नैना बाई आज सत्तर के पड़ाव को पार चुकी थी । उनकी जेहन में वह जमाना रह रह के कौंध उठता था । पतुरियन का टोला गांव में नैना बाई की तूती बोलती थी । अपने हुस्न के शबाब के दिनों की याद वह अक्सर बड़े गर्व के साथ लोगों से साझा कर लेती । पूरे गाँव का एक ही पेशा बस नाचना और गाना । शाम को अक्सर क्षेत्र के रईशजादों का जमावड़ा लगता था । नैना बाई का कोठा तहजीब के साथ साथ गीत और ग़ज़ल में अपना सर्वोच्य स्थान रखता था । नैना एक ऐसी नर्तकी थीं जिसके जिसके एक एक अंग कलात्मक अभिव्यक्ति से परिपूर्ण थे । उस जमाने में नैना ने हाई स्कूल पास किया था जब हाई स्कूल पास गांव में इक्के दुक्के ही मिल पाते थे । बाप तो जब नैना पेट में थी तभी स्वर्ग लोक सिधार गए और माँ भी पांच साल की उम्र में चल बसी थी । मौसी ने पाला था शिक्षा दीक्षा भी मौसी ने दिलाई । बचपन से ही गाने बजाने का शौक । मौसी ने बाद में उसकी शादी एक ऐसे परिवार से कर दी जहाँ से उसकी जिंदगी का पासा ही पलट गया । बाद में पता चला यह शादी नहीं थी बल्कि उसे अच्छी कीमत लेकर बेच दिया गया था । शादी का सिर्फ इतना मकसद था कि नैना की खूबसूरती और कला से बहुत धन पैदा होगा ।
धीरे धीरे नैना की आवाज और अदा का जादू बहुत मशहूर हो
चला था । चौदह घर के इस पतुरियन के टोला में शाम ढलते ही घुंघरूओं की खनक,
तबले की थाप के साथ हर घर में हारमोनियम के सुर के साथ साथ गूँजती स्वर
लहरियां गंधर्व लोक की भाँति अद्भुद प्रतीत होती थी ।
रूपये बरसने में नैना बाई के कोठे की बात ही कुछ और थी ।
कई बार तो कोठे पर बन्दूकें भी निकल आती थी ।कबीलाई संस्कृति के अंतर्गत
देह व्यापार पूरी तरह वर्जित था । गांव की बुजुर्ग महिलाएं कच्ची शराब भी
बनाकर बेचती थी । सुरा और सुंदरी के दीवाने बरबस ही गांव की और खिचे चले
आते । शादी व्याह के लिए नैना की बुकिंग सबसे ज्यादा रूपये पर होती थी ।
गाव के बड़े भू माफिया ठाकुर त्रिभुवन सिंह का नैना को पूर्ण संरक्षण
प्राप्त था। त्रिभुवन सिंह उस क्षेत्र के सबसे बड़े जमीदार थे । देखने में
बहुत ही आकर्षक व्यक्तित्व । काफी सुन्दर इकहरा बदन गोरे चिट्टे 35 की उम्र
। नैना उन्हें देख कर आकर्षित हो गयी थी । त्रिभुवन सिंह काफी इज्जतदार
व्यक्ति थे । सामाजिक मर्यादा को तोड़ना उन्हें कतई मंजूर नही था । नैना ने
जब उन्हें एक नजर देखा तो अपनी सारी सुध बुध खो बैठी थी । ठाकुर त्रिभुवन
सिंह भी नैना की अद्भुद अदाकारी के कायल हो के थे । नैना के सौंदर्य का
सम्मोहन ठाकुर साहब के ऊपर हावी हो चुका था । सामाजिक मर्यादा को बचाते हुए
उन्होंने नैना को दस बीघा खेत इस शर्त पर बैनामा कर दिया था कि जब भी
उन्हें नैना की जरूरत हो नैना उनके पास आ जाया करें । शर्त यह भी थी कि यह
बात कभी किसी को पता भी न चले । नैना का पति माधव हर वक्त शराब के नशे में
चूर रहने की वजह से जल्द ही चल बसा था । उस जमाने में नैना की स्थिति काफी
