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जी हाँ मैं आयुध निर्माणी कानपुर रक्षा मंत्रालय में तकनीकी सेवार्थ कार्यरत हूँ| मूल रूप से मैं ग्राम पैकोलिया थाना, जनपद बस्ती उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ| मेरी पूजनीया माता जी श्रीमती शारदा त्रिपाठी और पूजनीय पिता जी श्री वेद मणि त्रिपाठी सरकारी प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं| उनका पूर्ण स्नेह व आशीर्वाद मुझे प्राप्त है|मेरे परिवार में साहित्य सृजन का कार्य पीढ़ियों से होता आ रहा है| बाबा जी स्वर्गीय श्री रामदास त्रिपाठी छंद, दोहा, कवित्त के श्रेष्ठ रचनाकार रहे हैं| ९० वर्ष की अवस्था में भी उन्होंने कई परिष्कृत रचनाएँ समाज को प्रदान की हैं| चाचा जी श्री योगेन्द्र मणि त्रिपाठी एक ख्यातिप्राप्त रचनाकार हैं| उनके छंद गीत मुक्तक व लेख में भावनाओं की अद्भुद अंतरंगता का बोध होता है| पिता जी भी एक शिक्षक होने के साथ साथ चर्चित रचनाकार हैं| माता जी को भी एक कवित्री के रूप में देखता आ रहा हूँ| पूरा परिवार हिन्दी साहित्य से जुड़ा हुआ है|इसी परिवार का एक छोटा सा पौधा हूँ| व्यंग, मुक्तक, छंद, गीत-ग़ज़ल व कहानियां लिखता हूँ| कुछ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहता हूँ| कवि सम्मेलन के अतिरिक्त काव्य व सहित्यिक मंचों पर अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को आप तक पहँचाने का प्रयास करता रहा हूँ| आपके स्नेह, प्यार का प्रबल आकांक्षी हूँ| विश्वास है आपका प्यार मुझे अवश्य मिलेगा| -नवीन

गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

छेड़ी जो ग़ज़ल



 

छेड़ी  जो  ग़ज़ल  रात  उसकी  याद  आ  गयी |
पलकों में टिप टिपाती सी  बरसात  आ  गयी ||

खुद को छिपा लिया था  ज़माने से इस  कदर |
परदे   हज़ार    फेंक   के   जज्बात आ  गयी ||

मैंने  सुना  था  जख्म को भरता है वक्त भी |
हर वक्त  से  जख्मों  में नयी जान आ गयी ||

 गैरों   के  क़त्ल   होने  की  चर्चाएँ आम   हैं |
अपनों के क़त्ल होने  की फरियाद आ  गयी ||

उन  कांपते  होठों  ने जो  पूछा था मेरा हाल |
खामोसियाँ    लबों   पे   सरेआम   आ   गयी ||

अश्कों  ने  भिगोया  है  किसी कब्र की  चादर |
नम  होती   हवाओं   से  ये  आवाज  आ गयी || 
                                                                       -नवीन

रविवार, 8 अप्रैल 2012

ऊर्जा संरक्षण बनाम आयुध निर्माणियॉ

ऊर्जा संरक्षण बनाम आयुध निर्माणियॉ

                    -                 नवीन मणि त्रिपाठी

            शक्ति के विद्युत कण जो व्यस्त
           विकल   विखरे   हैं  वे   निरूपाय।
           समन्वय   उनका   करो   समस्त
           विजयनी    मानवता  बन   जाय।।


        उक्त पंक्तियॉं कामायनी के रचनाकार महान कवि जय शंकर प्रसाद जी की हैं ।ऊर्जा संरक्षण की दिशा में प्रसाद जी का गम्भीर चिन्तन वर्षों  पूर्व ही प्रारम्भ हो चुका था । आवश्यकता है आज पुनः प्रसाद जी की इस विचारधारा के मर्म की गहन समीक्षा की जाए और विखरी हुई ऊर्जा का सार्थक समन्वय कर उसे मानव कल्याण व राष्ट्र हित हेतु प्रयोग किया जाए।  

