*212 1212 1212 1212*
आपकी ही रहमतों से मिल गई वो शाम भी ।
कुछ अदा छलक उठी है कुछ नज़र से जाम भी ।।
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ढूढ़िये न आप अब मेरे उसूल का चमन ।
दिल कभी जला यहां तो जल गया मुकाम भी ।।
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नज्र कर दिया गुलाब तो हुई नई ख़ता ।
हुस्न आपका बना गया उसे गुलाम भी ।
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जब चिराग जल गए तो फिर शलभ निकल पड़े ।
कुछ शमा के वास्ते हुए हैं कत्ले आम भी ।।
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मिल गयी नई किरन तो वक्त भी बदल गए ।
मुद्दतों के बाद कर गया कोई सलाम भी ।।
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पूछिये न इश्क में किसे मिला है क्या यहां ।
कुछ फकीर हो गए तो कुछ हुए निजाम भी ।।
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खो दिया गुरूर जो अना हुई जुदा जहाँ ।
कर सका वही वहाँ खुदा का एहतराम भी ।।
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दो पलों की दूरियां हैं जिंदगी की मौत से ।
कर रहे वो मुद्दतों का खास इंतजाम भी ।।
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कुछ निशानियाँ भी छोड़ कर चले गए कहाँ ।
पास रह गया मेरे है आपका कलाम भी ।।
---नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
आपकी ही रहमतों से मिल गई वो शाम भी ।
कुछ अदा छलक उठी है कुछ नज़र से जाम भी ।।
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ढूढ़िये न आप अब मेरे उसूल का चमन ।
दिल कभी जला यहां तो जल गया मुकाम भी ।।
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नज्र कर दिया गुलाब तो हुई नई ख़ता ।
हुस्न आपका बना गया उसे गुलाम भी ।
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जब चिराग जल गए तो फिर शलभ निकल पड़े ।
कुछ शमा के वास्ते हुए हैं कत्ले आम भी ।।
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मिल गयी नई किरन तो वक्त भी बदल गए ।
मुद्दतों के बाद कर गया कोई सलाम भी ।।
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पूछिये न इश्क में किसे मिला है क्या यहां ।
कुछ फकीर हो गए तो कुछ हुए निजाम भी ।।
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खो दिया गुरूर जो अना हुई जुदा जहाँ ।
कर सका वही वहाँ खुदा का एहतराम भी ।।
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दो पलों की दूरियां हैं जिंदगी की मौत से ।
कर रहे वो मुद्दतों का खास इंतजाम भी ।।
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कुछ निशानियाँ भी छोड़ कर चले गए कहाँ ।
पास रह गया मेरे है आपका कलाम भी ।।
---नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित