अहले चमन की दास्ताँ लिखते रहो ।
कुछ तो उसका राज़दाँ बनते रहो ।।
हो रही डुग्गी मुनादी इश्क की ।
तूम उसे बस मेहरबाँ कहते रहो ।।
मत लगा तू तोहमतें नाजुक है वो ।
राह पर बन बेजुबाँ चलते रहो ।।
अक्स कागज पर सितमगर का लिए ।
शब् में बनकर के शमाँ जलते रहो ।।
इल्तजा भी क्या है तुझसे ऐ सनम ।
चाहतों का यह कुरां पढ़ते रहों ।।
जिंदगी का है तकाजा बस यहां ।
इश्क पर साँसे फनां करते रहो ।।
नवीन
कुछ तो उसका राज़दाँ बनते रहो ।।
हो रही डुग्गी मुनादी इश्क की ।
तूम उसे बस मेहरबाँ कहते रहो ।।
मत लगा तू तोहमतें नाजुक है वो ।
राह पर बन बेजुबाँ चलते रहो ।।
अक्स कागज पर सितमगर का लिए ।
शब् में बनकर के शमाँ जलते रहो ।।
इल्तजा भी क्या है तुझसे ऐ सनम ।
चाहतों का यह कुरां पढ़ते रहों ।।
जिंदगी का है तकाजा बस यहां ।
इश्क पर साँसे फनां करते रहो ।।
नवीन
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