       आज भारत में ऊर्जा की खपत का विस्तार असीमित होती जा रही है। हमारे जीवनशैली की मौलिकता में भी स्वाभाविक रूप से परिवर्तन आ चुका है। हमारे वित्त मंत्री के एक बयान के अनुसार देश की वार्षिक पेट्रौलियम  की खपत 10 करोड़ टन है अर्थात 49 हजार करोड़ रूपये की खपत मात्र ऊर्जा के एक स्रोत   पर है। साथ ही ऊर्जा के अन्य क्षेत्रों में भी भारत को अधिक व्यय करना पड़ रहा है। जिसके परिणाम स्वरूप देश महगाई की गम्भीर समस्याओं से जूझ रहा है। किसी भी देश की खुशहाली देश में उपलब्ध उर्जा व्यवस्था पर निर्भर करती है। ऊर्जा भण्डार देश के विकास का महत्वपूर्ण अंग है। महॅगी दरों पर पेट्रौलियम का आयात हमारी विवशता है। अतः हमें चाहिए कि पेट्रौलियम ऊर्जा का यथा सम्भव जहॉ तक हो सके इसका सदुपयोग करें। किसी भी दशा में अपव्यय को हमें रोकना ही होगा। आर्थिक विकास की मूलभूत आवश्यकता में ऊर्जा का सर्वोपरि स्थान है। समाज के अनेकानेक क्षे़त्र उद्योग ,परिवहन, कृषि,व्यापार, घर सभी स्थानों पर ऊर्जा के महत्व को नकारा नहीं जा सकता है। विगत वर्षों में प्रगति के साथ साथ ऊर्जा की आवश्यकताओं में उत्तरोत्तर बढोत्तरी देखी जा रही है। ऊर्जा की इस बढती खपत में जीवश्म ईंधनों जैसे कोयला पेट्रौलियम और प्रकृतिक गैस पर निर्भरता बढती जा रही है। इन्हीं ईधनों के माध्यम से बिजली की आपूर्ति भी जुड़ी है।स्पष्ट तौर पर प्रदूषित पर्यावरण और स्वस्थ्य की समस्याओं के कारण इन जीवश्म ईधनों का उपयोग स्वच्छ ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों के विकास एवं उपयोग की जरूरतें भी प्रभावशाली ढंग से बढ चुकीं हैं। जीवश्म ईधनों की बढती कीमतें और भविष्य में इनकी कमी के गम्भीर संकट से ऊर्जा के विकास हेतु स्थायी मार्ग के सृजनात्मकता पर बल देने की आवश्यकता का आभास हो चुका है। इसके लिए दो सर्वोत्तम विधियां हैं-

1.    पर्यावरणीय अक्षय ऊर्जा के स्रोतों को प्रयोग में लाना ।

2.    ऊर्जा संरक्षण को प्रोत्साहित करना।



भारत में ऊर्जा की मांग और उसकी आपूर्ति के बीच अन्तराल को कम करने के लिए सबसे अधिक लागत विधि ऊर्जा दक्षता को प्रोत्साहन देना तथा इसका संरक्षण करना है। ऊर्जा संरक्षण कम खपत के जरिए प्रयोग की जा रही ऊर्जा की मात्रा कम रखने का व्यहार करने अथवा प्रकाश बल्ब या एअर कंडीशन में विद्युत दक्ष युक्तियों का उपयोग करने के माध्यम से किया जा सकता है। एक अनुमान के अनुसार लगभग 2500 मेगावाट क्षमता विद्युत क्षेत्र में केवल ऊर्जा दक्षता के माध्यम से बचत की जा सकती है।इस बचत की अधिकतम क्षमता औद्योगिक एवं कृषि क्षेत्रों से अनुमानित है।



