुरवा हवा ।
फिर तेरी खुशबू मुझे बेचैन कर जाने लगी।।
मैं सड़क से देखता हूँ जब मका तेरा सनम ।
वो तेरी अगडाइयां अब रैन तड़पाने लगीं ।।
सोचा था दोस्त बनके निभा देंगे दोस्ती ।
पर चाँद सा ये हुस्न इरादा बदल गया ।।
आँखों की शरारत भरी मदहोशियाँ तेरी।
देखा जो लब पे जाम तो वादा बदल गया ।।
जब कैद खाने में मुसलसल उम्र ही गुजरी मेरी ।
तब फिर नयी आज़ादियाँ अच्छी नहीं लगतीं ।
रुका है कब कहाँ किस से मुहब्बत का फ़साना ये ।
बंदिशों पर ये लहरें और भी बेख़ौफ़ होती हैं ।।
तुम्हारे जख्म तो भर जाएंगे इक दिन मेरे जानिब।
यहाँ तो मौत हासिल है तुम्हारी बेरुखी लेकर ।।
-
हिज्र आने से पहले ही नसीहत क्यूँ मचलती है ।।
मेरी दीवानगी पर फिर चली शमशीर है उसकी ।
बहुत दर्दे सितम लेकर ये किस्मत रोज जलती है ।।
वस्ल = मिलन
हिज्र= जुदाई के पल
शमशीर=तलवार
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तुम्हारी शरबती आँखों से फिर उसने गुजारिश की ।
छलक जाओ जरा ,ये तश्नगी हद से मिलाती है।।
छोड़ कर आ रहे हैं मयकदे को रिन्द ये सारे ।
नशा उतरा नहीं जिनको नज़र तेरी पिलाती है ।।
बेवफाई का सबक दे गयी बोतल तेरी ।।
नशा ये वक्त की पाबंदियों में दूर हुआ ।
मेरे साकी ने पिला दी जो निगाहों से मुझे ।
उम्र भर होश ना आया बड़ा सरूर हुआ।।
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बहुत रोका था मैंने बेअदब से हो गयीं नज़रें ।
बगावत कर गयीं ज़ालिम तेरे दीदार की खातिर।।
जन्नते हूर से बेहतर अदा ने की गिरफ्तारी।
सज़ा ए इश्क हो मुझको तेरा मुजरिम हुआ हाजिर।।
नवीन
मेरी बेचैनियों पर कब ,तरस आएगी ऐ हमदम ।
तुम्हारी इक झलक खातिर, है बेचीं जिंदगी अपनी ।।
छिपोगी कब तलक हमसे ,नजर आती नहीं क्यूँ तुम ।
दिल ने पहली मुहब्बत को ,है भेजी बन्दगी अपनी ।।
ये रिश्ता तोड़ कर तुमको तसल्ली मिल गयी लेकिन ।
जला डाला है जिसका ख्वाब उसको मौत हासिल है।।
बड़ी नाजो नफासत से तेरी पहलू में आया था ।
तेरी ये बेरुखी सचमुच बड़े नफ़रत के काबिल है ।।
-नवीन
जब तेरे कूचे से होकर है चली पुरवा हवा ।
फिर तेरी खुशबू मुझे बेचैन कर जाने लगी।।
मैं सड़क से देखता हूँ जब मका तेरा सनम ।
वो तेरी अगडाइयां अब रैन तड़पाने लगीं ।।
सोचा था दोस्त बनके निभा देंगे दोस्ती ।
पर चाँद सा ये हुस्न इरादा बदल गया ।।
आँखों की शरारत भरी मदहोशियाँ तेरी।
देखा जो लब पे जाम तो वादा बदल गया ।।
जब कैद खाने में मुसलसल उम्र ही गुजरी मेरी ।
तब फिर नयी आज़ादियाँ अच्छी नहीं लगतीं ।
रुका है कब कहाँ किस से मुहब्बत का फ़साना ये ।
बंदिशों पर ये लहरें और भी बेख़ौफ़ होती हैं ।।
तुम्हारे जख्म तो भर जाएंगे इक दिन मेरे जानिब।
यहाँ तो मौत हासिल है तुम्हारी बेरुखी लेकर ।।
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