तीखी कलम से

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जी हाँ मैं आयुध निर्माणी कानपुर रक्षा मंत्रालय में तकनीकी सेवार्थ कार्यरत हूँ| मूल रूप से मैं ग्राम पैकोलिया थाना, जनपद बस्ती उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ| मेरी पूजनीया माता जी श्रीमती शारदा त्रिपाठी और पूजनीय पिता जी श्री वेद मणि त्रिपाठी सरकारी प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं| उनका पूर्ण स्नेह व आशीर्वाद मुझे प्राप्त है|मेरे परिवार में साहित्य सृजन का कार्य पीढ़ियों से होता आ रहा है| बाबा जी स्वर्गीय श्री रामदास त्रिपाठी छंद, दोहा, कवित्त के श्रेष्ठ रचनाकार रहे हैं| ९० वर्ष की अवस्था में भी उन्होंने कई परिष्कृत रचनाएँ समाज को प्रदान की हैं| चाचा जी श्री योगेन्द्र मणि त्रिपाठी एक ख्यातिप्राप्त रचनाकार हैं| उनके छंद गीत मुक्तक व लेख में भावनाओं की अद्भुद अंतरंगता का बोध होता है| पिता जी भी एक शिक्षक होने के साथ साथ चर्चित रचनाकार हैं| माता जी को भी एक कवित्री के रूप में देखता आ रहा हूँ| पूरा परिवार हिन्दी साहित्य से जुड़ा हुआ है|इसी परिवार का एक छोटा सा पौधा हूँ| व्यंग, मुक्तक, छंद, गीत-ग़ज़ल व कहानियां लिखता हूँ| कुछ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहता हूँ| कवि सम्मेलन के अतिरिक्त काव्य व सहित्यिक मंचों पर अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को आप तक पहँचाने का प्रयास करता रहा हूँ| आपके स्नेह, प्यार का प्रबल आकांक्षी हूँ| विश्वास है आपका प्यार मुझे अवश्य मिलेगा| -नवीन

सोमवार, 13 जून 2016

बुलबुल नई हवा में चहकती जरूर है

बेशक  वो  आइने  में  संवरती  जरूर   है ।
पर रिन्द  मैकदों   में  बहकती  जरूर   है ।।

हुश्नो  शबाब में है अदाओं का सिलसिला ।

बनके कवल फिजां में महकती जरूर है ।।

आने लगी है याद कोई  मुद्द्तों  के  बाद ।

शायद वो तिश्नगी में  सिसकती जरूर है ।।

शिकवे  शिकायतों  में गुजारी तमाम रात ।

ज़ज़्बात  बेरुखी  में  छलकती  जरूर है ।।

कैसे भुला दूँ  हुश्न  के  हर  इंतकाम  को ।

वो  बात  मेरे  दिल में  ठहरती  जरूर है ।।

सहमे शजर की शाख मुनासिब कहाँ उसे ।

बुलबुल  नयी  हवा में  चहकती जरूर है ।।

है मुन्तजिर वो सिम्त मुहब्बत के दरमियाँ ।

बेख़ौफ़  जफ़ाओं  में  निकलती  जरूर है ।।

परदों  में  रख  तू  बात  है  दीवार बेवफा ।

कुछ  बात  जमाने  में  सुलगती  जरूर है ।।

परवाने  शबे  वस्ल  में  कुरबान  हो   गए ।

इक आरजू  शमा  में  मचलती  जरूर  है ।।

इतना गुमां न कर कभी मिट्टी के ज़ार पर ।

हर शय तो जिंदगी में बिछड़ती जरूर है ।।

       -नवीन मणि त्रिपाठी

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