   इस पर गम्भीरता से विचार करने के बाद भारत सरकार ने ऊर्जा संरक्षण अधिनियम 2001का अधिनियमन किया है। इस अधिनियम में कानूनी रूपरेखा संस्थागत व्यवस्था और केन्द्र तथा राज्य स्तर पर एक विनियामक प्रक्रिया प्रदान की गयी है,जो भारत में ऊर्जा दक्षता को बढावा देने का अभियान प्ररम्भ कर सकेगी। ऊर्जा कार्य कुशलता ब्युरो भी ऊर्जा दक्षता की कार्ययोजना के साथ आगे आया है। जिससे बिजली की बचत हेतु विभिन्न योजनाएं ,जागरूक अभियान ,बच्चों की प्रतियोगिताएं ,राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण पुरष्कार आदि शामिल हैं।

 अपनाएं ऊर्जा संरक्षण

   ऊर्जा संरक्षण से ऊर्जा की लागत में कमी आती है। नए विद्युत संयत्रों की जरूरत कम की जा सकती है और बढती आबादी तथा अर्थ व्यवस्था को बनाए रखने के लिए ऊर्जा आयात में कमी लायी जा सकती है। उत्सर्जन की कमी से स्वच्छ परिवेश और नागरिकों के लिए स्वस्थ जीवन शैली को बढावा मिलता है। ऊर्जा की कमी के लिए सबसे मितव्ययी समाधान यही है। साथ ही अक्षय ऊर्जा विकल्पों का पूर्ण प्रयोग भी आवश्यक है।



 महत्वपूर्ण है अक्षय ऊर्जा

  अक्षय ऊर्जा का सृजन प्राकृतिक संसाधनों जैसे सूर्य के प्रकाश ,पवन ,पानी ,अपशिष्ट उत्पादों और ऐसे अन्य स्रोतों से किया जाता है जिनकी प्रकृतिक रूप से पुनः पूर्ति हो जाए। भारत इन स्रोतों की अधिकता के साथ एक भाग्यशाली देश कहा जा सकता है। ऊर्जा के ये स्रोत पूरे वर्ष स्थानीय रूप से उपलब्ध हैं। और इनके वितरण के लिए किसी लम्बी चौड़ी व्यवस्था की जरूरत नहीं है। इससे ये दूर दराज के क्षेत्रों में उपयोग के लिए विकेन्द्रीकृत अनुप्रयोगों में उचित रूप से इस्तेमाल किये जा सकते हैं। अक्षय ऊर्जा स्रोतों के अन्य लाभ इनका पर्यावरण अनुकूल तथा अल्प प्रचालन लागत वाला होना है।



    भारत सरकार नवीन और नवीकरण ऊर्जा मंत्रालय अक्षय ऊर्जा के विकास एवं उपयोगिता के लिए इन्हें व्यापक कार्ययोजना के रूप में उपलब्ध कराने के लिए उत्तरदायी है। यह अनेक प्रद्यौगिकियों एवं युक्तियों को प्रोत्साहन देता है जो अब वाणिज्यिक रूप में उपलब्ध हैं।वर्तमान में अक्षय सौर उर्जा स्रोत देश में संस्थापित कुल विद्युत क्षमता का 9 प्रतिशत योगदान देते हैं। ऊर्जा के अन्यान्य वैकल्पिक स्रोतों के बारे में भी हमें अधिकतम जानकारी रखनी चाहिए जिसे निम्न दिया जा रहा है।



बायोगैस

 

    बायोगैस कार्बनिक उत्पादों ,प्रथमिक रूप से पशुओं के गोबर ,रसोई के अपशिष्ट तथा कृषि वानिकी उत्पादों से तैयार की जाती है। इसका उपयोग मुख्यतः ग्रामीण क्षेत्रों में किया जाता है। सरकार द्वारा राष्ट्रीय बायोगैस एवं खाद प्रबंधन के जरिए बायोगैस के उत्पादन को प्रोत्साहन दिया जाता है। वायोगैस का इस्तेमाल भोजन पकाने और तापन,रोशनी पैदा करने कुछ विशिष्ट गैस इन्जनों में मोटिव पावर पैदा करने तथा जुड़े हुए अल्टरनेटर के जरिए विद्युत उत्पादन में किया जा सकता है। देश में 12 मिलियन पारिवरिक प्रकार के बायोगैस संयत्रों की अनुमानित संभाव्यता है। वर्तमान में भारत बायोगैस के उत्पादन में दूसरे स्थान पर है।

