2122 1122 1122 22(112)
दर्द गहरा था मगर हद से गुज़रने न दिया ।
अश्क़ हमने भी कभी आंख में आने न दिया ।।
आसमा में वो परिंदे ही सफ़र करते हैं ।
जिन परिंदों ने कभी पर को कतरने न दिया ।।
आज खामोश हैं घुघरू जो खनकते थे कभी ।
वक्त बेचैन से पावों को थिरकने न दिया ।।
ख्वाहिशें खूब जवाँ थी किसी मैखाने में ।
मेरे मौला ने मुझे रात बहकने न दिया ।।
मैंने तूफान में चेहरे पे सिकन देखा है ।
उन हवाओं ने कभी जुल्फ सँवरने न दिया ।।
उंगलिया लोग उठाते हैं उसी पर अक्सर ।
जिंदगी भर जो कदम घर से बहकने न दिया ।।
यह हक़ीक़त है खरीदार बहुत थे उनके ।
यूँ तिज़ारत में कभी भाव को गिरने न दिया ।।
जीत सकते थे मुहब्बत की ये बाजी शायद ।
एक सिक्का भी मेरे नाम उछलने न दिया ।।
क़द्र क्या है ये हिफ़ाज़त के उसूलों से मिला ।
मेरे साकी ने कहीं जाम छलकने न दिया ।।
----नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
कॉपी राइट
दर्द गहरा था मगर हद से गुज़रने न दिया ।
अश्क़ हमने भी कभी आंख में आने न दिया ।।
आसमा में वो परिंदे ही सफ़र करते हैं ।
जिन परिंदों ने कभी पर को कतरने न दिया ।।
आज खामोश हैं घुघरू जो खनकते थे कभी ।
वक्त बेचैन से पावों को थिरकने न दिया ।।
ख्वाहिशें खूब जवाँ थी किसी मैखाने में ।
मेरे मौला ने मुझे रात बहकने न दिया ।।
मैंने तूफान में चेहरे पे सिकन देखा है ।
उन हवाओं ने कभी जुल्फ सँवरने न दिया ।।
उंगलिया लोग उठाते हैं उसी पर अक्सर ।
जिंदगी भर जो कदम घर से बहकने न दिया ।।
यह हक़ीक़त है खरीदार बहुत थे उनके ।
यूँ तिज़ारत में कभी भाव को गिरने न दिया ।।
जीत सकते थे मुहब्बत की ये बाजी शायद ।
एक सिक्का भी मेरे नाम उछलने न दिया ।।
क़द्र क्या है ये हिफ़ाज़त के उसूलों से मिला ।
मेरे साकी ने कहीं जाम छलकने न दिया ।।
----नवीन मणि त्रिपाठी
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