तीखी कलम से

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जी हाँ मैं आयुध निर्माणी कानपुर रक्षा मंत्रालय में तकनीकी सेवार्थ कार्यरत हूँ| मूल रूप से मैं ग्राम पैकोलिया थाना, जनपद बस्ती उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ| मेरी पूजनीया माता जी श्रीमती शारदा त्रिपाठी और पूजनीय पिता जी श्री वेद मणि त्रिपाठी सरकारी प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं| उनका पूर्ण स्नेह व आशीर्वाद मुझे प्राप्त है|मेरे परिवार में साहित्य सृजन का कार्य पीढ़ियों से होता आ रहा है| बाबा जी स्वर्गीय श्री रामदास त्रिपाठी छंद, दोहा, कवित्त के श्रेष्ठ रचनाकार रहे हैं| ९० वर्ष की अवस्था में भी उन्होंने कई परिष्कृत रचनाएँ समाज को प्रदान की हैं| चाचा जी श्री योगेन्द्र मणि त्रिपाठी एक ख्यातिप्राप्त रचनाकार हैं| उनके छंद गीत मुक्तक व लेख में भावनाओं की अद्भुद अंतरंगता का बोध होता है| पिता जी भी एक शिक्षक होने के साथ साथ चर्चित रचनाकार हैं| माता जी को भी एक कवित्री के रूप में देखता आ रहा हूँ| पूरा परिवार हिन्दी साहित्य से जुड़ा हुआ है|इसी परिवार का एक छोटा सा पौधा हूँ| व्यंग, मुक्तक, छंद, गीत-ग़ज़ल व कहानियां लिखता हूँ| कुछ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहता हूँ| कवि सम्मेलन के अतिरिक्त काव्य व सहित्यिक मंचों पर अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को आप तक पहँचाने का प्रयास करता रहा हूँ| आपके स्नेह, प्यार का प्रबल आकांक्षी हूँ| विश्वास है आपका प्यार मुझे अवश्य मिलेगा| -नवीन

सोमवार, 29 मई 2017

ग़ज़ल पढ़ने वालों ने पढ़ लिया होगा

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उसके चेहरे  पे  कुछ लिखा  होगा ।
पढ़ने  वालों  ने  पढ़  लिया होगा ।।

यूँ   नही    हैं     तमाम     दीवाने ।
हुस्न  शायद   नया   नया   होगा ।।

सिलवटें    दे   रहीं    गवाही  सब ।
मौत  से  वह   बहुत  लड़ा   होगा ।।

जुल्म से अब भला  है  डरना क्यों ।
मेरे    खातिर    मेरा  खुदा   होगा ।।

सुर्ख   लब   से  शराब   पीकर  वों।
होश   खोकर   कहीं   पड़ा  होगा ।।

तुझसे मिलना भी इक  कयामत है ।
क्या  मुकद्दर   का   फैसला  होगा ।।

उनसे   कह    दो   न  रास्ता   रोकें ।
मेरा  दिलवर   बहुत   खफा  होगा ।।

आ   भी  जाओ   मेरी  जरूरत  हो ।
तुझसे  मिलकर  मेरा  भला  होगा ।।

छोड़ कर चल  दिया शराफत को ।
कोई    धोखा   कहीं   हुआ होगा ।।

वस्ल तय  था मगर ख़बर क्या थी ।
इस  तरह  से  कभी  जुदा  होगा ।।

लोग  कहते  हैं  खास  अफसर है ।
ढूढ़िये   धन    कहीं   दबा   होगा ।।

घर   जलाकर    मेरा  चले   आये ।
ये  रकीबों   का   मशबरा    होगा ।।

पत्थरों  पर  है   सियासत  काफी ।
मुल्क  करवट  बदल  रहा   होगा ।।

हैं   उमीदें  तमाम   जनता     की।
उसके आने से कुछ भला होगा ।।

             -- नवीन मणि त्रिपाठी

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