बायोमास

   बायोमास का उपयोग सभ्यता के आरम्भ से ही किया जा रहा है। इसमें लकड़ी ,गन्ने के अवशेष गेहूॅ के सरकण्डे तथा पौधों की अन्य सामग्रियॉ शामिल हैं। यह कार्बन उदासीन होता है और इसमें ग्रामीण क्षेत्रों में उल्लेखनीय रोजगार प्रदान करने की संभाव्यता है।सरकार द्वारा प्रोत्साहित की जा रही तीन मुख्य बायोमास प्रद्यौगिकियॉ हैं चीनी मिलों में सह उत्पादन,बायोमास विद्युत उत्पादन और बायोमास गैसीफिकेशन द्वारा तापीय तथा वैद्युत अनुप्रयोग।हाल ही में बायोमास विद्युत 1000 करोड़ रूपये से अधिक निवेश आकर्षित करने वाला उद्योग बन गया है,जबकि इससे प्रति वर्ष 9 बिलियन यूनिट का उत्पादन किया जाता है।

सौर ऊर्जा

   भारत पर्याप्त धूप वाला देश है जिसके अधिकांस भागों पर 250 से 300 दिनों धूप वाले दिनों सहित प्रतिदिन लगभग 4से 7 किलो घण्टा सौर विकिरण प्रति वर्ग मीटर प्राप्त होते हैं।इससे सौर उर्जा विद्युत विद्युत और ताप दोनों ही उत्पन्न करने के लिए आकर्षक विकल्प बन जाती है। तापीय मार्ग में पानी गर्म करने ,भोजन पकाने ,सुखाने ,पानी के शुद्धि करण ,विद्युत उत्पादन तथा अन्य अनुप्रयोगों के लिए सूर्य की गर्मी का उपयोग किया जाता है। प्रकाश वोल्टीय मार्ग में सौर के प्रकाश को बिजली में बदला जाता है। जिसका उपयोग रोशनी करने, पम्पिंग,संचार तथा गैर विद्युतीकृत क्षेत्रों में विद्युत की आपूर्ति हेतु किया जाता है।

अपशिष्ट से ऊर्जा

      तीव्र औद्यौगिकीकरण ,शहरी करण तथा जीवन शैली में बदलाव ,जो आर्थिक वृद्धि की प्रक्रिया के साथ आते हैं ,अपशिष्ट की मात्रा में वृद्धि होती है हवा तथा पानी के प्रदूषण की तथा मौसम परिवर्तन के पर्यावरण संबंधी समस्याएं पैदा होती हैं ।हाल के वर्षों में एैसी प्रौद्योगिकियों का विकास किया गया है जो ना केवल पर्याप्त विकेन्द्रीकृत ऊर्जा के उत्पादन में अपशिष्ट पदार्थो का इस्तेमाल करती है बल्कि इनके सुरक्षित निपटान हेतु इनकी मात्रा में कमी लाती है। शहरी और औद्योगिक अपशिष्ट से 3500मेगावाट से अधिक ऊर्जा की प्राप्ति की अनुमानित संभाव्यता है। सरकार द्वारा शहरी अपशिष्ट से ऊर्जा की प्राप्ति पर कार्यक्रम का कार्यान्वयन किया जाता है।



पवन ऊर्जा



  भारत वर्तमान में यू एस ए ,जर्मनी ,स्पेन और चीन के बाद पवन ऊर्जा के क्षेत्र में पॉचवां सबसे बड़ा उत्पादक है। पवन ऊर्जा का उपयोग पानी की पम्पिंग ,बैटरी चार्जिंग और बडे विद्युत उत्पादन में किया जाता है। यह एक सरल संकल्पना का कार्य करता हैं। बहती हुई हवा एक टर्बाइन के पंखों को घुमाती है ,जो एक जनरेटर में बिजली को उत्पन्न करते हैं। मार्च 2009 तक कुल 10242 मेगावाट पवन विद्युत क्षमता स्थापित करने में सफलता प्राप्त की जा चुकी है। सरकार ने पवन संसाधनों के आकलन परियोजनाओं स्थापित करने को बढावा देने तथा पवन ऊर्जा को देश में बिजली के एक पूरक स्रोत के रूप में प्रोत्साहन देने के लिए पवन विद्युत कार्यक्रम आरंभ किया है।



लघु पन विजली



  पन बिजली विद्युत उत्पादन में अक्षय ऊर्जा का सबसे बडा स्रोत है। यह एक ऊचाई से गिरने वाले पानी की ऊर्जा से प्राप्त की जाती है,जिसे जनरेटर से जुडे टर्बाइन के इस्तेमाल से बिजली में बदला जाता है। भारत में 25 मेगावाट तक की क्षमता वाली पनविजली परियोजनाओं को लघु पन बिजली परियोजना कहा जाता है। अधिकांश संभाव्यता लगभग 15000 मेगावाट है।



हाइड्रोजन ऊर्जा

हाइड्रोजन एक रंग हीन गंध हीत स्वाद हीन ज्वलनशील गैस है। जिसमें ऊर्जा की मात्रा काफी अधिक है। जब इसे जलाया जाता है तब एक उप उत्पाद के रूप में पानी उत्पन्न होता है। इस लिए यह ऊर्जा का एक दक्ष स्रोत और पर्यावरण की दृष्टि से स्वच्छ ईंधन है। इसका इस्तेमाल विद्युत उत्पादन ,परिवहन अनुप्रयोगों के साथ अंतरिक्ष यान के ईधन के रूप में किया जा सकता है।



       सरकार भूतापीय ऊर्जा ,महासागरीय ऊर्जा ईधन सेलों ,जैव ईधनों तथा ज्वारीय ऊर्जा जैसे अक्षय ऊर्जा के स्रोतों की उन्नत प्रौद्योगिकियों के विकास हेतु भी कार्य कर रही है,ताकि भावी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके।



आयुध निर्माणियों में ऊर्जा संरक्षण



 आयुध निर्माणियॉ हमारे देश के रक्षा उत्पादों की महत्वपूर्ण औद्योगिक शक्ति हैं। निर्माणियों को चलाने हेतु अधिक ऊर्जा के खपत की आवश्यकता होती है।इसमें विद्युत ,पेट्रोलियम, जीवश्म ईधन कोयला आदि की विशेष आवश्यकता होती है। ऊर्जा दक्षता की युक्तियों के  साथ साथ ऊर्जा संरक्षण हेतु अनेकों उपाय अपनाये जा रहें हैं जिसमें तेल और पानी को अलग करने के लिए ट्रीटमेंट प्लांट जागरूकता अभियान आदि शामिल हैं। यहॉ परिचालनों अथवा रखरखाव में सुधार हेतु और नयी परियोजनाएं विकसित करना ,दोनों दृष्टियों से ऊर्जा संरक्षण पर लगातार जोर दिया जाता है। अत्याधुनिक उच्य स्तरीय उपकरणों से ईधन खपत ,हाइड्रोकार्बन हानि फ्लेयर हानि ,हीटर बायलर प्रर्दशन पर लगातार व्यवस्थित नजर रखी जाती है। विश्लेषण रिर्पोट और एकत्रित डेटा लाभ पाने वाले अनुभागों को भेजी जाता है ,और किसी असामान्य मामले में कार्यवाही भी की जाती है। अभी भी इन निर्माणियों में ऊर्जा संरक्षण के क्षेत्र में बहुत कुछ किया जाना बाकी है। मसलन हमारे देश की भारत पेट्रौलियम ( बीपीसीएल )ने उर्जा संरक्षण के क्षेत्र में विशेष कदम उठाये हैं ठीक इसी प्रकार हमें भारतीय आयुध निर्माणियों में भी उठाना चाहिए।



   हाल ही में बीपीसीएल के द्वारा लागू किये गये ऊर्जा संरक्षण के उपाय इस प्रकार हैं जिसे लागू करना हमारी आयुध निर्माणी की अनिवार्यता होनी चाहिए-



