अहले चमन की दास्ताँ लिखते रहो ।
कुछ तो उसका राज़दाँ बनते रहो ।।
हो रही डुग्गी मुनादी इश्क की ।
तूम भी थोड़े मेहरबाँ लगते रहो ।।
मत लगा तू तोहमतें नाजुक है वो ।
राह पर बन बेजुबाँ चलते रहो ।।
अक्स कागज पर सितमगर का लिए ।
शब् में बन करके शमाँ जलते रहो ।।
इल्तजा भी क्या है तुझसे ऐ सनम ।
फिर फरेबी का गुमाँ पढ़ते रहों ।।
जिंदगी का है तकाजा बस यहां ।
इश्क पर साँसे फनां करते रहो ।।
यह शहर भी जेब को पहचानता है ।
गर्दिशों में बन धुँआ उड़ते रहो ।।
सच से वाकिफ हो चुकी है आशिकी ।
तुम जमी को आसमाँ कहते रहो ।।
- नवीन मणि त्रिपाठी
नवीन
कुछ तो उसका राज़दाँ बनते रहो ।।
हो रही डुग्गी मुनादी इश्क की ।
तूम भी थोड़े मेहरबाँ लगते रहो ।।
मत लगा तू तोहमतें नाजुक है वो ।
राह पर बन बेजुबाँ चलते रहो ।।
अक्स कागज पर सितमगर का लिए ।
शब् में बन करके शमाँ जलते रहो ।।
इल्तजा भी क्या है तुझसे ऐ सनम ।
फिर फरेबी का गुमाँ पढ़ते रहों ।।
जिंदगी का है तकाजा बस यहां ।
इश्क पर साँसे फनां करते रहो ।।
यह शहर भी जेब को पहचानता है ।
गर्दिशों में बन धुँआ उड़ते रहो ।।
सच से वाकिफ हो चुकी है आशिकी ।
तुम जमी को आसमाँ कहते रहो ।।
- नवीन मणि त्रिपाठी
नवीन
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जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 07 मार्च 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " खूंटा तो यहीं गडेगा - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंजिंदगी का है तकाजा बस यहां ।
जवाब देंहटाएंइश्क पर साँसे फनां करते रहो ।।
यह शहर भी जेब को पहचानता है ।
गर्दिशों में बन धुँआ उड़ते रहो ।।
........ बहुत सुन्दर ....
सार्थक व प्रशंसनीय रचना...
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है।
Thanks
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