नित अम्बु नयन से है बरसा ।
मधुमास बिना निज घन तरसा ।
क्षण भंगुर तन बहका बहका ।
है अनल व्यथित दहका दहका ।
अंतर के लव से भष्म हुआ
अवशेष ढूढ़ता जाता हूँ।
मैं पथिक विषम जीवन पथ का ।
अनुबन्ध तोड़ता जाता हूँ ।।
पीयुष प्याले बदले बदले ।
विष तीक्ष्ण मिले उजले उजले ।
धारा में नित बहते बहते ।
तन क्षीण हुए सहते सहते ।
संघर्षो ने कुछ छंद रचा
वेदना गीत में गाता हूँ ।
हूँ ठगा बटोही इस जग का
सम्बन्ध जोड़ता जाता हूँ ।।
मैं पथिक विषम जीवन पथ का
अनुबन्ध तोड़ता जाता हूँ ।।
ये लोभ मोह गहरे गहरे ।
अवचेतन तक ठहरे ठहरे ।
सब लक्ष्य लगे बिखरे बिखरे ।
तन स्वार्थ यहां उभरे उभरे ।
श्वासों से जहाँ विछोभ हुआ ।
नव वस्त्र पहन कर आता हूँ ।
मैं प्राण वायु मनुहारो का
प्रिय गन्ध छोड़ता जाता हूँ ।।
मैं पथिक विषम जीवन पथ का ।
अनुबन्ध तोड़ता जाता हूँ ।।
-- नवीन मणि त्रिपाठी
मधुमास बिना निज घन तरसा ।
क्षण भंगुर तन बहका बहका ।
है अनल व्यथित दहका दहका ।
अंतर के लव से भष्म हुआ
अवशेष ढूढ़ता जाता हूँ।
मैं पथिक विषम जीवन पथ का ।
अनुबन्ध तोड़ता जाता हूँ ।।
पीयुष प्याले बदले बदले ।
विष तीक्ष्ण मिले उजले उजले ।
धारा में नित बहते बहते ।
तन क्षीण हुए सहते सहते ।
संघर्षो ने कुछ छंद रचा
वेदना गीत में गाता हूँ ।
हूँ ठगा बटोही इस जग का
सम्बन्ध जोड़ता जाता हूँ ।।
मैं पथिक विषम जीवन पथ का
अनुबन्ध तोड़ता जाता हूँ ।।
ये लोभ मोह गहरे गहरे ।
अवचेतन तक ठहरे ठहरे ।
सब लक्ष्य लगे बिखरे बिखरे ।
तन स्वार्थ यहां उभरे उभरे ।
श्वासों से जहाँ विछोभ हुआ ।
नव वस्त्र पहन कर आता हूँ ।
मैं प्राण वायु मनुहारो का
प्रिय गन्ध छोड़ता जाता हूँ ।।
मैं पथिक विषम जीवन पथ का ।
अनुबन्ध तोड़ता जाता हूँ ।।
-- नवीन मणि त्रिपाठी
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (04-06-2016) को "मन भाग नहीं बादल के पीछे" (चर्चा अंकः2363) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर
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