तीखी कलम से

मेरे बारे में

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जी हाँ मैं आयुध निर्माणी कानपुर रक्षा मंत्रालय में तकनीकी सेवार्थ कार्यरत हूँ| मूल रूप से मैं ग्राम पैकोलिया थाना, जनपद बस्ती उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ| मेरी पूजनीया माता जी श्रीमती शारदा त्रिपाठी और पूजनीय पिता जी श्री वेद मणि त्रिपाठी सरकारी प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं| उनका पूर्ण स्नेह व आशीर्वाद मुझे प्राप्त है|मेरे परिवार में साहित्य सृजन का कार्य पीढ़ियों से होता आ रहा है| बाबा जी स्वर्गीय श्री रामदास त्रिपाठी छंद, दोहा, कवित्त के श्रेष्ठ रचनाकार रहे हैं| ९० वर्ष की अवस्था में भी उन्होंने कई परिष्कृत रचनाएँ समाज को प्रदान की हैं| चाचा जी श्री योगेन्द्र मणि त्रिपाठी एक ख्यातिप्राप्त रचनाकार हैं| उनके छंद गीत मुक्तक व लेख में भावनाओं की अद्भुद अंतरंगता का बोध होता है| पिता जी भी एक शिक्षक होने के साथ साथ चर्चित रचनाकार हैं| माता जी को भी एक कवित्री के रूप में देखता आ रहा हूँ| पूरा परिवार हिन्दी साहित्य से जुड़ा हुआ है|इसी परिवार का एक छोटा सा पौधा हूँ| व्यंग, मुक्तक, छंद, गीत-ग़ज़ल व कहानियां लिखता हूँ| कुछ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहता हूँ| कवि सम्मेलन के अतिरिक्त काव्य व सहित्यिक मंचों पर अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को आप तक पहँचाने का प्रयास करता रहा हूँ| आपके स्नेह, प्यार का प्रबल आकांक्षी हूँ| विश्वास है आपका प्यार मुझे अवश्य मिलेगा| -नवीन

रविवार, 23 सितंबर 2012

हिंदी पर चार छंद

हिंदी पखवाडा पर हिंदी को समर्पित  अवधी भाषा  में चार छंद



हिंद  की   शान  की  ताज  बनी   निज  गौरव  माँ   बढ़ावत   हिंदी |
सूर  कबीर  बिहारी   के  नवरस  छंद   का    पान   करवट   हिंदी ||
तुलसी  केहि  मानस  सागर  में यह मोक्ष का ध्यान करावत हिंदी |
मीरा  की भक्ति  की  प्रेम  सुधा बन प्रेम  की  राह  दिखावट  हिंदी ||

निर्माणी है  आयुध  की  अपनी   पर  ताल  से  ताल  मिलावत हिंदी |

तकनीकी की सूक्ष्म से सूक्ष्म विधा जन मानस तक पहुचावत हिंदी ||
पृथ्वी  अग्नि   ब्रह्मोश  के  शब्द   से दुश्मन  को    दहलावत   हिंदी |
अर्जुन  टंक पिनाका  परम  से ये  देश   की   लाज   बचावत   हिंदी ||

देश  के  जंग  की  अंग  बनी  बलिदानी  को  मन्त्र  बतावत  हिंदी |

वीर  शहीदों  के  फाँसी के  तख़्त से भारत  माँ को  बुलावत  हिंदी ||
जब देश के मान पे आंच पड़ी तब क्रांति  बिगुल को बजावत हिंदी |
सोये   हुए   हर  बूद  लहू  को  वो   अमृत   धार   पिलावत  हिंदी ||

राष्ट्र  की  भाषा  उपाधि  मिली  नहीं  शर्म का  बोध  करावत हिंदी |

राज  की  भाषा  की नाव  नहीं  यह  राष्ट्र  की पोत चलावत  हिंदी ||
कुछ  शर्म  हया  तो  करो  सबही  करुणा  कइके  गोहरावत हिंदी |
भारत  माँ  की  दुलारी लली  केहि  कारण  मान  ना  पावत हिंदी ||

रविवार, 16 सितंबर 2012

हिंदी का सम्मान ना काटो

                                    14 सितम्बर हिंदी दिवस पर 


हिंदी का सम्मान ना काटो|
मेरा   हिंदुस्तान ना  बाँटो ||


                    तुम भारत के जन नायक हो |
                 जन गन मन अधिनायक हो |
                 इस  लोक तंत्र के दायक  हो |
                 जन मानस के  निर्णायक हो |


 

लोकतंत्र  के  इस उपवन से ,

भाषाओँ की डाल ना छांटो ||
हिंदी का सम्मान ना  काटो
मेरा  हिंदुस्तान  ना  बाँटो ||


                   यह    देश   टूटता  जायेगा | 
                 अपराध  बोध   हो जायेगा  |
                 माथे  कलंक  लग  जायेगा | 
                 इतिहास  शर्म   दोहराएगा | 


 

तुच्छ स्वार्थ के खातिर जग में

तीखा   तीखा  विष  ना  चाटो|| 
हिंदी  का  सम्मान  ना   काटो
मेरा   हिंदुस्तान   ना    बाँटो ||


              कलुषित  क्षेत्रवाद    को  धोना | 
            बीज    राष्ट्र   वाद   के   बोना  |
            दूर  रखो   हर   कर्म  घिनौना |
            हर  भाषा   का   पुष्प  पिरोना |  


 


भारत  माँ  का  माल्यार्पण  कर 

मन के  कुटिल  राग  को  डाटों ||
हिंदी   का  सम्मान  ना   काटो |
मेरा     हिंदुस्तान  ना     बाँटो ||


                          हर  भाषा   के  बलिदानी  थे |
                       वे   स्वतंत्रता   के    दानी  थे |
                       भारत  की  अमर  कहानी थे |
                       वे   दुर्लभ   राष्ट्र   निशानी  थे |


 

बहुत   बनाई   गहरी   खाई |

शर्म  करो  जाओ  तुम पाटो ||
हिंदी  का  सम्मान ना काटो |
मेरा   हिंदुस्तान   ना   बाटो ||