सुदृढ़ हो चुकी थी । नैना के घर क्षेत्र की और भी बड़ी रियासतों का आना जाना
शुरू हो चुका था और इसी चक्कर में एक मामूली सी बात को लेकर छुट भइये
लफंगों से एक दिन ठाकुर त्रिभुवन सिंह का विवाद हो गया था ।कुछ दिन बाद
इन्ही लफंगों ने ठाकुर साहब का कत्ल भी कर दिया था । नैना साफ साफ इस विवाद
में फसने से बच गयी थी ।ठाकुर साहब की मुहब्बत का राज आज भी बेपर्दा नही
हो सका था लेकिन उनकी मौत का सदमा नैना को बर्दास्त नही हुआ और बस उसी
दिन से उसने नाचना गाना छोड़ दिया था ।
उसी दौरान नैना ने एक सुन्दर बेटी को जन्म दिया जिसका नाम दुर्गा रखा गया था । बेटी का बाप कौन था यह रहस्य ही बना रहा ।
वह इतवार आ ही गया जिसका नयना और दुर्गा को बेसब्री से
इन्तजार था । आज दुर्गा का श्रृंगार अद्भुत था । सवेरे चार बजे से ही घर
में चहल कदमी हो रही थी । ऐसा लग रहा था जैसे फिर वह आज रात भर नही सोई है ।
नहाना धोना पूजा पाठ से निवृत्त होकर बार बार छत पर जाकर रास्ते को देख
आती थी । एक अजीब सी बेचैनी उसे परेशान कर रही थी दिन गुजरता जा रहा था और
उसकी बेचैनियां किसी तूफ़ान की माफिक अपना रंग बदल रही थीं । धीरे दिन ढलने
को आया लेकिन कोई बाइक उसे घर की ओर आते नही दिखी । दुर्गा काफी मायूस सी
होती जा रही थी तभी सौरभ मोटर सायकल उसके दरवाजे पर आ रुकी । सौरभ ने आंटी
नमस्ते बोला तो नैना ने सौरभ को कमरे में बुलाया ।
सौरभ जब कमरे में पंहुचा तो और हेलमेट उतारा तो नैना उसे
देखी तो देखती ही रह गयी । दुर्गा पानी लेकर आ चुकी थी । आज पहली बार
दुर्गा की नजरें शर्म से झुकी हुई नज़र आ रही थी ।
सौरभ को देखकर नैना के मन में हजारों तरह की आशंकाए पनप रही थी । वह अपने अतीत के पन्नों से बेनी पुर में सौरभ से मिलते जुलते तश्वीरों को ढूढ़ रही थी । शायद यह तश्वीर उनसे बहुत कुछ मिलती जुलती है । इन्ही सब विचारों में नैना उलझी हुई थी ।
दो पल का मौन टूटा
का नाम बा ठाकुर साहब आपका ?
"जी माता जी मैं नैना का दोस्त हूँ । मेरा नाम सौरभ है । यहां से तीन किलो मीटर दूर बेनीपुर का हूँ । "
हाँ ऊ ता दुर्गा बतौली हमके ।
सुनली है दुर्गा से शादी का बात करली हैं आप । हाँ दुर्गा को पसंद करता हूँ । बचपन से । अब मुझे इंस्पेक्टर की सरकारी नौकरी मिल गयी है शादी के लिए दुर्गा से हाथ माँगा है ।
आपके पता बा न कि हम पतुरिया जात हैं न ?
"हाँ पता है । मुझे दुर्गा से प्रेम है । शादी के बाद हम गाव् से दूर चले जाएंगे । इंटर कास्ट मेरे लिए कोई समस्या नही है माता जी । माँ को मना लूँगा । बस आप हाँ कहिये । "
बिटवा हम चाहीला हमार बिटिया सुखी रहे । यहि बिटिया के लिए हम बहुत कुछ खो देहली । पिता जी से भी अपने राय बाट नाही कइला ।
पापा नही हैं माता जी ।
अरे का भइल उ के । मेरे बचपन में ही खतम हो गए थे । का नाम रहल उनके ।
" माता जी उनका नाम ठाकुर त्रिभुअन सिंह था । "
....इतना सुनते ही नैना की आँखों से आंसू गिरने लगे .......
आपके नाम बचपन में शीलू रहल का ?
