इक नज़र क्या उठी देखने के लिए ।
चाँद छिपता गया फासले के लिए ।।
कोई सरसर उड़ा ले गई झोपड़ी ।
सोचिये मत मुझे लूटने के लिए ।।
मौत मुमकिन मेरी उसको आना ही है ।
दिन बचे ही कहाँ काटने के लिए ।।
जहर जो था मिला आपसे प्यार में ।
लोग कहते गए घूँटने के लिए ।।
रात आई गई फिर सहर हो गई ।
याद कहती रही जागने के लिए ।।
जब रकीबो से चर्चा हुई आपकी ।
फिर पता मिल गया ढूढने के लिए ।।
सज के आए हैं महफ़िल में मेरे सनम ।
इक नज़र भर मेरी फेरने के लिए ।।
कहकशां से भी आवाज़ आई बहुत ।
चाँद क्यों छल रहा जीतने के लिए ।।
यह बताकर जरा तोड़िये दिल मेरा ।
जिस्म था क्या मेरा खेलने के लिए ।।
चाँद छिपता गया फासले के लिए ।।
कोई सरसर उड़ा ले गई झोपड़ी ।
सोचिये मत मुझे लूटने के लिए ।।
मौत मुमकिन मेरी उसको आना ही है ।
दिन बचे ही कहाँ काटने के लिए ।।
जहर जो था मिला आपसे प्यार में ।
लोग कहते गए घूँटने के लिए ।।
रात आई गई फिर सहर हो गई ।
याद कहती रही जागने के लिए ।।
जब रकीबो से चर्चा हुई आपकी ।
फिर पता मिल गया ढूढने के लिए ।।
सज के आए हैं महफ़िल में मेरे सनम ।
इक नज़र भर मेरी फेरने के लिए ।।
कहकशां से भी आवाज़ आई बहुत ।
चाँद क्यों छल रहा जीतने के लिए ।।
यह बताकर जरा तोड़िये दिल मेरा ।
जिस्म था क्या मेरा खेलने के लिए ।।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 03 सितम्बर 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंशानदार गज़ल👌👌
जवाब देंहटाएंसादर आभार
हटाएंमारक क्षमता से परिपूर्ण रचना लाज़वाब ! उम्दा ! शुभकामनाओं सहित ,
जवाब देंहटाएंआभार ''एकलव्य"
सादर आभार
हटाएंलाजवाब गजल...।
जवाब देंहटाएंसादर आभार
हटाएंसादर आभार
जवाब देंहटाएंजीवन की अनेक परिस्थितियों को अभिव्यक्त करती उम्दा ग़ज़ल। हरेक शेर जानदार ,वज़नदार। बधाई।
जवाब देंहटाएंसादर आभार
हटाएंबेहतरीन गज़ल...हरेक शेर में कुछ अलग सी बात है !
जवाब देंहटाएंसादर आभार
हटाएंसादर आभार
हटाएं