होली पर चन्द कुंडलियां
मधुशाला में भीड़ है , होली का उल्लास ।
बुझा रहे प्यासे सभी अपनी अपनी प्यास ।।
अपनी अपनी प्यास पड़े नाली नालों में ।
लगा रहे अब रंग वही सबके गालों में ।।
नशे बाज पर आप , लगा कर रखना ताला ।
कभी कभी विषपान कराती है मधुशाला ।।
सूखा सूखा चित्त है , उलझा उलझा केश ।
होली बैरन सी लगे कंत बसे परदेश ।।
कंत बसे परदेश बिरह की आग जलाये ।
यौवन पर ऋतुराज ,किन्तु यह रास न आये ।।
कोयलिया का गान लगे अब बान सरीखा ।
सावरिया के बिना लगे हर मौसम सूखा ।।
अंगड़ाई लेने लगा , यौवन पर मधुमास ।
धूम मचाये कामिनी,हिय तक हुआ उजास ।।
हिय तक हुआ उजास सजन का होश उड़ाती।
मादक अँखियाँ खूब पिया को भंग पिलाती।।
अद्भुद है संयोग, खेलने होरी आई ।
भीगा तन मन आज ,देख करके अंगड़ाई ।।
लहंगा चुनरी में दिखा , भौजी का श्रृंगार ।
नैनो से करने लगीं रंगों की बौछार ।।
रंगों की बौछार भिगाएं अन्तस् सारा ।
देवर है नादान अभी क्या करे कुंवारा ।।
कहें मणी कविराय रंग है काफी महंगा ।
कहीं पकौड़ा बेचूं तब ये भीगे लहंगा ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
मधुशाला में भीड़ है , होली का उल्लास ।
बुझा रहे प्यासे सभी अपनी अपनी प्यास ।।
अपनी अपनी प्यास पड़े नाली नालों में ।
लगा रहे अब रंग वही सबके गालों में ।।
नशे बाज पर आप , लगा कर रखना ताला ।
कभी कभी विषपान कराती है मधुशाला ।।
सूखा सूखा चित्त है , उलझा उलझा केश ।
होली बैरन सी लगे कंत बसे परदेश ।।
कंत बसे परदेश बिरह की आग जलाये ।
यौवन पर ऋतुराज ,किन्तु यह रास न आये ।।
कोयलिया का गान लगे अब बान सरीखा ।
सावरिया के बिना लगे हर मौसम सूखा ।।
अंगड़ाई लेने लगा , यौवन पर मधुमास ।
धूम मचाये कामिनी,हिय तक हुआ उजास ।।
हिय तक हुआ उजास सजन का होश उड़ाती।
मादक अँखियाँ खूब पिया को भंग पिलाती।।
अद्भुद है संयोग, खेलने होरी आई ।
भीगा तन मन आज ,देख करके अंगड़ाई ।।
लहंगा चुनरी में दिखा , भौजी का श्रृंगार ।
नैनो से करने लगीं रंगों की बौछार ।।
रंगों की बौछार भिगाएं अन्तस् सारा ।
देवर है नादान अभी क्या करे कुंवारा ।।
कहें मणी कविराय रंग है काफी महंगा ।
कहीं पकौड़ा बेचूं तब ये भीगे लहंगा ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' ०५ मार्च २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
जवाब देंहटाएंटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
निमंत्रण
विशेष : 'सोमवार' ०५ मार्च २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने सोमवारीय साप्ताहिक अंक में आदरणीय विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र' जी से आपका परिचय करवाने जा रहा है।
अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
कुंडलियां बहत दिनों बाद पढ़ीं...अच्छा लगा नवीन जी
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