तीखी कलम से

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जी हाँ मैं आयुध निर्माणी कानपुर रक्षा मंत्रालय में तकनीकी सेवार्थ कार्यरत हूँ| मूल रूप से मैं ग्राम पैकोलिया थाना, जनपद बस्ती उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ| मेरी पूजनीया माता जी श्रीमती शारदा त्रिपाठी और पूजनीय पिता जी श्री वेद मणि त्रिपाठी सरकारी प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं| उनका पूर्ण स्नेह व आशीर्वाद मुझे प्राप्त है|मेरे परिवार में साहित्य सृजन का कार्य पीढ़ियों से होता आ रहा है| बाबा जी स्वर्गीय श्री रामदास त्रिपाठी छंद, दोहा, कवित्त के श्रेष्ठ रचनाकार रहे हैं| ९० वर्ष की अवस्था में भी उन्होंने कई परिष्कृत रचनाएँ समाज को प्रदान की हैं| चाचा जी श्री योगेन्द्र मणि त्रिपाठी एक ख्यातिप्राप्त रचनाकार हैं| उनके छंद गीत मुक्तक व लेख में भावनाओं की अद्भुद अंतरंगता का बोध होता है| पिता जी भी एक शिक्षक होने के साथ साथ चर्चित रचनाकार हैं| माता जी को भी एक कवित्री के रूप में देखता आ रहा हूँ| पूरा परिवार हिन्दी साहित्य से जुड़ा हुआ है|इसी परिवार का एक छोटा सा पौधा हूँ| व्यंग, मुक्तक, छंद, गीत-ग़ज़ल व कहानियां लिखता हूँ| कुछ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहता हूँ| कवि सम्मेलन के अतिरिक्त काव्य व सहित्यिक मंचों पर अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को आप तक पहँचाने का प्रयास करता रहा हूँ| आपके स्नेह, प्यार का प्रबल आकांक्षी हूँ| विश्वास है आपका प्यार मुझे अवश्य मिलेगा| -नवीन

शुक्रवार, 2 मार्च 2018

होली पर चन्द कुंडलियाँ

होली पर चन्द कुंडलियां

मधुशाला  में  भीड़  है , होली  का  उल्लास ।
बुझा  रहे  प्यासे  सभी अपनी अपनी प्यास ।।
अपनी  अपनी  प्यास  पड़े  नाली  नालों  में ।
लगा  रहे  अब   रंग  वही  सबके  गालों  में ।।
नशे बाज पर आप , लगा  कर रखना ताला ।
कभी  कभी  विषपान कराती है  मधुशाला ।।

सूखा   सूखा  चित्त  है , उलझा उलझा केश ।
होली  बैरन  सी  लगे  कंत   बसे    परदेश ।।
कंत  बसे  परदेश  बिरह  की  आग  जलाये ।
यौवन पर ऋतुराज ,किन्तु यह रास न आये ।।
कोयलिया का गान  लगे अब  बान सरीखा ।
सावरिया  के  बिना  लगे  हर मौसम सूखा ।।

अंगड़ाई    लेने   लगा , यौवन  पर  मधुमास ।
धूम मचाये कामिनी,हिय तक हुआ उजास ।।
हिय तक हुआ उजास सजन का होश उड़ाती।
मादक अँखियाँ खूब पिया को  भंग पिलाती।।
अद्भुद    है    संयोग,  खेलने    होरी    आई ।
भीगा तन  मन आज ,देख  करके  अंगड़ाई ।।

लहंगा  चुनरी में दिखा , भौजी  का  श्रृंगार ।
नैनो   से  करने   लगीं  रंगों   की  बौछार ।।
रंगों  की  बौछार   भिगाएं   अन्तस्   सारा ।
देवर  है  नादान  अभी  क्या करे  कुंवारा ।।
कहें  मणी कविराय  रंग है  काफी  महंगा ।
कहीं  पकौड़ा  बेचूं  तब  ये भीगे  लहंगा ।।

         नवीन मणि त्रिपाठी

2 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' ०५ मार्च २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

    निमंत्रण

    विशेष : 'सोमवार' ०५ मार्च २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने सोमवारीय साप्ताहिक अंक में आदरणीय विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र' जी से आपका परिचय करवाने जा रहा है।

    अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

    जवाब देंहटाएं
  2. कुंडलियां बहत दिनों बाद पढ़ीं...अच्‍छा लगा नवीन जी

    जवाब देंहटाएं