2212 2212 2212 2212
बस रात भर की बात थी , फिर भी रहा पहरा तेरा ।
ऐ चाँद तेरी बज़्म में कायम रहा रुतबा तेरा ।।
वो तीरगी जाती रही रोशन लगी हर शब मुझे ।
मेरे तसव्वुर में कभी जब अक्स ये उभरा तेरा ।।
टूटा हुआ तारा था इक हँसता रहा क्यूँ कहकशां ।
यूँ ही जमीं से देखता मैं रह गया लहज़ा तेरा ।।
देकर गई है मुफ़लिसी ,कुछ तज्रिबा भी कीमती ।
मुझको अभी तक याद है ,बख्शा हुआ सदक़ा तेरा।।
है जिक्र तेरे हुस्न का ,बाकी कोई चर्चा नहीं ।
है चार सू खुशबू तेरी छाया रहा जलवा तेरा ।।
रानाइयों के फेर में हम भी हरम में आ गए ।
देखा हया के वास्ते गिरता रहा परदा तेरा ।।
सारा ज़माना हो गया दुश्मन मेरा इस बात पर ।
कातिल बनाकर उम्र भर जारी रहा फ़तबा तेरा ।।
नज़रों की थी ग़फ़लत या फिर वह ख्वाब था मेरा कोई ।
महफ़िल में चर्चा है बहुत आकर चला .जाना तेरा ।।
मायूस है सारा चमन मायूस दीवाने हुए ।
जब से दुपट्टे में छिपा है चाँद सा चेहरा तेरा ।।
खामोशियों के बीच से उठने लगे हैं कुछ सवाल ।
वो मिन्नतें करता गया पर दिल नहीं पिघला तेरा ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
कॉपी राइट
बस रात भर की बात थी , फिर भी रहा पहरा तेरा ।
ऐ चाँद तेरी बज़्म में कायम रहा रुतबा तेरा ।।
वो तीरगी जाती रही रोशन लगी हर शब मुझे ।
मेरे तसव्वुर में कभी जब अक्स ये उभरा तेरा ।।
टूटा हुआ तारा था इक हँसता रहा क्यूँ कहकशां ।
यूँ ही जमीं से देखता मैं रह गया लहज़ा तेरा ।।
देकर गई है मुफ़लिसी ,कुछ तज्रिबा भी कीमती ।
मुझको अभी तक याद है ,बख्शा हुआ सदक़ा तेरा।।
है जिक्र तेरे हुस्न का ,बाकी कोई चर्चा नहीं ।
है चार सू खुशबू तेरी छाया रहा जलवा तेरा ।।
रानाइयों के फेर में हम भी हरम में आ गए ।
देखा हया के वास्ते गिरता रहा परदा तेरा ।।
सारा ज़माना हो गया दुश्मन मेरा इस बात पर ।
कातिल बनाकर उम्र भर जारी रहा फ़तबा तेरा ।।
नज़रों की थी ग़फ़लत या फिर वह ख्वाब था मेरा कोई ।
महफ़िल में चर्चा है बहुत आकर चला .जाना तेरा ।।
मायूस है सारा चमन मायूस दीवाने हुए ।
जब से दुपट्टे में छिपा है चाँद सा चेहरा तेरा ।।
खामोशियों के बीच से उठने लगे हैं कुछ सवाल ।
वो मिन्नतें करता गया पर दिल नहीं पिघला तेरा ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
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