1.    सीमांत लागत लाभ के अधार पर गैस टर्बाइन /स्टीम टर्बाइन जनरेटर (जीटी/एसटीजी) आपरेशन का इष्टतमीकरण ।

2.    यूटिलिटी बायलर ड्राइव्स और आक्सीलियरीज में ऊर्जा की खपत का इष्टतमीकरण।

3.    बायलर्स के लिए डिएइरेटर सिस्टम का इष्टतमीकरण।

4.    हाइड्रोजन यूनिट में मर्ज गैस फेरिंग में कमी।

5.    क्रूड प्रीहीट बढाने के लिए क्रूड सर्कुलेटिंग रीफ्लेक्सेस को अधिकतम करना।

6.    एफसीसीयू में प्रीहीट तापमान का इष्टतमीकरण।

7.    मेटेलिक ब्लेड एयर फिन फैन के बदले एफ आर पी ब्लेन्ड एयर फिल फैन का इस्तेमाल ताकि ऊर्जा बचत की जा सके।

8.    मिनरल यूल इन्सूलेशन के बदले अधिक कुशल परलाइट इनसूलेशन।



           उक्त के अलावा नियमित ऊर्जा संरक्षण विघियॉ भी जारी रखनी होंगी।



        सामान्य तौर पर भारत के निर्माणियों में उपयोग मे लाये जा रहे लैंप बल्ब एवं अन्य उपकरणों के द्वारा अधिक ऊर्जा खपत करने के कारण आज लगभग 80 प्रतिशत विजली बेकार चली जाती है। काम्पैक्ट फ्लोरोसेंट लाइट (सीएफएल)बल्ब का उपयोग कर हम बिजली की लागत में बचत कर सकते हैं। सीएफएल बल्ब परंपरागत बल्ब की अपेक्षा पॉच गुना प्रकाश देेता है,साथ ही सीएफएल बल्ब की टिकाउ क्षमता परंपरागत बल्ब की अपेक्षा 8 गुना अधिक है। फ्लोरोसेंट ट्यूबलाइट व सी एफ एल जलने पर कम ऊर्जा की खपत होती है तथा ज्यादा गर्मी भी प्रदान नही करती है। यदि हम 60 वाट के साधारण बल्ब के स्थान पर 15 वाट के सीएफएल बल्ब का प्रयोग करते हैं तो हम प्रति घण्टा 45 वाट ऊर्जा की बचत कर सकते हैं। इस प्रकार हम प्रति माह 11 युनिट विजली की बचत कर सकते है ,और बिजली पर आने वाले खर्च को कम कर सकते हैं।



आयुध निर्माणियों में ऊर्जा संरक्षण हेतु कुछ उपाय

1.   आयल फरनेसों में नियमित चेकिंग करके ऊर्जा लीकेज वाले स्रोतों को बन्द करना चाहिए।

2.   आवश्यकता के अनुसार ही निर्माणी के वाहनों का उपयोग किया जाए।

3.   वाहनों की सर्विसिंग समया नुसार तथा वाहनों के पहियों के हवा की चेकिंग प्रतिदिन होनी चाहिए।

4.   निर्माणी में विद्युत सप्लाई का पावर फैक्टर नियंत्रित रखने हेतु सतत जागरूक रहना चाहिए। 

5.   सौर ऊर्जा का विकल्प प्रकाशीय व्यवस्थाओं के लिए अपनाना चाहिए।

6.   मशीनों की आयलिंग ग्रीसिंग पर समुचित ध्यान दिया जाए जिससे फ्रिक्शन लासेज को रोका जा सके।

7.   निर्माणी की समस्त लाइटों को स्वचलित स्विचों द्वारा नियंत्रित किया जाए।

8.   मशीनों व प्लांटो के आयल लीकेज पर विशेष ध्यान दिया जाए।

9.   मशीनों के कटिंग टूल्स उत्तम कोटि के ही प्रयोग में लाये जाएं।

10. मशीनों के इलेक्ट्रिक पैनल ,डी बी, स्विचों के कनेक्शन की रूटीन चेकिंग सप्ताह में एक बार अवश्य होनी चाहिए। लूज कनेक्शन ऊर्जा की खपत को बढाते हैं।

11. अर्थ और न्युटल तारों के मध्य शून्य वोल्ट होना चाहिए।

12. निर्माणी में विद्युत पंखों व ओवर हेड लाइटों का नियोजन इस प्रकार होना चाहिए कि एक पंखा व एक लाइट दो या दो से अधिक मशीनों पर प्रकाश व हवा की आवश्यकता को पूरी कर सके।

13. लीकेज करण्ट रोकने के लिए भवनों व आफिसों की वायरिंग का इन्सूलेशन टैस्ट करते रहना चाहिए।



14. निर्माणी में सभी कम्प्रेशरों की पाइप लाइन के एअर लीकेज नियंत्रित रखना चाहिए साथ ही कम्प्रेशर में लगी स्लिपरिंग मोटर के कार्बन बुश तथा रजिस्टैंस बाक्स के आयल की रूटीन जॉच करते रहना चाहिए।

15.  यथा सम्भव  कार्य समय ही फोर्जिंग प्लांट की मोटरें आन रहें कार्य नहीं होने की स्थिति में अथवा ब्रेकडाउन के समय अनावश्यक मोटरों को बन्द करके बिजली की बचत की जा सकती है।

16. पानी और तेल को अलग करने के लिए आवश्यकतानुसार ट्रीटमेंट प्लांट की संख्या बढानी चाहिए।

17. जाड़े अथवा गर्मी में तापमान नियंत्रण हेतु अधिकांश क्षेत्रों में प्राकृतिक तौर तरीके ही अपनाएं एअर कंडीशन अथवा हीटर के उपयोग से बचने का प्रयास करना चाहिए।

18. ऊर्जा संरक्षण हेतु प्रत्येक कर्मचारी को जागरूक किया जाए साथ ही ऊर्जा संरक्षण की दिशा में समर्पित कर्मचारियों व अधिकारियों को प्रोत्साहन हेतु पुरष्कृत किया जाए।



       यदि हम उर्जा संरक्षण को आयुध निर्माणियों में पूर्ण सर्तकता के साथ अपनाएं तो ना केवल राष्ट्र की बचत करेंगे बल्कि उत्पादों में भी आशातीत सुधार कर गुणवत्ता क्रान्ति में अपना उत्कृष्ट योगदान भी देंगे। हमें निर्माणियों में अक्षय ऊर्जा स्रोतों पर निरन्तर विचार करते रहना चाहिए ऊर्जा दक्षता युक्तियों के माध्यम से हम अपनी निर्माणियों में ऊर्जा संरक्षण के क्षेत्र में बहुत कुछ कर सकने की संभाव्यता से इनकार नहीं कर सकते है।



   हमारे देश में ऊर्जा उत्पादन का भविष्य चुनौतियों से भरा हुआ है।अक्षय ऊर्जा प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त की जाती है इसलिए इन प्रौद्योगिकियों को अपना कर हम प्रदूषण को कम कर सकेंगे और हमारे राष्ट्र के अरबों रूपये बच सकेंगे जिन्हें तेल आयात में हम खर्च करते हैं। सार्वजनिक जागरूकता अभियानों द्वारा इन स्वच्छ प्रौद्योगिकियों को अपनाना महत्वपूर्ण है। जब नागरिक ऊर्जा बचत के व्यवहार को सीखेंगे और अपनायेंगे तथा इन प्रद्योगिकियों अपने व्यापार एवं घरों में प्रयोग करेंगे तो राष्ट्र प्रगति के क्षेत्र में दस कदम आगे होगा।

   प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण यह देश ......भला यहॉं कौन नहीं रहना चाहेगा।यह महत्वपूर्ण है कि हम यही स्वस्थ और सुरक्षित पर्यावरण अपनी पीढियों को भी सौपें । अक्षय ऊर्जा स्रोतों को अपनाना तथा ऊर्जा संरक्षण के उपाय करना ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।



                               इति



                                 नवीन मणि त्रिपाठी

                            

                                आयुध निर्माणी कानपुर