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माना कि तेरे दिल की इनायत भी बहुत थी ।
पर साथ इनायत के हिदायत भी बहुत थी ।।
आते थे वो बेफिक्र मेरे शहर में अक्सर ।
तहजीब निभाने की रवायत भी बहुत थी ।।
महंगे मिले हैं लोग मुहब्बत के सफ़र में ।
यह बात अलग है कि रिआयत भी बहुत थी।।
चेहरे को पढा उसने कई बार नज़र से ।
महफ़िल में तबस्सुम की किफ़ायत भी बहुत थी ।।
वो हार गए फिर से अदालत में सरेआम ।
हालाकि नजीरों की हिमायत भी बहुत थी ।।
छूटी हैं किताबें भी वही उस से अभी तक ।
जिस पर लिखी कुरआन की आयत भी बहुत थी ।।
क्यों पूछ रहे हैं मेरे दिल का वो फ़साना ।
उनको तो मुहब्बत से शिकायत भी बहुत थी ।।
---नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
माना कि तेरे दिल की इनायत भी बहुत थी ।
पर साथ इनायत के हिदायत भी बहुत थी ।।
आते थे वो बेफिक्र मेरे शहर में अक्सर ।
तहजीब निभाने की रवायत भी बहुत थी ।।
महंगे मिले हैं लोग मुहब्बत के सफ़र में ।
यह बात अलग है कि रिआयत भी बहुत थी।।
चेहरे को पढा उसने कई बार नज़र से ।
महफ़िल में तबस्सुम की किफ़ायत भी बहुत थी ।।
वो हार गए फिर से अदालत में सरेआम ।
हालाकि नजीरों की हिमायत भी बहुत थी ।।
छूटी हैं किताबें भी वही उस से अभी तक ।
जिस पर लिखी कुरआन की आयत भी बहुत थी ।।
क्यों पूछ रहे हैं मेरे दिल का वो फ़साना ।
उनको तो मुहब्बत से शिकायत भी बहुत थी ।।
---नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
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