2122 1122 1122 22
मेरी आबाद मुहब्बत को मिटाने वाले ।
तू सलामत रहे यूँ छोड़ के जाने वाले ।।
चन्द रातों की मुलाकात न् सोने देगी ।
याद आएंगे बहुत नींद चुराने वाले ।।
कितना बदलाहै जमाने का चलन देख जरा।
तोड़ जाते हैं ये दिल ,प्यार निभाने वाले।।
इस तरह रूठ के जाने की जरूरत क्या थीं।
यूँ किताबों में गुलाबों को छिपाने वाले ।।
चार अशआर लिखे थे जो कभी ख़त में तुझे।
क्या मिला तुझको मेरे ख़त को जलाने वाले ।।
आज निकले वो गली से तो छुपा कर चेहरा ।
मेरी तस्वीर को आंखों में सजाने वाले ।।
रुख बदलते ही हवाओं ने सितम क्या ढाया ।
खो गए लोग मेरे नाज़ उठाने वाले ।।
प्यार का मैं हूँ मुसाफिर न् मुझे रोको तुम ।
है कई लोग यहां राह बताने वाले ।।
जिंदगी भीड़ में गुजरे ये तमन्ना मेरी ।
मेरी तन्हाई में आते हैं सताने वाले ।।
कोई सुकरात को ,शंकर तो कोई मीरा को।
ज़हर के साथ मिले लोग पिलाने वाले ।।
इश्क़ बिकता है खुले आम जरूरत पे यहां ।
शह्र में खूब हैं दूकान चलाने वाले ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
मेरी आबाद मुहब्बत को मिटाने वाले ।
तू सलामत रहे यूँ छोड़ के जाने वाले ।।
चन्द रातों की मुलाकात न् सोने देगी ।
याद आएंगे बहुत नींद चुराने वाले ।।
कितना बदलाहै जमाने का चलन देख जरा।
तोड़ जाते हैं ये दिल ,प्यार निभाने वाले।।
इस तरह रूठ के जाने की जरूरत क्या थीं।
यूँ किताबों में गुलाबों को छिपाने वाले ।।
चार अशआर लिखे थे जो कभी ख़त में तुझे।
क्या मिला तुझको मेरे ख़त को जलाने वाले ।।
आज निकले वो गली से तो छुपा कर चेहरा ।
मेरी तस्वीर को आंखों में सजाने वाले ।।
रुख बदलते ही हवाओं ने सितम क्या ढाया ।
खो गए लोग मेरे नाज़ उठाने वाले ।।
प्यार का मैं हूँ मुसाफिर न् मुझे रोको तुम ।
है कई लोग यहां राह बताने वाले ।।
जिंदगी भीड़ में गुजरे ये तमन्ना मेरी ।
मेरी तन्हाई में आते हैं सताने वाले ।।
कोई सुकरात को ,शंकर तो कोई मीरा को।
ज़हर के साथ मिले लोग पिलाने वाले ।।
इश्क़ बिकता है खुले आम जरूरत पे यहां ।
शह्र में खूब हैं दूकान चलाने वाले ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
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