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ख़यानत की खातिर मुहब्बत नहीं है ।
मेरी आशिकी क्या अमानत नहीं है ।।
नज़र से हुई थी ख़ता दफ़अतन जो ।
हमें उस ख़ता से शिकायत नहीं है ।।
मिटा कर चले जा रहे हैं उमीदें ।
बची आप में भी शराफ़त नहीं है ।।
चले आइये बज़्म में रफ़्ता रफ़्ता ।
मेरी आप से अब अदावत नहीं है ।।
यकीं कर मेरा रूठ कर जाने वाले।
मेरे दिल की अब तक इजाज़त नहीं है।।
तेरे दर पे आना मुनासिब कहाँ अब ।
वहां आशिकों की निज़ामत नहीं है ।।
शुरूआत है ये बुरे दिन की शायद।
दुआवों से अब तो इज़ाफ़त नहीं है ।।
गुजर जाएंगे मुफ़लिसी के ये दिन भी ।
बुरा वक्त भर है कयामत नहीं है ।।
करेगा वो इंसाफ जुल्मो सितम का ।
तुम्हारी वहां तो हुकूमत नहीं है ।।
न उम्मीद रखिये वफ़ा की यहां पर ।
यहां तो ख़ुदा की अक़ीदत नहीं है ।।
उसे दिल न देना है कमसिन जिगर वो ।
मुहब्बत की कोई हिफ़ाज़त नहीं है ।।
जिधर फेरते हैं अदा से वो नज़रें ।
उधर कोई बस्ती सलामत नहीं है।।
---नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
ख़यानत की खातिर मुहब्बत नहीं है ।
मेरी आशिकी क्या अमानत नहीं है ।।
नज़र से हुई थी ख़ता दफ़अतन जो ।
हमें उस ख़ता से शिकायत नहीं है ।।
मिटा कर चले जा रहे हैं उमीदें ।
बची आप में भी शराफ़त नहीं है ।।
चले आइये बज़्म में रफ़्ता रफ़्ता ।
मेरी आप से अब अदावत नहीं है ।।
यकीं कर मेरा रूठ कर जाने वाले।
मेरे दिल की अब तक इजाज़त नहीं है।।
तेरे दर पे आना मुनासिब कहाँ अब ।
वहां आशिकों की निज़ामत नहीं है ।।
शुरूआत है ये बुरे दिन की शायद।
दुआवों से अब तो इज़ाफ़त नहीं है ।।
गुजर जाएंगे मुफ़लिसी के ये दिन भी ।
बुरा वक्त भर है कयामत नहीं है ।।
करेगा वो इंसाफ जुल्मो सितम का ।
तुम्हारी वहां तो हुकूमत नहीं है ।।
न उम्मीद रखिये वफ़ा की यहां पर ।
यहां तो ख़ुदा की अक़ीदत नहीं है ।।
उसे दिल न देना है कमसिन जिगर वो ।
मुहब्बत की कोई हिफ़ाज़त नहीं है ।।
जिधर फेरते हैं अदा से वो नज़रें ।
उधर कोई बस्ती सलामत नहीं है।।
---नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
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