221 2121 1221 212
लेंगे हजार बार नसीहत कहाँ कहाँ ।
बाकी अभी है और फ़जीहत कहाँ कहाँ ।।
चलना बहुत सँभल के ये हिन्दोस्तान है ।
मिलती यहां सभी को हिदायत कहाँ कहाँ।।
मजहब कोई बड़ा है तो इंसानियत का है ।
पढ़ते रहेंगे आप शरीअत कहाँ कहाँ ।।
वादा किया हुजूर ने बेशक चुनाव में ।
यह बात है अलग कि इनायत कहाँ कहाँ।।
बदलेंगे लोग ,सोच बदल दीजिये जनाब ।
रक्खेंगे आप इतनी अदावत कहाँ कहाँ ।।
ईमान बेचता है यहाँ आम आदमी ।
करते रहेंगे आप हुकूमत कहाँ कहाँ ।।
कैसे रिहा हुआ है यही पूछते हैं सब ।
होती है पैरवी में किफ़ायत कहाँ कहाँ ।।
है देखना तो देखिए मुफ़लिस की जिंदगी ।
मत देखिए हैं लोग सलामत कहाँ कहाँ ।।
सहमें हुए हैं चोर हकीकत ये जानकर ।
आएगी इक नज़र से कयामत कहाँ कहाँ ।।
हालात देख के वो समझने लगे हैं सब ।
ये ग़म कहाँ कहाँ ये मसर्रत कहाँ कहाँ।।
चोरों को भी तलाश है ईमानदार की ।
ढूढा ज़मीर में है सदाक़त कहाँ कहाँ ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
लेंगे हजार बार नसीहत कहाँ कहाँ ।
बाकी अभी है और फ़जीहत कहाँ कहाँ ।।
चलना बहुत सँभल के ये हिन्दोस्तान है ।
मिलती यहां सभी को हिदायत कहाँ कहाँ।।
मजहब कोई बड़ा है तो इंसानियत का है ।
पढ़ते रहेंगे आप शरीअत कहाँ कहाँ ।।
वादा किया हुजूर ने बेशक चुनाव में ।
यह बात है अलग कि इनायत कहाँ कहाँ।।
बदलेंगे लोग ,सोच बदल दीजिये जनाब ।
रक्खेंगे आप इतनी अदावत कहाँ कहाँ ।।
ईमान बेचता है यहाँ आम आदमी ।
करते रहेंगे आप हुकूमत कहाँ कहाँ ।।
कैसे रिहा हुआ है यही पूछते हैं सब ।
होती है पैरवी में किफ़ायत कहाँ कहाँ ।।
है देखना तो देखिए मुफ़लिस की जिंदगी ।
मत देखिए हैं लोग सलामत कहाँ कहाँ ।।
सहमें हुए हैं चोर हकीकत ये जानकर ।
आएगी इक नज़र से कयामत कहाँ कहाँ ।।
हालात देख के वो समझने लगे हैं सब ।
ये ग़म कहाँ कहाँ ये मसर्रत कहाँ कहाँ।।
चोरों को भी तलाश है ईमानदार की ।
ढूढा ज़मीर में है सदाक़त कहाँ कहाँ ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 30 जुलाई 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंमजहब कोई बड़ा है तो इंसानियत का है ।
जवाब देंहटाएंपढ़ते रहेंगे आप शरीअत कहाँ कहाँ ।।
सच इंसानियत से बढाकर कुछ भी नहीं फिर भी लोग क्या क्या नहीं कर बैठते हैं
बहुत सुन्दर गजल
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंसही मे इंसानियत से बड़ा कोई धर्म हो ही नही सकता
जवाब देंहटाएं"चोरों को भी तलाश है ,ईमानदारी की
ढूंढा जमीर है ,सदाक़त कहाँ-कहाँ ,बहुत गहरी रचना
बहुत ही सुन्दर ! रचना का मर्म उससे भी गहरा ,प्रस्तुति शब्दों की उम्दा आभार ''एकलव्य''
जवाब देंहटाएंसादर नमन के साथ आभार
हटाएंहर एक शेर अलग अंदाज में ! बहुत बहुत खूबसूरत रचना !सादर ।
जवाब देंहटाएंसादर नमन के साथ आभार
हटाएंचोरों को भी तलाश है ईमानदार की ।
जवाब देंहटाएंढूढा ज़मीर में है सदाक़त कहाँ कहाँ ।।
बहुत बढ़िया।
सादर नमन के साथ आभार
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