" हाँ माता जी मैं ही शीलू हूँ ।"
नैना आसुओ को रोकने की बहुत कोसिस कर रही थीं पर आंसू आ ही जा रहे थे ।
बिटवा ई शादी न हो पाई । और कौने कारन से न हो पाई ई बात
मत पुछिहा । हम अपने जीते जी ई शादी न होवे देब । शीलू बेटा बुरा मत मनिहा
हमहू तुहार महतारी समान हई ।
इतना सुनते ही दुर्गा और शौरभ को जैसे करंट लग गया हो ।
यह क्या माँ उल्टा पुल्टा बोल रही हैं । दोनों की आँखे एक दुसरे से यही पूछ
रही थी । दोनों हैरान ।
इधर नैना की आँखों से आंसू बन्द ही नही हो रहे थे ।
"आखिर बात क्या है अम्मा कुछ तो बताओगी ।" दुर्गा ने पूछा ।
सौरभ ने भी यही प्रश्न किया बहुत देर तक दोनों मिलकर कारण पूछते रहे । अंत में नयना ने किसी से कुछ भी नही बताने की शर्त पर कहा ।
" बेटा आपके पिता के हम रखैल रहली । ऊ के हम अपने जान से
ज्यादा मानत रहली । हमरी बिटिया के दुर्गा नाम ऊ है दिए रहलें ।दस बीघा
खेतवा भी उनही के दिहल रहल । घर से चोरी लिख दिहले हमका । अपने कत्ल से
पाहिले ठाकुर साहब हमका एक खत लिखे रहलें ।दुर्गा उन्ही की बेटी है ।ठाकुर
साहब के हूबहू चेहरा दुर्गा के चेहरा पर रखल बा ।थोडा इंतजार करा अबै हम
आइला । "
दस मिनट बाद नैना एक चिट्ठी लेकर कमरे में दाखिल हुई ।
सबूत के नाम पर हमरे पास एगो चिट्ठी भर बा । ई हम पढ़त बाटी धियान से सुना ।
" नैना बिटिया के जन्म पर बहुत ख़ुशी हुई । यह मेरी
बिटिया है । इसका नाम दुर्गा रखना है । इसकी पढाई और परवरिश का सारा खर्चा
मेरा रहेगा । इसे नाच गाना मत सिखाना । यह राज किसी को कभी पता न चले । मैं
इसकी शादी भी अच्छे घर में करवा दूंगा । और अब नाचना गाना छोड़ दो ।
तुम्हारी सारी जिम्मेदारी अब मेरी होगी ।
- ठाकुर त्रिभुवन सिंह चिट्ठी को अब सौरभ और दुर्गा बार बार पढ़े जा रहे थे । नैना की आँखों से आँसू बन्द ही नही हो रहे थे , और कुछ ही पलों में दुर्गा और सौरभ आँख में आँसू लेकर एक दूसरे को गले लगा कर चिपक गए। यह अब भाई बहन का प्यार शैलाब की शक्ल अख्तियार कर चुका था ।
- नवीन मणि त्रिपाठी
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तीखी कलम से
मेरे बारे में
- Naveen Mani Tripathi
- जी हाँ मैं आयुध निर्माणी कानपुर रक्षा मंत्रालय में तकनीकी सेवार्थ कार्यरत हूँ| मूल रूप से मैं ग्राम पैकोलिया थाना, जनपद बस्ती उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ| मेरी पूजनीया माता जी श्रीमती शारदा त्रिपाठी और पूजनीय पिता जी श्री वेद मणि त्रिपाठी सरकारी प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं| उनका पूर्ण स्नेह व आशीर्वाद मुझे प्राप्त है|मेरे परिवार में साहित्य सृजन का कार्य पीढ़ियों से होता आ रहा है| बाबा जी स्वर्गीय श्री रामदास त्रिपाठी छंद, दोहा, कवित्त के श्रेष्ठ रचनाकार रहे हैं| ९० वर्ष की अवस्था में भी उन्होंने कई परिष्कृत रचनाएँ समाज को प्रदान की हैं| चाचा जी श्री योगेन्द्र मणि त्रिपाठी एक ख्यातिप्राप्त रचनाकार हैं| उनके छंद गीत मुक्तक व लेख में भावनाओं की अद्भुद अंतरंगता का बोध होता है| पिता जी भी एक शिक्षक होने के साथ साथ चर्चित रचनाकार हैं| माता जी को भी एक कवित्री के रूप में देखता आ रहा हूँ| पूरा परिवार हिन्दी साहित्य से जुड़ा हुआ है|इसी परिवार का एक छोटा सा पौधा हूँ| व्यंग, मुक्तक, छंद, गीत-ग़ज़ल व कहानियां लिखता हूँ| कुछ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहता हूँ| कवि सम्मेलन के अतिरिक्त काव्य व सहित्यिक मंचों पर अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को आप तक पहँचाने का प्रयास करता रहा हूँ| आपके स्नेह, प्यार का प्रबल आकांक्षी हूँ| विश्वास है आपका प्यार मुझे अवश्य मिलेगा| -नवीन
बुधवार, 6 जुलाई 2016
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