----***ग़ज़ल***----
कुछ तिलस्मी लगा, ये तेरा प्यार है।
बेवफा कैसा तेरा, ये इकरार है ।।
रोटियों में थी खुशबू तेरे हाथ की ।
चाहतो की भी कैसी ये दरकार है ।।
ख्वाब में रोज आती हो जाने वफ़ा।
ख्वाहिशों की तू महंगी सी बाजार है।।
लिख दिया तुमने खत में सबक है मगर ।
क्या करूँ हुश्न तेरा गुनहगार है ।।
अब वफाओं के ढूढो न मोती यहां ।
ये मुहब्बत बनी आज व्यापार है।।
उस नदी से भी अब वास्ता क्या रखूँ ।
जो बहा ले गयी मुझको मझधार है।।
जिनके मीठे बचन दिल चुराते रहे ।
अब जुबाँ पर वहां खार ही खार है ।।
उसकी फितरत बदलती रही रात दिन ।
दिल लगाने से क्यूँ वो खबरदार है।।
-नवीन
कुछ तिलस्मी लगा, ये तेरा प्यार है।
बेवफा कैसा तेरा, ये इकरार है ।।
रोटियों में थी खुशबू तेरे हाथ की ।
चाहतो की भी कैसी ये दरकार है ।।
ख्वाब में रोज आती हो जाने वफ़ा।
ख्वाहिशों की तू महंगी सी बाजार है।।
लिख दिया तुमने खत में सबक है मगर ।
क्या करूँ हुश्न तेरा गुनहगार है ।।
अब वफाओं के ढूढो न मोती यहां ।
ये मुहब्बत बनी आज व्यापार है।।
उस नदी से भी अब वास्ता क्या रखूँ ।
जो बहा ले गयी मुझको मझधार है।।
जिनके मीठे बचन दिल चुराते रहे ।
अब जुबाँ पर वहां खार ही खार है ।।
उसकी फितरत बदलती रही रात दिन ।
दिल लगाने से क्यूँ वो खबरदार है।।
-नवीन
अच्छी रचना
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