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नए हादसों का ये दौर है कई जख़्म थे न बता सका ।
है तिजोरियों पे मुसीबतें मैं सुकूं अमन भी न ला सका ।।
पली मुद्दतों से जो ख्वाहिशें वो चली गयीं हैं गुमान से ।
थी हराम की जो रकम मिली उसे वक्त पे न खपा सका ।।
ये अजीब मुल्क परस्तियाँ ये नया नशा भी कमाल है ।
तू उजाड़ दे न ये घर मेरा तुझे मुल्क से न हटा सका ।।
बड़ी कोशिशें पे नज़र हुई वो न कुर्सियों पे सभंल सकें ।
वो मुकाबलों का निजाम है न मिटा सका न हरा सका ।।
तेरे फैसलों ने सितम किये मेरी आबरू भी जुदा हुई ।
है चुनाव सर पे खड़ा हुआ मैं हिसाब तक न लगा सका ।।
---नवीन मणि त्रिपाठी
नए हादसों का ये दौर है कई जख़्म थे न बता सका ।
है तिजोरियों पे मुसीबतें मैं सुकूं अमन भी न ला सका ।।
पली मुद्दतों से जो ख्वाहिशें वो चली गयीं हैं गुमान से ।
थी हराम की जो रकम मिली उसे वक्त पे न खपा सका ।।
ये अजीब मुल्क परस्तियाँ ये नया नशा भी कमाल है ।
तू उजाड़ दे न ये घर मेरा तुझे मुल्क से न हटा सका ।।
बड़ी कोशिशें पे नज़र हुई वो न कुर्सियों पे सभंल सकें ।
वो मुकाबलों का निजाम है न मिटा सका न हरा सका ।।
तेरे फैसलों ने सितम किये मेरी आबरू भी जुदा हुई ।
है चुनाव सर पे खड़ा हुआ मैं हिसाब तक न लगा सका ।।
---नवीन मणि त्रिपाठी
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