2122 2122 212
आंधियों के बाद भी अक्सर मिले ।।
फिर किसी दरिया में हम बहकर मिले ।।
हौसले ने आसमाँ तब छू लिया ।
आप मुझ से जब कभी हंस कर मिले ।।
हक़ जो मांगा इस ज़माने से यहां ।
दोस्तों के हाथ में ख़ंजर मिले ।।
लूट की थीं दौलतें जिसमें लगीं ।
वो मकां अक्सर हमें जर्जर मिले ।।
क्या गले मिलते भी हम तुमसे सनम ।
प्यार के बदले बहुत पत्थर मिले ।।
ऐ खुदा इतनी दुआ कर दे अता ।
तू हमारी रूह के अंदर मिले ।।
खुद चले आना हमारी बज़्म में ।
वक्त जब तुमको कभी पल भर मिले ।।
और क्या दें जिंदगी के बाद वो ।
आप भी कब मुतमइन होकर मिले ।।
जीत लेंगे जंग उम्मीदों से हम।
क्या हुआ हालात जो बदतर मिले ।।
जब पता पूँछा किसी से हुस्न का ।
घर बताते आपका रहबर मिले ।।
वह ग़ज़ल कहने लगी है इश्क़ में ।
अब तो उसकी शायरी को पर मिले ।।
आपने कैसे पढ़ा हमको हुजूर ।
आप भी हमसे कहाँ शब भर मिले ।।
तल्खियां इतनी कभी अच्छी नहीं।
आप मुझसे कब यहाँ आकर मिले ।।
शायरी उगती है दिल के खेत में ।
क्या करेंगे जब जमीं बंजर मिले ।।
--नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
आंधियों के बाद भी अक्सर मिले ।।
फिर किसी दरिया में हम बहकर मिले ।।
हौसले ने आसमाँ तब छू लिया ।
आप मुझ से जब कभी हंस कर मिले ।।
हक़ जो मांगा इस ज़माने से यहां ।
दोस्तों के हाथ में ख़ंजर मिले ।।
लूट की थीं दौलतें जिसमें लगीं ।
वो मकां अक्सर हमें जर्जर मिले ।।
क्या गले मिलते भी हम तुमसे सनम ।
प्यार के बदले बहुत पत्थर मिले ।।
ऐ खुदा इतनी दुआ कर दे अता ।
तू हमारी रूह के अंदर मिले ।।
खुद चले आना हमारी बज़्म में ।
वक्त जब तुमको कभी पल भर मिले ।।
और क्या दें जिंदगी के बाद वो ।
आप भी कब मुतमइन होकर मिले ।।
जीत लेंगे जंग उम्मीदों से हम।
क्या हुआ हालात जो बदतर मिले ।।
जब पता पूँछा किसी से हुस्न का ।
घर बताते आपका रहबर मिले ।।
वह ग़ज़ल कहने लगी है इश्क़ में ।
अब तो उसकी शायरी को पर मिले ।।
आपने कैसे पढ़ा हमको हुजूर ।
आप भी हमसे कहाँ शब भर मिले ।।
तल्खियां इतनी कभी अच्छी नहीं।
आप मुझसे कब यहाँ आकर मिले ।।
शायरी उगती है दिल के खेत में ।
क्या करेंगे जब जमीं बंजर मिले ।।
--नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें