तीखी कलम से

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जी हाँ मैं आयुध निर्माणी कानपुर रक्षा मंत्रालय में तकनीकी सेवार्थ कार्यरत हूँ| मूल रूप से मैं ग्राम पैकोलिया थाना, जनपद बस्ती उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ| मेरी पूजनीया माता जी श्रीमती शारदा त्रिपाठी और पूजनीय पिता जी श्री वेद मणि त्रिपाठी सरकारी प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं| उनका पूर्ण स्नेह व आशीर्वाद मुझे प्राप्त है|मेरे परिवार में साहित्य सृजन का कार्य पीढ़ियों से होता आ रहा है| बाबा जी स्वर्गीय श्री रामदास त्रिपाठी छंद, दोहा, कवित्त के श्रेष्ठ रचनाकार रहे हैं| ९० वर्ष की अवस्था में भी उन्होंने कई परिष्कृत रचनाएँ समाज को प्रदान की हैं| चाचा जी श्री योगेन्द्र मणि त्रिपाठी एक ख्यातिप्राप्त रचनाकार हैं| उनके छंद गीत मुक्तक व लेख में भावनाओं की अद्भुद अंतरंगता का बोध होता है| पिता जी भी एक शिक्षक होने के साथ साथ चर्चित रचनाकार हैं| माता जी को भी एक कवित्री के रूप में देखता आ रहा हूँ| पूरा परिवार हिन्दी साहित्य से जुड़ा हुआ है|इसी परिवार का एक छोटा सा पौधा हूँ| व्यंग, मुक्तक, छंद, गीत-ग़ज़ल व कहानियां लिखता हूँ| कुछ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहता हूँ| कवि सम्मेलन के अतिरिक्त काव्य व सहित्यिक मंचों पर अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को आप तक पहँचाने का प्रयास करता रहा हूँ| आपके स्नेह, प्यार का प्रबल आकांक्षी हूँ| विश्वास है आपका प्यार मुझे अवश्य मिलेगा| -नवीन

शुक्रवार, 1 सितंबर 2017

ग़ज़ल - कसम से वफ़ा की फ़ज़ीहत न होती

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अगर  मेरे  दिल  पे  हुकूमत  न  होती ।
तो फिर आपकी भी रियासत न होती ।।

पलट जाती कश्ती  भी  तूफां  में  मेरीे ।
मेरे   पास  उनकी  नसीहत  न  होती ।।

बहुत  कुछ  बदलते फ़िजा के  नज़ारे ।
अगर आपकी कुछ सियासत न होती ।।

जरा सा भी वो थाम  लेते  जो  दामन ।
यहां  आसुओं की  इज़ाफ़त  न होती ।।

वो  मेरा   सुकूँ  भी  मेरे  साथ   रहता ।
अदाओं  में  थोड़ी  शरारत  न  होती ।।

वो इंसाफ करता न अब तक  जहां में ।
कहीं  भी खुदा की  इबादत न  होती ।।

बरसते न बादल भी प्यासी जमीं पर ।
अगर आपकी कुछ इज़ाज़त न होती।।

मुहब्बत के  रिश्ते  न  होते  सलामत ।
तो  फिर ताज जैसी इमारत न होती ।।

यूँ लहरा के जुल्फ़े  न  करतीं नुमाइश ।
तो अहले  चमन  में कयामत न होती ।।

तुम्हें   बेवफा  मान  लेते   जो   पहले ।
कसम से वफ़ा की फ़जीहत  न होती ।।

          -- नवीन मणि त्रिपाठी

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