तीखी कलम से

मेरे बारे में

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जी हाँ मैं आयुध निर्माणी कानपुर रक्षा मंत्रालय में तकनीकी सेवार्थ कार्यरत हूँ| मूल रूप से मैं ग्राम पैकोलिया थाना, जनपद बस्ती उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ| मेरी पूजनीया माता जी श्रीमती शारदा त्रिपाठी और पूजनीय पिता जी श्री वेद मणि त्रिपाठी सरकारी प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं| उनका पूर्ण स्नेह व आशीर्वाद मुझे प्राप्त है|मेरे परिवार में साहित्य सृजन का कार्य पीढ़ियों से होता आ रहा है| बाबा जी स्वर्गीय श्री रामदास त्रिपाठी छंद, दोहा, कवित्त के श्रेष्ठ रचनाकार रहे हैं| ९० वर्ष की अवस्था में भी उन्होंने कई परिष्कृत रचनाएँ समाज को प्रदान की हैं| चाचा जी श्री योगेन्द्र मणि त्रिपाठी एक ख्यातिप्राप्त रचनाकार हैं| उनके छंद गीत मुक्तक व लेख में भावनाओं की अद्भुद अंतरंगता का बोध होता है| पिता जी भी एक शिक्षक होने के साथ साथ चर्चित रचनाकार हैं| माता जी को भी एक कवित्री के रूप में देखता आ रहा हूँ| पूरा परिवार हिन्दी साहित्य से जुड़ा हुआ है|इसी परिवार का एक छोटा सा पौधा हूँ| व्यंग, मुक्तक, छंद, गीत-ग़ज़ल व कहानियां लिखता हूँ| कुछ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहता हूँ| कवि सम्मेलन के अतिरिक्त काव्य व सहित्यिक मंचों पर अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को आप तक पहँचाने का प्रयास करता रहा हूँ| आपके स्नेह, प्यार का प्रबल आकांक्षी हूँ| विश्वास है आपका प्यार मुझे अवश्य मिलेगा| -नवीन

शुक्रवार, 11 सितंबर 2015

             एक सन्देश  आरक्षण समर्थको के नाम 

आज का सवर्ण बहुत दीन हीन अवस्था में जी रहा है । आज उसके पास न रहने को घर न पहनने को वस्त्र 
और दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं है । वह रिक्शा चलाता है । जिन्हें दलित कहते हैं उन्हें रिक्शे पर घुमाता है । वह जिन्हें दलित कहते हैं उनके घर नौकर  की तरह काम करता है । सवर्णों के घर की महिलायें
ब्यूटी पार्लर चलकर जिन्हें दलित कहते हैं उनके घर की औरतों को सजाती रहती हैं सिर्फ पेट पालने के लिए । इस तरह के हजारों उदहारण आपके समाज में बहुत सुगमता के साथ देखने को मिल जाएंगे । उसके बाद भी जाति के नाम पर दलितों को आरक्षण और सवर्णों के बच्चों के बच्चों के हाथ में कटोरा यह कहाँ 
का न्याय है । मेरा सिर्फ नाम के दलित भाइयो से अनुरोध है सुरक्षित भारतीय लोकतन्त्र के लिए वह भी आरक्षण विरोध में शामिल होकर राष्ट्र प्रेम का परिचय दें ।

मंगलवार, 8 सितंबर 2015

सवर्णो के लिए कुछ तो रियायत कीजिये साहब

सवर्णों  के  लिए  कुछ  तो रियायत कीजिये  साहब ।
ये  भूखे  मर  रहे   रोटी   इनायत   कीजिये  साहब ।।

फांकता धूल  सड़को  पर जिसे काबिल कहा सबने ।
फकाना  और  क्या  क्या है हिदायत दीजिये साहब ।।

जहाँ  तालीम  की   खातिर  बिका  है  बाप  बेचारा।
उसे हक़  है निवाले  का  निहायत  दीजिये  साहब ।।

तड़पते  भूँख  से बच्चों  की  आँखों  में  बगावत है ।
जले  न  मुल्क  ये  तेरा  रिवायत  लीजिये   साहब ।।

तरक्की  है  वहां ठहरी जहाँ  काबिल की इज्जत है ।
अपाहिज के लिए न अब  हिमायत कीजिये साहब ।।

मुल्क  होगा कभी  मेरा  था आजादी  का ये मकसद।
न हिंदुस्तान को अब फिर बिलायत  कीजिये  साहब ।।

है  कुदरत के  वसूलों  में  जो   बेहतर  है वो  छीनेगा।
अमन का घर गिराकर मत शिकायत कीजिये साहब।।

रोजियां   छीन  ली  उसकी  गरीबी  मौत  से   बदतर।
जात  ऊँची  बताकर  मत  किफ़ायत कीजिये साहब।।

                             --नवीन मणि त्रिपाठी

बुझी बारूद पर यकीन बनाए रखिये

---***ग़ज़ल***---

बचे  न   मुल्क   वह   चिराग   जलाए   रखिये ।
उन  लुटेरों  की  सियासत  को  चलाए   रखिये ।।

खा  गए  शौक  से  चारा  जो  मवेशी  का यहां।
उनकी खिदमत में इलेक्शन को सजाये रखिये।।

फिर  से मण्डल की दगी तोप ले  के निकले है।
बुझी   बारूद   पर   यकीन   बनाये   रखिये ।।

जात  के  नाम पर  तक़रीर  है खुल्लम खुल्ला।
कुछ  अदालत  पे  नजर अपनी जमाये रखिये।।

सिर्फ घोटाला ही मकसद हो जिनकी कुर्सी का।
वोट  का  भाव  तो  अपना  भी  बढ़ाये  रखिये।।

कुर्सियां   नोचते  गिद्धों  की   तरह   ये आलिम।
इनकी    तारीफ   चैनलो   से   सुनाये  रखिये ।।

वो   तरक्की   की  बात  भूल   से  नहीं  करते ।
राज  जंगल  की  बात  मन  में  बिठाये  रखिये।।

कुतर  कुतर  के खा गए जो मुल्क की इज्जत।
उनकी इज्जत के लिए खुद को मिटाये रखिये ।।

                   -नवीन मणि त्रिपाठी

इश्क बिकने वहीँ जाता


उम्र के दायरे  से अब  मुहब्बत  का  नहीं नाता।
जहाँ  जेबों में गर्मी हो इश्क बिकने वहीँ जाता ।।

जमाने  का  यहाँ बिगड़ा  हुआ दस्तूर  है या रब ।
सेठ  बाजार  की  कीमत  बढ़ाने  है  वहीँ आता।।

कब्र में पाँव हैं  जिनके  वो दौलत  के फरिस्ते  हैं ।
मिजाजे आशिकी के फख्र का मंजर नहीं जाता ।।
सियासत दां कोई तालीम अब मत दे ज़माने को ।
जिन्हें अपने मुकद्दर में शरम लिखना नहीं आता ।।

तेरी बिकने की फितरत थी बिकी है हसरते तेरी।
मुहब्बत नाम से  जारी  तेरा  फतबा नहीं भाता।।

यहां  कानून  के  रंग में  हूर  की  कीमते खासी ।
इश्क का दर्ज क्या खर्चा जरा देखो बही खाता ।।
           नवीन मणि त्रिपाठी